मूल कम्युनिस्ट पार्टी से अलग होकर सीपीएम ने की ऐतिहासिक गलती और जनता के साथ विश्वासघात: एलएस हरदेनिया
गुजरात नरसंहार की बरसी पर बैठक में सीपीआई ने लिया फासीवाद के खिलाफ जनता को लामबंद करने का संकल्प
भोपाल। कम्युनिस्ट पार्टी में टूट को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम की ऐतिहासिक गलती करार देते हुए वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक लज्जा शंकर हरदेनिया ने कहा कि आरएसएस और जनसंघ के फासीवादी एजेंडे से एकीकृत कम्युनिस्ट आंदोलन के जरिये ही लड़ा जा सकता है और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया से अलग होकर ऐतिहासिक गलती की थी। यह एक किस्म से जनता के साथ विश्वासघात था। जनसंघ के साथ खड़े होकर सीपीएम ने ही उन्हें राजनीतिक स्वीकार्यता दी। इस दौरान उन्होंने बंगाल में 23 साल ज्योति बसु के मुख्यमंत्री कार्यकाल की भी आलोचना करते हुए कहा कि यह क्यों फेल हो गया, कि सत्ता से जाते ही वहां से वामपंथ का नामोनिशान मिटने की नौबत आ गई है। वहां सरकार के रहते सेक्युलर फोर्स क्यों नहीं तैयार की गई। उन्होंने कहा कि आज हम चौराहे पर खड़े हैं। वे गुजरात में वर्ष 2002 में हुए नरसंहार और सांप्रदायिक दंगों की बरसी पर 28 फरवरी को स्थानीय शाकिर सदन में आयोजित बैठक में बतौर अध्यक्ष बोल रहे थे।
बैठक की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार लज्जा शंकर हरदेनिया ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सांप्रदायिक इतिहास और प्रतिगामी प्रवृत्तियों का उल्लेख करते हुए भारत के संवैधानिक मूल्यों और धर्म निरपेक्षता की रक्षा हेतु व्यापक स्तर पर मैदानी कार्य करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आरएसएस से मिलती जुलती संस्थाएं बहुत जिम्मेदारी से काम करती हैं। 1950 में संघ परिवार के संगठनों ने फंडामेंटल राइट महिला राइट के खिलाफ काम किया। उसके पहले आरएसएस का संविधान भी नहीं था, सरदार पटेल के कहने पर इन्होंने संविधान बनाया, जिसमें स्पष्ट था कि यह हिंदू पुरुषों का संगठन है। इसके बाद हिंदू कोड बिल आता है तो 7 दिन तक संसद के बाहर आरएसएस ने धरना दिया। आरएसएस के बड़े नेता करपात्री ने कहा कि यह नेहरू आधा अंग्रेज और आधा मुसलमान है यह हिंदुओं को अलग कर रहा है। अंबेडकर के खिलाफ भी आरएसएस ने गलत शब्दों का इस्तेमाल किया कि इसको क्या अधिकार है, जो हिंदुओं के लिए कुछ कहे।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल बनाने की वकालत आरएसएस में गोलवलकर ने की और कहा कि इसके बिना हमारे उद्देश्य हासिल नहीं किए जा सकते हैं। आरएसएस ने शुरू से ही गऊ हत्या नहीं होने देंगे, यूनिफॉर्म सिविल कोड और धारा 370 को पकड़ा। यह हिंदु समुदाय को एकजुट करने के लिए उन्होंने लगातार अपने साथ ये मुद्दे रखे। इसके लिए शाखाएं बनीं, सरस्वती शिशु मंदिर बनाए।
