Lok Sabha Speaker: एनडीए और विपक्ष के बीच राजनीतिक संघर्ष

भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोकसभा स्पीकर का पद इतना महत्वपूर्ण कभी नहीं रहा, जितना 18वीं लोकसभा में है। 18वीं लोकसभा के पहले सत्र की तैयारी और इस पद को लेकर एनडीए और विपक्षी दलों के बीच राजनीतिक संघर्ष जोरों पर है। यह इसलिए भी खास है कि आने वाले पांच साल की राजनीति इस पद से निर्धारित हो सकती है।

सबसे पहले हम भारतीय संविधान में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के लिए क्या प्रावधान हैं, इस पर नजर डालते हैं।

अनुच्छेद 93 में लोकसभा के स्पीकर (अध्यक्ष) और डिप्टी स्पीकर (उपाध्यक्ष) की नियुक्ति का प्रावधान है। यह अनुच्छेद लोकसभा के सदस्यों को एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का चुनाव करने के लिए प्रावधान करता है। अनुच्छेद 93 के अनुसार:

अनुच्छेद 93: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन
“लोकसभा, जितनी शीघ्र संभव हो सके, अपने सदस्यों में से एक को अध्यक्ष और एक को उपाध्यक्ष निर्वाचित करेगी और जब कभी ऐसा पद रिक्त होगा, तो लोकसभा, जितनी शीघ्र संभव हो सके, ऐसे रिक्त पद को भरने के लिए निर्वाचन करेगी।”

इस अनुच्छेद के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि लोकसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद हमेशा भरा रहे ताकि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके।

संबंधित अनुच्छेद
अनुच्छेद 94: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों का रिक्त होना और त्यागपत्र
इस अनुच्छेद में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों के रिक्त होने या त्यागपत्र देने की प्रक्रियाओं का वर्णन है।

अनुच्छेद 95: अध्यक्ष या उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में अध्यक्षता करना
इस अनुच्छेद में यह प्रावधान है कि जब अध्यक्ष अनुपस्थित हों, तो उपाध्यक्ष सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करेंगे, और जब उपाध्यक्ष भी अनुपस्थित हों, तो सदन के सदस्यों में से किसी को अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाएगा।

अनुच्छेद 96: अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरुद्ध संकल्प
इस अनुच्छेद में अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया का विवरण है।

यह अनुच्छेद और संबंधित प्रावधान भारतीय संसद की कार्यवाही को नियमित और प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम की बात करें तो आज एनडीए के घटक दलों की बैठक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई, जिसमें लोकसभा स्पीकर और उपाध्यक्ष पद को लेकर विचार-विमर्श किया गया। इस बैठक में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, किरेन रिजिजू, ललन सिंह, और लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान शामिल हुए। बैठक में 24 जून से शुरू होने वाले संसद सत्र के लिए रणनीति पर चर्चा की गई, जिसमें सांसदों की शपथ, सदन में बैठने के क्रम, और सत्र के दौरान की जाने वाली रणनीतियों पर विचार हुआ।

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भाजपा की कोशिश है कि लोकसभा स्पीकर का पद उसके पास रहे, जबकि उपाध्यक्ष पद एनडीए के घटक दलों को दिया जाए। जदयू के नेता केसी त्यागी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि सत्तारूढ़ पार्टी का अधिकार होता है स्पीकर पद पर, और भाजपा जिसे भी नामित करेगी, जदयू उसका समर्थन करेगी। दूसरी ओर, टीडीपी सभी दलों की राय से स्पीकर का चयन चाहती है। यानी टीडीपी ने इस पद के लिए पेंच फंसा दिया है।

सर्वसम्मति से चुनाव की कोशिश
एनडीए के नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि स्पीकर पद के चुनाव में किसी प्रकार का मतभेद नहीं है। 26 जून को लोकसभा स्पीकर का चुनाव हो सकता है। इससे पहले 2014 में सुमित्रा महाजन और 2019 में ओम बिरला सर्वसम्मति से स्पीकर चुने गए थे। एनडीए की सरकार की कोशिश रहेगी कि इस बार भी सर्वसम्मति से स्पीकर चुना जाए।

विपक्ष का दबाव
विपक्ष भी इस मुद्दे पर दबाव बनाने की कोशिश में है। विपक्ष का कहना है कि अगर उसे उपाध्यक्ष पद नहीं मिलता है, तो वह स्पीकर पद के चुनाव में अपना उम्मीदवार उतार सकता है। शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने कहा कि लोकसभा स्पीकर की लड़ाई बहुत अहम है। राउत ने यह भी संकेत दिया कि अगर टीडीपी स्पीकर पद का चुनाव लड़ती है, तो विपक्षी गठबंधन उनके उम्मीदवार का समर्थन करने पर विचार कर सकता है।

