Ek Desh Barah Duniya: 13वीं कहानी जिसे आपने अभी तक दर्ज नहीं किया
शिरीष की किताब एक देश बारह (Ek Desh Barah Duniya) दुनिया से गुजरते हुए कुछ नोट्स
मौजूदा दौर में जब पत्रकारों को सत्ता का दलाल और पत्रकारिता को जनता का विपक्ष मान लिया गया है। मेडिकल इमरजैंसी (कोविड 19 के कारण) के साथ राजनीतिक इमरजैंसी के से हालात हैं। जमीनी आवाजों को दर्ज करने की छोटी कोशिशों के अलावा कोई व्यापक फोरम ऐसा नहीं है, जहां हाशिए की आवाजों को रेखांकित किया जा सके। ऐसे समय में पत्रकार, कवि और रंगकर्मी शिरीष खरे की किताब एक देश बारह दुनिया (Ek Desh Barah Duniya) का आना एक उम्मीद और आश्वस्ति की तरह है।
नरसिंहपुर के ग्रामीण जीवन में पले-लड़े और बढ़े शिरीष ने भोपाल की उन चक्करदार गलियों में दुनिया को देखने की तमीज और तहजीब हासिल की है, जिनके बारे में राजेश जोशी कहते हैं कि इनमें से कुछ गलियां तो चांद तक जाती हैं। यहां कविता का यह जिक्र इसलिए कि पत्रकारिता की आंकी-बांकी गलियों में सधे कदमों से टहलने वाले शिरीष ने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश के दौरान कुछ बेहद अच्छी कविताएं भी लिखी हैं। कविता से बारास्ता थियेटर और फिर पत्रकारिता में जाने के दौरान उन्होंने अपने भीतर के बच्चे को गढ़ा है, जो औचक नजरों से दुनिया को देखता है और उसे जज्ब करने के साथ उलटबांसियों पर पैनी नजर रखता है।
असल में एक देश बारह दुनिया (Ek Desh Barah Duniya) अपने आप में कोई अनूठी किताब नहीं है। इसमें दर्ज कहानियों से लिखने-पढ़ने वाला समाज बहुत अच्छी तरह से वाकिफ है, लेकिन शिरीष जिस तरह से इन दुनियाओं में उतरते हैं और फिर उसे वे हमारे अपने भीतर के कवि की संवेदनशीलता, रंगकर्मी की दृष्टि और पत्रकार की जिज्ञासा के साथ बुनकर सामने रखते हैं। यह बुनाई, देखने की कला और समाज के भीतर उतरकर भी उसे निरपेक्ष ढंग से दर्ज करने की कला ही इस किताब को खास बनाती है।
इस किताब (Ek Desh Barah Duniya) की चर्चा बीते करीब 3 महीनों में विभिन्न फोरम पर हुई है, लेकिन उसमें यह कहीं रेखांकित नहीं हुआ है कि आखिर हमारे समय के पत्रकारों में वह नजर और उन कहानियों को दर्ज करने की जिद का अभाव क्यों हैं? कुछ एक पत्रकार साथी जो ऐसा कर पा रहे हैं, उनका काम मुख्यधारा की मीडिया के हल्ले के बीच नक्कारखाने की तूती की तरह है। शिरीष की किताब हमें वह राह भी दिखाती है, जहां से ऐसी आवाजों को दर्ज करने का हुनर भी खूबसूरती से नुमायां होता है।
इस किताब पर हमारे समय के एक और महत्वपूर्ण पत्रकार अनुराग द्वारी ने शिरीष से वीडियो बातचीत की। इसमें शिरीष के उत्सुक चेहरे के उतार चढ़ाव में वह सतरें भी पढ़ी जा सकती हैं, जो किताब के शब्दों में दर्ज नहीं हुई हैं।
कलिंगा लिट् फेस्टिवल की भाव संवाद श्रृंखला की इस कड़ी में लेखक से बातचीत कर रहे अनुराग द्वारी ने पुस्तक में से कई अंश पढ़ते हुए शिरीष से यह प्रश्न भी पूछा कि इस पुस्तक का फार्मेट क्या है। इस बारे में बात करते हुए शिरीष ने बताया कि पुस्तक में कहीं यात्रा–वृत्तांत, कहीं संस्मरण तो कहीं डायरी जैसी साहित्यिक विधाओं का भी प्रयोग किया गया है। लेकिन, यह सारी विधाएं आखिरकार होती कहानियां ही हैं तो इन्हें ऐसी कहानियों के रुप में समझा जाए जो पिछले एक–डेढ़ दशक में भारतीय गांवों, जिनमें हिंदी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, छत्तीसगढ़ी, बुंदेलखंडी, राजस्थान के थार और जनजातीय बोलियों से जुड़े लोगों की व्यथा है।
इस पूरी बातचीत को यहां सुना जा सकता है।