उन्होंने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सीपीएम ने जनसंघ को दिलाई पहचान। 1975 के पहले जब तक सीपीएम ने उनका साथ नहीं दिया था, तब तक जनसंघ की कोई खास राजनीतिक ताकत नहीं थी। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि कांग्रेस अपनी नीतियों पर हटी, आजादी के बाद जो काम हुआ उसे कांग्रेस ने भुला दिया और अलग तरह की राजनीति में फंस गई। उन्होंने कहा कि आप देखें कि 2000 तक देश के किसी दंगे में अपराधी को सजा नहीं हुई। चाहे बंबई हो, या जमशेदपुर या उत्तरप्रदेश में हाथ बांधकर पीठ पर गोली मारने वाली घटना हो, अभी तक इनमें फैसला नहीं हुआ। जितने जुडिशियल कमीशन बने उनकी रिपोर्ट बताती हैं कि इन दंगों में आरएसएस की भूमिका थी। दंगे कैसे किए जाते हैं, इसकी भी स्पष्ट रणनीति सामने आई विभिन्न कमीशनों ने इस बात को रेखांकित किया। विभिन्न नारों तक को देखा गया।
उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण आयोग हो या सच्चर कमेटी की रिपोर्ट सभी को धूल खाने के लिए रख दिया जाता है। सच्चर कमेटी की मनमोहन सिंह ने बनाई और इसके बाद सांप्रदातिक देंगे कैसे रोक जाएं इस पर कानून का अच्छा ड्राफ्ट बना था, लेकिन आज तक इसे लागू करने की इच्छा किसी पार्टी ने नहीं दिखाई है।
मानवीय, प्रगतिशील, धर्म निरपेक्ष मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध नागरिकों की इस बैठक में वक्ताओं ने गुजरात में हुए नरसंहार और उसके बाद फासीवादी ताकतों के लगातार बढ़ते प्रभाव पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इसे भारत के संवैधानिक मूल्यों, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए घातक निरूपित किया। इस अवसर पर फासीवाद के खिलाफ भारत की जनता को लामबंद करने और भारत के संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के संकल्प का प्रस्ताव पारित किया गया।
गुणों को दोष और दोषों को गुण समझने का दौर: शैली
बैठक का संचालन और विषय प्रवर्तन करते हुए कॉमरेड शैलेन्द्र शैली ने किया। उन्होंने गुजरात में हुए नरसंहार के दुष्परिणामों का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि फासीवाद के खिलाफ जनता को लामबंद करने को ऐतिहासिक जिम्मेदारी इस समय कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं पर है।
उन्होंने कहा कि भारत में फासीवादी एजेंडे की शुरुआत महात्मा गांधी की हत्या से होती है और गुजरात का नरसंहार इसमें एक प्रमुख परिघटना है। इस समय देश की विविधतापूर्ण संस्कृति पर लगातार हमले हो रहे हैं। फासीवादी ताकतों के हौसले बढ़ रहे हैं और उस तरह का प्रतिरोध नहीं हो रहा है, जिसकी दरकार है।
उन्होंने कहा कि फासीवाद के खतरे को सबसे पहले एक लेखक के रूप में गजानन माधव मुक्तिबोध ने रेखांकित किया था। इसके बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस संकट को सबसे पहले राजनीतिक रूप से पहचाना। उन्होंने कहा कि गुजरात और मध्य प्रदेश आरएसएस की प्रयोगशालाएं हैं। फासीवादी के खिलाफ बतौर कम्युनिस्ट हमें लगातार सार्थक कोशिश करनी होगी। आज गुणों को दोष की तरह और दोष को गुण की तरह बताने का चलन है। धर्मनिरपेक्षता जैसा गुण अब दोष बनाने की कोशिश की जा रही है और सांप्रदायिकता के दोष को गुण की तरह बताया जा रहा है। इसलिए यह संकट का समय है, लेकिन हर संकट एक मौका लेकर आता है। हम जनता को किस तरह सही पक्ष पर एक जुट कर सकते हैं, यह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की ऐतिहासिक चुनौती है।
