मोदी के बाद भाजपा: कौन निभाएगा वैश्विक लीडर की भूमिका
सचिन श्रीवास्तव
पिछले दिनों भाजपा की आंतरिक बहसों यह सवाल तेजी से उठने लगा है कि मोदी के बाद भाजपा का नेता कौन होगा। चूंकि पार्टी अब सामूहिक नेतृत्व से एकल नेतृत्व की दिशा में बढ़ चुकी है और इस रणनीति से उसे अभूतपूर्व सफलता भी मिली है, तो इसके कारण भाजपा अब किसी एक ही नेता पर दांव खेलना चाहती है। जाहिर है ऐसे में पार्टी की मुश्किलें भी बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं। क्योंकि एकल नेतृत्व की सूरत में दूसरी पंक्ति का हर नेता मोदी के बाद अपने लिए संभावनाएं तलाशने में जुटा है और वह जानता है कि अगर एक बार यह मौका हाथ से निकल गया तो अगले डेढ़ दो दशक के लिए फिर कोई संभावना नहीं बन सकेगी। इसीलिए संघ से लेकर संगठन तक में कई दूसरी पंक्ति के नेता खुद को मजबूत करने में जुटे हुए हैं।
इस मामले में दिलचस्प यह भी है कि भाजपा के भीतर नेतृत्व उत्तराधिकार (Leadership Succession), मोदी की दीर्घकालिक रणनीति और भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं से भी जुड़ा है। मोदी 75वें साल में प्रवेश कर चुके हैं। और अगले 5-10 वर्षों में भारतीय राजनीति में सत्ता का हस्तांतरण अपरिहार्य होगा। सवाल यह है कि क्या मोदी भाजपा के भीतर अपने बाद किसी ऐसे नेता को तैयार कर रहे हैं, जो न केवल घरेलू राजनीति में मजबूत हो, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका को और प्रभावी बना सके?
भाजपा में मोदी के बाद कौन?
भाजपा में फिलहाल स्पष्ट उत्तराधिकारी नहीं है। लेकिन कुछ संभावित चेहरे हैं। इनमें अमित शाह का नाम सबसे पहले आता है। मोदी के सबसे करीबी सहयोगी, लेकिन वैश्विक स्तर पर उनकी पहचान बेहद कमजोर है। वे कुशल रणनीतिकार हैं और मजबूत प्रशासक माने जाते हैं, लेकिन विदेश नीति और कूटनीति में अनुभव कम है। साथ ही अमित शाह की छवि कट्टर हिंदूवादी नेता की है, जिससे भारत की वैश्विक स्वीकार्यता प्रभावित हो सकती है।
दूसरा नाम योगी आदित्यनाथ का है, जो हिंदू राष्ट्रवाद का चेहरा हैं, लेकिन उनका अंतरराष्ट्रीय प्रभाव सीमित है। उत्तर प्रदेश में मजबूत पकड़ तो है, लेकिन उनकी छवि बेहद कट्टर हिंदुत्ववादी है। वैश्विक कूटनीति में उनका कोई अनुभव नहीं, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता कठिन होगी। अगर भाजपा योगी को आगे बढ़ाती है, तो भारत की “वैश्विक शक्ति” बनने की राह कमजोर हो सकती है।
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इसके बाद नितिन गडकरी का नाम आता है, जो विकास के एजेंडे वाले नेता माने जाते हैं, लेकिन फिलहाल अंदरूनी राजनीति में कमजोर हैं। उन्होंने सड़क, परिवहन और इंफ्रास्ट्रक्चर में अच्छा काम किया है। व्यापार और औद्योगिक विकास को बढ़ाने की सोच रखते हैं, जो भारत की वैश्विक भूमिका के लिए ज़रूरी है। लेकिन भाजपा के भीतर उनकी स्थिति मजबूत नहीं है। RSS का समर्थन प्राप्त है, लेकिन मोदी-शाह गुट में प्रभावी नहीं हैं।
शिवराज सिंह चौहान का नाम भी इसी क्रम में आता रहता है। वे कूटनीति में माहिर, लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक का अनुभव नहीं है। भारत में भाजपा के सबसे प्रभावी चेहरों में से एक हैं, लेकिन वैश्विक मंचों पर अपना प्रभाव दिखाने का मौका अब तक नहीं मिला है। अगर भाजपा उन्हें आगे बढ़ाती है, तो भारत की वैश्विक भूमिका मजबूत करने के लिए उन्हें एक टीम की जरूरत होगी।
अन्य संभावित नेताओं में धर्मेंद्र प्रधान, अनुराग ठाकुर, देवेंद्र फडणवीस, अश्विनी वैष्णव जैसे नेता आगे आ सकते हैं, लेकिन उनकी वैश्विक पहचान सीमित है। अगर भाजपा कोई मध्यमार्गी, प्रगतिशील नेता उभारती है, तो भारत की वैश्विक स्थिति बेहतर हो सकती है।
मोदी के बाद भाजपा की विचारधारा: कट्टरता बढ़ेगी या संतुलन आएगा?