किताब पर कोई और टिप्पणी करने से पहले देख लेते हैं कि विभिन्न फोरम पर एक देश बारह दुनिया (Ek Desh Barah Duniya) के बारे में क्या कहा गया है। इन टिप्पणियों को पढ़ने के बाद जब आप इस किताब को पढ़ेंगे, तो इसकी 12 कहानियों के बीच से गुजरते हुए एक 13वीं कहानी भी आपको मिलेगी। वह कहानी आपके अपने समाज की होगी, आपके अपने पड़ोस की होगी। मेरा दावा है कि यह किताब आपको वह 13वीं कहानी लिखने, कहने, दर्ज करने के लिए कहेगी, उकसाएगी और अगर नहीं लिखेंगे, तो रातों को जगाएगी। ऐसा मेरा अनुभव है, बहुत उम्मीद है आपके साथ भी ऐसा ही हो, क्योंकि आप जो इतनी देर तक पढ़ रहे हैं, तो अपने समाज की सिलवटों से वाकिफ तो जरूर होंगे।
न्यूज 18 में श्रीराम शर्मा लिखते हैं: “हमारे देश में ‘भारत’ और ‘इंडिया’ को लेकर की जाने वाली तुलना और ‘भारत‘ के साथ किए जाने वाले भेदभाव से जुड़ी बहस लंबे समय से चल रही है। साधन सम्पन्न लोग ‘इंडिया’ और अभावग्रस्त लोग ‘भारत’ में जीते हैं। यह भी सच है कि एक ही देश का समाज दो देशों में बंटता भी नजर आ रहा है, लेकिन क्या असमानता की यह खाई एक ही देश में कई अलग–अलग दुनियाएं भी बना रही हैं? और बना भी रही हैं तो कैसे? इसी सवाल की पड़ताल करती नजर आती है शिरीष खरे की किताब ‘एक देश बारह दुनिया‘ (Ek Desh Barah Duniya)।
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इंडिया डॉट कॉम में संतोष सिंह लिखते हैं: हिन्दी के ग्रामीण पत्रकार शिरीष खरे ने अपना अनुभव अपनी नई किताब ‘एक देश बारह दुनिया’ (Ek Desh Barah Duniya) में बयां किया है। यह अनुभव आज से बारह साल पहले महाराष्ट्र के विदर्भ की सतपुड़ा स्थित मेलघाट पहाड़ियों से है, जहां वह कुपोषण की एक न्यूज स्टोरी के सिलसिले में कोरकू आदिवासियों के बीच पहुंचे थे। इस पुस्तक में वह तस्वीर उभरती है जो अक्सर छिपाई जाती है। इसमें देश के उपेक्षित लोगों की ऐसी आवाजों को शामिल किया गया है जिन्हें अमूमन अनसुना और अनदेखा किया जाता है। इस तरह, इस पुस्तक में कुल बारह रिपोर्ताज हैं जो भारत की आत्मा कहे जाने वाले गांवों के अनुभवों को साझा करने से जुड़े हुए हैं।
किताब पर संतोष सिंह की पूरी टिप्पणी को यहां क्लिक कर पढ़ा जा सकता है।
हिंदी मीडिया की आंतरिक हलचलों को गंभीरता से दर्ज कर रही लोकप्रिय वेबसाइट भड़ासफॉरमीडिया ने शिरीष की किताब के बारे में लिखा है: कोरोना–काल के इस दौर में जब दुनिया डिजीटल पर आना चाहती है, तब बतौर पत्रकार शिरीष इस डिजीटल दुनिया से कटी भारत की आधे से अधिक आबादी की सच्ची कहानियों को लेकर हाजिर हुए हैं।
अपनी पुस्तक के बारे में बातचीत करते हुए शिरीष कहते हैं, “यह न मेरी पत्रकारिता बल्कि विचारों का सफरनामा भी है। इसमें मैंने समाचारों को तरहीज देने की बजाय हर एक जगह का विस्तार से वर्णन करते हुए उसे एक व्यापक परिदृश्य में खींचने का प्रयास किया है।” इस पुस्तक में शिरीष ने मेलघाट, कमाठीपुरा, कनाडी बुडरुक, आष्टी, मस्सा, महादेव बस्ती, संगम टेकरी, बरमान घाट, बायतु, दरभा घाटी, मदकू द्वीप और अछोटी जैसे अनजाने और अनसुने भारतीय गांवों या उनसे संबंधित स्थानों से ऐसे दृश्य खींचे हैं, जिनकी अक्सर अनदेखी की जाती रही है।
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अमर उजाला में पंकज स्वामी एक देश बारह दुनिया (Ek Desh Barah Duniya) के बारे में लिखते हैं: ‘राजपाल एंड सन्स‘, नई दिल्ली से प्रकाशित इस पुस्तक की खासियत देश में उपेक्षित और तिरस्कृत प्राकृतिक संसाधन तथा लोगों जैसे नदी, पर्यावरण, ग्रामीणों, किसानों, आदिवासियों, दलितों, महिलाओं, घुमंतुओं, वेश्याओं की त्रासदी का वर्णन है। शिरीष खरे यात्रा करते हुए वहां पहुंचते हैं, जहां सामान्यत: किसी की नज़र नहीं पड़ती और न ही उन्हें तवज्जो दी जाती है। इस पुस्तक को एक जमीनी पत्रकार के बनने की प्रक्रिया, उसकी पत्रकारिता से जुड़ी जीवन व दृष्टि का एक विस्तार कह सकते हैं।