फरवरी 2002 भारतीय इतिहास का निर्णायक बिंदु: सत्यम पांडे
इस मौके पर कॉमरेड सत्यम पांडे ने गुजरात में भाजपा सरकार के संरक्षण में हुए दंगों के सच को बताया। कॉमरेड सत्यम पांडे ने सांप्रदायिक ताकतों और फासीवाद के खिलाफ निर्णायक संघर्ष करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि फरवरी 2002 आजादी के बाद भारतीय इतिहास का एक ऐसा निर्णायक बिंदु है, जहां से सब कुछ बदल जाता है। आजादी के बाद नेहरू की मौत, इंदिरा गांधी की हत्या हो या राजीव गांधी की हत्या उसके बाद 6 दिसम्बर 92 ने इतिहास और देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बदला। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए 6 दिसंबर यानी बाबा साहब के जन्मदिन को चुना गया इसके गहरे निहितार्थ हैं। इसके बाद एक बड़े दंगे की तैयारी की गई। दंगा 84 में भी हुआ और इसके बाद भी। लेकिन सरकार और लोग जिस तरह से फरवरी 2002 में साथ थे, वैसा पहले कभी नहीं हुआ।
उन्होंने कहा कि अब तो सब सामने आ गया। न्यूज चैनलों के स्ट्रिंग और अन्य रिपोर्ट से कई साबित हो गया है कि सरकार ने निर्देश दिए थे कि पुलिस कुछ न करे। ट्रेन हादसे को लेकर उन्होंने कहा कि रेलवे ने अपनी जांच में बताया कि जो हुआ वो अंदर से हुआ। जस्टिस बनर्जी कमीशन ने बताया कि अंदर से ही आग लगी। उसे बहाना बनाया गया। यह सब कुछ आसान नहीं रहा है। अहसान जाफरी जो सांसद थे, उनकी जान तमाम कोशिशों के बावजूद नहीं बचाई जा सकी। उन्होंने दिल्ली तक अपने सभी राजनीतिक, प्रशासनिक रसूख को आजमाया, लेकिन कोई उनकी मदद नहीं कर सका। नरोदा पाटिया में ही हजारों जानें इसी तरह चली गईं। दंगों के बाद इशरत जहां का केस हो या एसबी श्रीकुमार जो डीजी थे। संजीव भट्ट आज तक जेल में हैं। सरकार के हुक्मनामे को न मानने उसके खिलाफ जाने की सजा हर किसी को दी जा रही है। इसके लिए कोई भी प्रक्रिया हो बस उसे दो लोग चला रहे हैं। इस तरह यह दंगा सरकार या पुलिस नहीं बल्कि पूरे तंत्र की विफलता की कहानी है। जिसने भी इन दंगों का सच सामने लाने की कोशिश की उसे मार डाला गया। पूरे सिस्टम को कब्जा कर लेना और जनता को स्वामी भक्त बना देना ही फासीवाद की रणनीति है और इसी पर हमारा देश अभी चल रहा है।
यहां आपके घर में जो मांस रखा है, वो गाय का है, इस आरोप की सत्यता जांचे बिना किसी को मार डाला जाता है। गुजरात में एक व्यक्ति शौच के लिए जाती महिलाओं से हो रही छेड़छाड़ का विरोध करता है और उसे मार डाला जाता है। यहां दाड़ी से लेकर किसी भी ऐसे व्यवहार के लिए मारा जा सकता है, जो सत्ता को नापसंद है।
सत्यम ने कहा कि जो देश बनाने जा रहे हैं उसमें खाने, पहनने, वेशभूषा सब सरकार तय कर रही है। इसी तरह फासीवाद आता है, जो आ चुका है।
उन्होंने कहा कि इस कठिन राजनीतिक स्थिति में कम्युनिस्ट पार्टी की भूमिका अहम है। कांग्रेस यह लड़ाई नहीं लड़ पाएगी। यह ताकत हमें लानी होगी और इसमें सबको शामिल करना होगा, सबको साथ लेकर आना होगा। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की व्यापक समझ के बिना कोई पार्टी इस फासीवाद से नहीं लड़ पाएगी यह एक सच्चाई है।
