India global influence BJP politics

भारत की वैश्विक भूमिका और मोदी—भाजपा का हिंदुत्वादी एजेंडा

India global influence BJP politicsसचिन श्रीवास्तव
हाल के दिनों में भारत के वैश्विक शक्ति बनने की देशज मंचों पर कई बार चर्चा होती रही है। वैश्विक परिस्थितियां भी यह संकेत दे रही हैं कि अगर भारत अपनी भूमिका को सही ढंग से निभाए तो इस वक्त वह वैश्विक मंच पर एक बड़ी ताकत के रूप में उभर सकता है, लेकिन इसकी हकीकत क्या है, क्या भारत और उसकी आंतरिक राजनीति इसके लिए तैयार है।

वैश्विक शक्ति बनने के लिए आवश्यक तत्व
असल में, वैश्विक शक्ति बनने के लिए तीन प्रमुख स्तंभों की जरूरत होती है:
1. मजबूत आर्थिक और सैन्य नीति
2. कूटनीतिक संतुलन (Balance of Power Diplomacy)
3. वैश्विक स्वीकार्यता (Global Acceptance)

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भारत को इन तीनों ही क्षेत्रों में लगातार सुधार की जरूरत है। औद्योगिक उत्पादन क्षमता और नवाचार (Innovation) के मामले में भारत चीन और अमेरिका की तुलना में काफी पीछे है। जहाँ चीन वैश्विक उत्पादन का हब बन चुका है और अमेरिका तकनीकी नवाचारों में आगे है, भारत अभी भी उत्पादन क्षमता और तकनीकी उन्नति के लिए संघर्ष कर रहा है। हालाँकि, ‘Make in India’ और ‘Startup India’ जैसी योजनाओं से नवाचार को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है, लेकिन निवेश और शोध (R&D) की कमी के कारण भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता सीमित बनी हुई है।

शिक्षा प्रणाली भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। चीन और अमेरिका के उच्च शिक्षण संस्थानों की तुलना में भारत के विश्वविद्यालयों का वैश्विक रैंकिंग में पिछड़ना एक बड़ी समस्या है। जब तक शिक्षा और शोध का स्तर नहीं सुधरेगा, भारत का नवाचार और वैश्विक नेतृत्व प्रभावित रहेगा।

मोदी और भाजपा के नेतृत्व में भारत की वैश्विक स्थिति
मोदी सरकार ने ‘Make in India’, ‘Digital India’, और ‘G20 Leadership’ जैसी पहलों के माध्यम से भारत को आर्थिक रूप से मजबूत करने की कोशिश की है। साथ ही मोदी ने अमेरिका, रूस, यूरोप, खाड़ी देशों और अफ्रीका के साथ संबंध मजबूत बनाए हैं। रक्षा और सैन्य क्षेत्र में भाजपा सरकार ने ‘अग्निपथ योजना’, ‘आत्मनिर्भर भारत’, ब्रह्मोस मिसाइल निर्यात और हिंद महासागर में नौसेना की सक्रियता बढ़ाने जैसे कदम उठाए हैं, जिनका कोई खास असर होता नहीं दिख रहा है।

India global influence BJP politicsलेकिन भाजपा की हिंदूवादी राजनीति की वजह से वैश्विक छवि प्रभावित हो रही है। मुस्लिम देशों में भारत की छवि को नुकसान हुआ है। वह चाहे नुपुर शर्मा विवाद हो या सीएए—एनआरसी और कश्मीर पर नीतियां सभी में भारत की छवि इन देशों में बिगड़ी है। उधर पश्चिमी देशों में भारत को सॉफ्ट एकाधिकारवाद और एथनिक नेशनलिज्म से जोड़ा जा रहा है। G20 में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ जैसी बातें कहने के बावजूद, मोदी सरकार की नीतियां घरेलू स्तर पर बहुसंख्यकवाद (Majoritarianism) को बढ़ावा देती दिखती हैं।

संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अन्य बहुपक्षीय संगठनों की रिपोर्ट्स भी भारत की लोकतांत्रिक गिरावट पर चिंता जता रही हैं। Freedom House, V-Dem, और The Economist जैसी संस्थाओं ने भारत को “Electoral Autocracy” के रूप में वर्गीकृत किया है। इससे भारत की वैश्विक साख पर नकारात्मक असर पड़ा है।

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भारत की सॉफ्ट पावर और हिंदुत्ववादी एजेंडा
भारत की सॉफ्ट पावर—जिसमें बॉलीवुड, योग, आध्यात्म, भारतीय भोजन, और लोकतंत्र की छवि शामिल हैं—मोदी सरकार की हिंदूवादी नीतियों से प्रभावित हो रही है। पश्चिमी देशों में ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। भारत की समावेशी छवि, जो अतीत में उसकी शक्ति थी, अब कमजोर होती जा रही है। हाल के वर्षों में विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदुत्व की आलोचना बढ़ी है, और यह भारत की सॉफ्ट पावर को नुकसान पहुँचा सकता है।

भाजपा की हिंदूवादी राजनीति की मुश्किल
अमेरिका, रूस, चीन— तीनों वैश्विक महाशक्तियां धर्म के बजाय शक्ति (Power Politics) पर आधारित हैं। भारत को अगर ग्लोबल लीडर बनना है, तो उसे सेक्युलर और लोकतांत्रिक छवि बनाए रखनी होगी। अगर भारत खुद को “हिंदू राष्ट्र” के रूप में पेश करेगा, तो मुस्लिम देश (सऊदी अरब, ईरान, इंडोनेशिया, मलेशिया) और पश्चिमी देश (अमेरिका, यूरोप) धीरे-धीरे दूरी बना सकते हैं।