पंकज स्वामी की पूरी टिप्पणी को यहां पढ़ा जा सकता है।
अपने तेवर और जमीनी रिपोर्टिंग के लिए मशहूर वेबसाइट द प्रिंट में उपासना ने शिरीष की किताब के बारे में लिखा है: वर्ष 2020 में ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ कि रिपोर्ट है कि विश्वस्तर पर 820 मिलियन से अधिक लोग भूखे हैं। ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ के अनुसार 2020 भारत 107 देशों की सूची में 94वें स्थान पर है। आगे ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के अनुसार ही विश्व में भूख तीन साल बाद भी कम नहीं हो रही है और मोटापा लगातार बढ़ रहा है। भूख और मोटापा दो कतई मुख्तलिफ़ दुनिया का चेहरा हैं। भारत में इन दो चेहरों को लेखक–पत्रकार शिरीष खरे ने अपने रिपोर्ताज़ में बखूबी उकेरे हैं। शिरीष का यह रिपोर्ताज़ संग्रह ‘राजपाल’ प्रकाशन से पिछले दिनों प्रकाशित हुआ है। इन रिपोर्ताज़ में हमारी दुनिया के उन कोने–अंतड़ों की मार्मिक तस्वीर है जिन्हें तथाकथित मुख्यधारा से काट दिया गया है, जिनकी आवाज़ न्यूज चैनल्स की टीआरपी न बढ़ा पाने के कारण इच्छाधारी नाग–नागिन, बिग बॉस, आईपीएल, बेसिर–पैर की वेब–सिरीज़ और कुराजनीतिक धक्कम–धक्का में खो गई हैं।
इस पूरी रपट को यहां क्लिक कर पढ़ा जा सकता है।
न्यूज लॉन्ड्री में आशुतोष कुमार ठाकुर लिखते हैं: राजपाल एंड सन्स, नई दिल्ली से प्रकाशित इस पुस्तक के भीतर महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य–प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, कर्नाटक, बुंदेलखंड और राजस्थान के थार से जुड़े तरह–तरह के अनुभव मिलते हैं. वहीं, देश के कुछ जनजातीय अंचलों में स्थानीय लोगों के साथ बिताए गए समय से जुड़ी रोचक और भावनात्मक घटनाएं हैं. ‘एक देश बारह दुनिया‘ (Ek Desh Barah Duniya) यानी एक ही देश के भीतर बारह तरह की दुनियाएं हैं जिन्हें शिरीष ने पत्रकारिता के अपने अनुभवों को एक पुस्तक की शक्ल देते हुए यह नाम दिया है. असलियत में यह पुस्तक हाशिये पर छूटे असल भारत की तस्वीर है.
आशुतोष की पूरी टिप्पणी को यहां क्लिक कर देखा जा सकता है।
इसके अलावा अन्य कई जगह पर शिरीष की किताब (Ek Desh Barah Duniya) का जिक्र है। जहां पता चलता है कि यह किताब क्यों हमारे आपके जेहन में दर्ज होती जा रही है।
कई समस्याओं का निचोड़ है शिरीष की किताब एक देश बारह दुनिया (Ek Desh Barah Duniya) में
‘एक देश बारह दुनिया’ पर दो पत्रकारों के बीच ‘भाव-संवाद’
शिरीष खरे की पुस्तक एक देश बारह दुनिया (Ek Desh Barah Duniya) के अंश
पुस्तक-चर्चा एक देश बारह दुनिया (Ek Desh Barah Duniya) -लेखक: शिरीष खरे
यह सारी समीक्षाएं और टिप्पणियां इसलिए ताकि हम समझ सकें कि इस किताब का महत्व कितना बढ़ा, व्यापक और स्थायी है।
असल में शिरीष के बनने में वह प्रक्रिया ढूंढी जा सकती है, जो इस तरह की किताब को लिखने, कहने के लिए जरूरी है। अपनी तहलका और पत्रिका समेत अन्य संस्थानों की नौकरियों और बड़वानी के इलाके में प्रेम और गृहस्थ जीवन की ओर मुड़ने से पहले शिरीष नरसिंहपुर से लेकर भोपाल और फिर दिल्ली से लेकर पुणे तक के सफर में अपने आप को जिस तरह से बचाए हुए हैं, अपने खुरदुरेपन, अपने खिलंदड़ेपन को उन्होंने जिस जीवट के साथ बापरा है, वह किताब के बनने की पूरी प्रक्रिया में साफ नुमायां होता है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि शिरीष की यह किताब (Ek Desh Barah Duniya) एक शुरुआत की तरह होगी, उनके खुद के लिए भी और अन्य युवा पत्रकार साथियों के लिए भी। इस किताब के जरिये वो अपने देश की अन्य दुनियाओं में झांकेंगे और बताएंगे कि इस महादेश के भीतर कितनी और कैसी दुनियाएं अभी अछूती हैं, जिनकी कहानियों से हम सब नावाकिफ हैं।