थिंक टैंक की अपनी भूमिका पर लौटने का दौर: मौर्या
कॉमरेड शिवशंकर मौर्य ने गुजरात में हुए नरसंहार के बाद फासीवादी प्रवृत्तियों की भाजपा सरकार द्वारा मेहनतकशों के खिलाफ जारी जन विरोधी नीतियों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि देश के निर्माण में कम्युनिस्ट पार्टी की भूमिका थिंक टैंक की रही है। कांग्रेस के साथ भी वर्किंग कमेटी में 4 से 5 कम्युनिस्ट साथी हमेशा रहे हैं। उन्होंने जनसंघ की देश की राजनीति में भूमिका की आलोचना करते हुए कहा कि गुजरात का दंगा फासीवादी ताकतों का प्रयोग है और इससे धर्म, गुस्सा, नफरत को बढ़ावा देकर आज एक भयावह माहौल बना दिया गया है।
कठिन होता जा रहा है ट्रेड यूनियनों का काम : गुणशेखरण
साथ ही कॉमरेड गुणशेखरण ने सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ श्रमिक संगठनों की भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ट्रेड यूनियन हमेशा से मास आर्गेनाइजेशन रहे हैं। इसके मूल में ही सेक्युलरिज्म है। यहां हर तबके के लोग एक उद्देश्य के लिए इकट्ठा हुए हैं। लाला लाजपत राय के जमाने से यह ट्रेड यूनियन का मूल रहा है। बाद में सरकार की नीतियाों के साथ ट्रेड यूनियन डेवलप हुए वे सोशल फेब्रिक को ध्वस्त करते हुए बने। सत्ता के शीर्ष पर कोई भी पहुंचा है, तो उसके बाद ट्रेड यूनियन की भूमिका आती है। ट्रेड यूनियन का काम अलग तरह का होता है। कोई भी सरकार हो उसकी नीतियों के खिलाफ संघर्ष करते रहना ही ट्रेड यूनियन का काम है, क्योंकिन हर इंडस्ट्री में नीतियों से मजदूर को जूझना होता है। हालांकि अब सरकार समर्थक यूनियनें भी हैं, जो काम को मुश्किल कर रही हैं। इसके बावजूद ईमानदार और मास आर्गनाइजेशन अपना काम कर रही हैं।
बाजारवाद ने बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच बढ़ाई खाई: सिद्दीकी
कॉमरेड एएच सिद्दीकी ने भारत में सांप्रदायिक, फासीवादी ताकतों के बढ़ते प्रभाव पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भारत जब तरक्की की तरफ बढ़ रहा था, तो इस विशाल देश के बाजार को कैसे साम्राज्यवादी ताकते लूट सकें इसके लिए समाज में विभाजन पैदा किया गया। बाजारवाद के पहले भारत का बहुसंख्यक समाज जो अपने मूल में सेक्युलर था, जबकि अल्पसंख्यक समाज अधिक कट्टर था। लेकिन बाबरी मस्जिद के गिरने के बाद लगातार देश में आरएसएस ने जो सपना देखा, उसके तहत हिंदुस्तान में कई दंगे हुए और हिंदू धार्मिकता बढ़ती गई। उन्होंने कहा कि एक सुनियोजित ढंग से गुजरात का दंगा हुआ। पाकिस्तान जैसा देश धर्म की राजनीति के साथ आज किस हाल में पहुंचा है, इससे हमें सबक लेना चाहिए और एक ही धर्म के होते हुए बांग्लादेश अलग हुआ यह भी समझना चाहिए। धर्म के आधार पर कोई राज्य आगे नहीं बढ़ सकता है।
इस अवसर पर कॉमरेड नवाब उद्दीन, शंकर राव, यूसुफ खान, दिलीप विश्वकर्मा, जब्बार भाई, जमुना प्रसाद, नन्द किशोर शर्मा, शेर सिंह, एसएस शाक्य, कुलदीप आदि बातचीत में शामिल हुए।