एनडीए के लिए टीडीपी और जेडीयू का समर्थन
एनडीए सरकार के लिए टीडीपी और जेडीयू का समर्थन महत्वपूर्ण है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में भाजपा को अकेले 240 सीटें मिली हैं, जो बहुमत के आंकड़े 272 से कम हैं। टीडीपी को 16 सीटें मिलीं और जेडीयू को 12 सीटें मिलीं, जिससे एनडीए को पूर्ण बहुमत मिल पाया।

टीडीपी का रुख
टीडीपी का कहना है कि सत्तारूढ़ गठबंधन की ओर से स्पीकर पद के लिए उम्मीदवार खड़ा किया जाना चाहिए। टीडीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता पट्टाभि राम कोमारेड्डी ने कहा कि एनडीए के सहयोगी स्पीकर पद के चुनाव को लेकर एक साथ बैठेंगे और तय करेंगे कि स्पीकर के लिए उम्मीदवार कौन होगा। आम सहमति बन जाने के बाद टीडीपी समेत सभी सहयोगी उम्मीदवार का समर्थन करेंगे। हालांकि, टीडीपी ने स्पीकर की कुर्सी पर अपना दावा पेश करने के विकल्प को खारिज नहीं किया है।

1999 का घटनाक्रम
1999 में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को विश्वास मत से गुजरना पड़ा था, जब जयललिता के नेतृत्व वाली एआईएडीएमके ने समर्थन वापस ले लिया था। उस समय टीडीपी सांसद जीएमसी बालयोगी स्पीकर थे, जिन्होंने ओडिशा के तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग को वोट देने की अनुमति दी थी, जिससे वाजपेयी सरकार एक वोट से गिर गई थी।

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विपक्ष की रणनीति
विपक्ष ने इस बार स्पीकर पद के लिए उम्मीदवार उतारने की रणनीति बनाई है, अगर उसे उपाध्यक्ष पद नहीं मिलता है। विपक्षी दलों का मानना है कि इस बार स्थिति 2014 और 2019 जैसी नहीं है, और सरकार स्थिर नहीं है। विपक्षी दल टीडीपी और जेडीयू को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं कि स्पीकर पद पर अपने दल में से किसी को बैठाने के लिए तैयार करें।

जेडीयू का स्पष्ट रुख
जेडीयू ने भाजपा के समर्थन को लेकर अपना रुख साफ कर दिया है। जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने कहा कि उनकी पार्टी भाजपा द्वारा नामित उम्मीदवार का समर्थन करेगी। उन्होंने कहा कि जेडीयू और टीडीपी मजबूती से एनडीए में हैं और भाजपा द्वारा नामित व्यक्ति का समर्थन करेंगे।

टीडीपी की अनिश्चितता
हालांकि, टीडीपी का अब तक का अनिश्चित रुख ही भाजपा के लिए तनाव की वजह है। टीडीपी का स्पीकर पद के लिए स्पष्ट रुख न होना भाजपा के लिए चुनौती बन सकता है।

शिवसेना (उद्धव गुट) का बयान
शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राउत ने कहा कि लोकसभा स्पीकर पद की लड़ाई महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस बार स्थिति 2014 और 2019 जैसी नहीं है और सरकार स्थिर नहीं है। राउत ने यह भी कहा कि अगर एनडीए के किसी उम्मीदवार को स्पीकर पद नहीं मिलता है, तो पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह टीडीपी, जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) को तोड़ देंगे।

भाजपा का अनुभव
भाजपा के लिए स्पीकर पद क्यों महत्वपूर्ण है, इसका जवाब 1999 के घटनाक्रम से मिलता है। उस समय टीडीपी की मांग के अनुसार स्पीकर टीडीपी के बालयोगी बने थे, और वाजपेयी सरकार एक वोट से गिर गई थी। इसी अनुभव से भाजपा ने सीखा कि स्पीकर पद अपने पास रखना महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष
लोकसभा स्पीकर पद को लेकर एनडीए और विपक्ष के बीच जारी राजनीतिक संघर्ष आगामी सत्र के लिए महत्वपूर्ण है। एनडीए की कोशिश है कि स्पीकर पद उसके पास रहे, जबकि विपक्षी दल इस मुद्दे पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। टीडीपी और जेडीयू का समर्थन एनडीए के लिए महत्वपूर्ण है, और इस मामले में दोनों दलों का रुख महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। एनडीए और विपक्ष के बीच इस संघर्ष का परिणाम 26 जून को होने वाले लोकसभा स्पीकर के चुनाव में स्पष्ट होगा।