मोदी के बाद अगर भाजपा और हिंदूवादी होती गई तो भारत की वैश्विक छवि को नुकसान होगा। अमेरिका, यूरोप समेत मुस्लिम देश भारत से दूरी बना सकते हैं। इस तरह भारत की ‘लोकतांत्रिक शक्ति’ बनने की संभावना कम हो जाएगी।
दूसरी ओर अगर भाजपा संतुलित नेतृत्व अपनाती है तो नई संभावनाएं बन सकती हैं। एक ऐसा नेता जो न हिंदू राष्ट्रवाद पर ज्यादा जोर दे, न पूरी तरह पश्चिमी एजेंडा अपनाए, वह भारत को मजबूत कर सकता है। यह भारत की ‘Global Superpower’ बनने की संभावना को बढ़ाएगा।
क्या मोदी किसी उत्तराधिकारी को तैयार कर रहे हैं?
मोदी की अब तक की रणनीति देखें तो उन्होंने किसी को स्पष्ट उत्तराधिकारी बनने का संकेत नहीं दिया है। अमित शाह पार्टी के भीतर मजबूत हैं, लेकिन वे मोदी की तरह वैश्विक नेता नहीं बन पाएंगे। योगी आदित्यनाथ के कट्टर हिंदूवादी दृष्टिकोण से भारत की वैश्विक स्थिति कमजोर हो सकती है। अगर मोदी भारत को वैश्विक शक्ति बनाना चाहते हैं, तो उन्हें किसी ऐसे नेता को आगे लाना होगा जो कूटनीति, अर्थव्यवस्था और वैश्विक संतुलन को समझता हो।
संभावित परिदृश्य: मोदी के बाद क्या होगा?
मोदी खुद 2029 तक सत्ता में बने रह सकते हैं। मोदी 2029 तक प्रधानमंत्री रहेंगे। इसके बाद वे किसी ऐसे नेता को आगे बढ़ा सकते हैं जो उनकी नीतियों को जारी रखे। लेकिन अगर मोदी हटते हैं, तो भाजपा के भीतर शाह-योगी-गडकरी गुटों में टकराव हो सकता है। अगर योगी आगे आते हैं, तो भारत की वैश्विक भूमिका कट्टर हिंदुत्ववादी दिशा में जा सकती है। अगर कोई संतुलित नेता आता है, तो भारत अपनी वैश्विक स्थिति को मजबूत कर सकता है।
इस बीच अगर विपक्ष मजबूत होता है, तो भारत की वैश्विक छवि ‘लोकतांत्रिक और सेक्युलर’ रूप में फिर से उभर सकती है। लेकिन विपक्ष में अभी कोई मजबूत नेता नहीं दिख रहा, जिससे भाजपा की सत्ता बरकरार रह सकती है।