Covid Tales: हमारे बेटे और फिर उनके बेटे भी मजदूर ही बनेंगे!

प्रदीप सिंह
Covid Tales: कोरोना की दूसरी लहर से देश त्रस्त है और एक बार फिर भोपाल लॉकडाउन के हवाले है। सरकार के लिए लॉकडाउन सिर्फ एक एलान है। ऐसा एलान करते वक्त ऐसे लोगों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा जाता, जिनके लिए अगले दिन खाने का ठिकाना नहीं होता है। यह तबका मजदूरों का है। उन्हें भी समझ आने लगा है कि उनकी जरूरत सिर्फ चुनाव में पड़ती है। उसके बाद उनके बारे में कभी नहीं सोचा जाता। जब यह मजदूर कहते हैं कि हमारा बेटा और उसका बेटा भी मजदूरी ही करेगा, क्योंकि हमें आगे बढ़ाने के लिए सरकार कोई योजना नहीं लाती है। उनकी इस बात से इस देश की स्थिति और सरकारों के दोहरे चरित्र को समझा जा सकता है।

सिकंदराबाद नई बस्ती से लगी हुई झुग्गी बस्ती में मजदूरी का काम करने वाले विनोद, अरमान, गंगाराम (परिवर्तित नाम) का कहना है कि हम लोग दूसरे जिलों से आकर यहां मजदूरी का काम हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से हम लोगों का काम बंद है। हमें खाने के लाले पड़ गए हैं। सरकार की सिर्फ घोषणाएं सुन रहे हैं। अभी तक मदद के तौर पर हम लोगों को एक दाना राशन का भी नहीं मिला है।

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इन मजदूरों का कहना है कि नाम के लिए काफी संस्थाएं हैं। आए दिन न्यूज़पेपर में देखते हैं कि फलां व्यक्ति ने मदद की, फलानी बस्ती में राशन बाटें, लेकिन इस जगह पर लोग मदद करने नहीं आ रहे हैं। हम गरीबों की जिंदगी ऐसे ही निकलेगी। हम लोगों को तब याद किया जाता है जब कोई चुनाव आता है। तब ऐसा लगता है कि यह हमारे कितने हितेषी हैं, जो हमारे घर पर मिलने आते हैं और उस समय यह लोग हाथ फैलाकर झोली फैलाकर हम लोगों से वोट देने की अपील करते हैं। कहते हैं मतदान ही सबसे बड़ा दान है आप लोग हमें दान करो।

मजदूरों का दर्द है कि पांच वर्ष तक हम गरीबों की किसी अधिकार की बात नहीं होती। चाहे वह हमारे बच्चों की पढ़ाई का हो या हम लोगों के दवा-स्वास्थ्य या खाने की सामग्री का हो। जो पैसे वाले हैं उनके पास गरीबी रेखा का राशन कार्ड है हम गरीबों के लिए वह भी नहीं है।

हम मजदूरी करते हैं, फिर मेरे बच्चे मजदूरी करेंगे फिर मेरे बच्चों के बच्चे मजदूरी करेंगे पीढ़ी दर पीढ़ी क्या यही चलता रहेगा। हम लोग भी चाहते हैं कि हमारे बच्चे आगे बढ़ें और पढ़ाई करें, लेकिन हम लोगों को अवसर ही नहीं दिया जाता। संविधान अवसर और समानता की बात करता है। कौन कराएगा पालन? कैसे बढ़ेंगे हम? क्या यही हमारे अधिकार हैं क्या यही हम मजदूरों को मिलना चाहिए कि दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज रहें। नसीब को कोसते हैं। काम करते हैं और एक दिन दुनिया से चले जाते हैं। यही है हम गरीबों की जिंदगी है।

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मैं सत्ता में बैठे लोगों से पूछना पूछना चाहता हूं कि हमारी लाचारी, मजबूरी के लिए जिम्मेदार कौन है? जो दिन-रात एक करके आपके घरों को चमकाते हैं और आप के खेतों को चमन बनाते हैं। यहां तक कि चलने वाली रोड को भी सजाते और संभालते हैं उसके किनारे लगे गमलों को देखकर लोग मुस्कुराते हैं और कहते हैं, यहां की सरकार की नीति अच्छी है तभी तो इतना सुंदर शहर है, लेकिन उसमें काम करने वाले लोगों की और उनके परिवारों की बात कोई नहीं करता। गमले लगाने वाले और उसमें पानी डालने वाले की कोई बात नहीं करता। किसी भी आपदा की स्थिति में स्वास्थ और जीवन से जुड़े सभी प्रकार की सहायता पाना हमारा भी हक है। सरकार का कर्तव्य है कि वह उसे पूरा करे।