अगर भाजपा सत्ता में बनी रहती है, तो उसे अपनी हिंदूवादी छवि को ‘सॉफ्ट’ करना होगा। जैसे अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में था। मोदी के बाद अगर भाजपा और कट्टर हिंदुत्ववादी दिशा में गई, तो भारत की वैश्विक स्थिति कमजोर हो सकती है। बाहर के देशों को यह भरोसा देना जरूरी होगा कि भारत लोकतांत्रिक और समावेशी रहेगा।

India global influence BJP politicsक्या मोदी ही भारत को ग्लोबल पावर बना सकते हैं?
शॉर्ट टर्म की राजनीति में देखें तो शायद हां, क्योंकि वे मजबूत कूटनीति और अर्थव्यवस्था पर ध्यान दे रहे हैं। लेकिन लॉन्ग टर्म में, अगर उनकी हिंदूवादी नीति हावी होती रही, तो भारत को नुकसान हो सकता है और किसी नए नेता की जरूरत पड़ेगी। लेकिन सवाल है कि क्या मोदी भाजपा के भीतर अपने बाद किसी ऐसे नेता को तैयार कर रहे हैं, जो वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका को और मजबूत कर सके?

अगर भारत को सच्चे अर्थों में वैश्विक शक्ति बनना है, तो तीन तरह के नेतृत्व की संभावना हो सकती है। अगर भाजपा का कोई नया नेता— जैसे नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, या कोई युवा नेता, मोदी के बाद सत्ता में आता है और हिंदूवादी राजनीति को नरम करता है, तो भारत अपनी वैश्विक स्थिति मजबूत कर सकता है। भाजपा को यह तय करना होगा कि वह ‘हिंदू राष्ट्र’ बनना चाहती है या ‘वैश्विक महाशक्ति’।

अमेरिका और चीन की तुलना में भारत की आर्थिक स्थिति
भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, लेकिन अभी भी वह अमेरिका और चीन से बहुत पीछे है। चीन की GDP भारत से पाँच गुना अधिक है, और अमेरिका की अर्थव्यवस्था तो वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी है। भारत की सबसे बड़ी चुनौती असंगठित श्रम, बेरोजगारी, और धीमी औद्योगिक वृद्धि है। इसके अलावा, व्यापार नीति में भी भारत अभी तक चीन और अमेरिका जैसी आक्रामक रणनीति अपनाने में असफल रहा है।

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गठबंधन सरकारें और भारत की विदेश नीति
नेहरू के समय भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई थी, जिसने भारत को एक स्वतंत्र पहचान दी। इंदिरा गांधी के दौर में भारत ने बांग्लादेश युद्ध लड़ा और परमाणु परीक्षण किया, जिससे भारत की स्थिति मजबूत हुई। मोदी ने व्यक्तिगत कूटनीति पर जोर दिया है, लेकिन हिंदूवादी छवि के कारण भारत की वैश्विक स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं। भारत में गठबंधन सरकारों के दौर में भी विदेश नीति में स्थिरता रही है, लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है। अगर भाजपा नरम हिंदुत्व की ओर जाती है, जैसा वाजपेयी के दौर में था, तो भारत की वैश्विक स्थिति संतुलित हो सकती है।

विपक्षी दलों की भूमिका
अगर कांग्रेस या कोई अन्य विपक्षी दल सत्ता में आता है। तो भारत की वैश्विक छवि सेक्युलर और लोकतांत्रिक रूप में मजबूत होगी। हालांकि, विपक्ष के पास अभी कोई ठोस विदेश नीति नहीं दिख रही है। राहुल गांधी लोकतंत्र और मानवाधिकारों की बात करते हैं, लेकिन उनकी विदेश नीति को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। अखिलेश यादव और स्टालिन जैसे नेता क्षेत्रीय स्तर पर प्रभावी हैं, लेकिन राष्ट्रीय और वैश्विक मामलों में उनकी रणनीति अभी स्पष्ट नहीं है। अगर अगले 5—10 साल में भारत में कोई नया गठबंधन बनता है, जिसकी संभावना बहुत ज्यादा है, जिसमें भाजपा और कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दल मिलकर काम करें, तो भारत संतुलित शक्ति बन सकता है। यह मॉडल जर्मनी और जापान जैसे देशों में सफल रहा है।

भारत की जनता क्या चाहती है?
क्या भारत की जनता खुद को वैश्विक शक्ति के रूप में देखना चाहती है, या घरेलू राजनीति ही मुख्य मुद्दा बनी रहेगी? यह एक बड़ा सवाल है। बेरोजगारी, महंगाई, और सामाजिक असमानता जैसी समस्याएँ लोगों के लिए ज्यादा अहम हैं। हालाँकि, राष्ट्रीय गर्व (National Pride) की भावना को भाजपा ने एक मुद्दा बना दिया है, लेकिन जब तक घरेलू समस्याएँ हल नहीं होतीं, तब तक वैश्विक शक्ति बनने की महत्वाकांक्षा अधूरी रह सकती है।

अगर भाजपा अपनी हिंदूवादी राजनीति नरम कर देती है और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करती है, तो मोदी या कोई और भाजपा नेता भी भारत को वैश्विक शक्ति बना सकता है। अगर भाजपा कट्टर हिंदुत्व की तरफ बढ़ती है, तो भारत की वैश्विक छवि को नुकसान होगा और किसी और सेक्युलर नेता की जरूरत होगी। अगर कांग्रेस या विपक्ष मजबूत होता है और स्पष्ट विदेश नीति बनाता है, तो वह भी भारत को नई दिशा दे सकता है। सबसे आदर्श स्थिति होगी—कोई मध्यमार्गी, व्यावहारिक और संतुलित नेतृत्व (Moderate & Balanced Leadership), जो भारत की शक्ति को सही दिशा में ले जाए।