लोकतांत्रिक समाज के लिए महिलाओं ने उठाया झंडा
भोपाल। 23 फरवरी को देशभर से आई हुई महिलाओं ने भोपाल की दलित, आदिवासी, मुसलमान, हिन्दू, नास्तिक और अन्य जेंडर के लोगों के साथ नीलम पार्क में बैठकर एकजुटता से फासीवादी ताकतों से लड़ने का संकल्प लिया। असम से आई तान्या ने कहा कि हम औरतें चूड़ी भी पहनेंगे। हम बुर्खे भी पहनेंगे, हम खाना भी बनाएंगे, हम बच्चों को भी सम्भालेंगे और हम सड़क पर भी आएंगे।
प्रकाश अम्बेडकर ने अपने व्याख्यान में कहा इस सरकार ने वंचित तबकों के साथ काम कर रहे लोगों को भीमा कोरेगाँव-एल्गार परिषद् के झूठे केस में ‘शहरी नक्सली’ की मनगढंत कहानी से फंसाया है। सरकारी जांच अधिकारियों कहते हैं कि यह लड़ाई कोर्ट में जाकर लड़िए, लेकिन अदालतें भी हमें न्याय नहीं दे पायी हैं। इन बातों से, वो नागरिकता हो, या नक्सली मसला, लोगों के बीच आशा लटकाते रहते हैं। यह लड़ाई लोगों को ही सब जगह लड़नी होगी। NRC के संदर्भ में उन्होंने कहा कि एनआरसी 40% हिंदुओं के ख़िलाफ़ जाएगी। आपराधिक जनजाति कानून से विभिन्न समुदायों को, जो ‘पिंडारी’ होते थे और आज देश के 16% आबादी हैं, उनके पास कहाँ से दस्तावेज आयेंगे। आज 70 साल की आज़ादी के बाद 60% आबादी के पास गांव नहीं है। सरकार को देखना होगा कि अब हम बुद्धू नहीं बनेंगे, हिन्दू समाज के लोग जागृत हो चुके हैं। और यह आर पार की लड़ाई है; यह तरह तरह के स्टेटमेंट देंगे कि हम एनआरसी नहीं करेंगे लेकिन हम बुद्धू नहीं हैं।
पश्चिम बंगाल से आयी निशा ने भी इसी बात में जोड़ा कि एनआरसी नहीं करोगे, तो एनपीआर क्यों कर रहे हैं। हम जनगणना में साथ देना चाहते हैं, लेकिन जब न जनगणना से हमारी जिंदगियां बदली हैं और एनपीआर से और मुश्किल आयेगी, तो हम कोई जवाब नहीं देंगे| ‘वी द पीपल’ को ही संविधान बचाना है।
इस मौके पर भोपाल के युवाओं के संगठन इंसानी बिरादरी ने सभी संगठनों के साथ ‘असहयोग आन्दोलन’ की घोषणा की।
बड़वानी से जागृत आदिवासी दलित संगठन से माधुरी बहन ने बोला कि अब आज़ादी की लड़ाई तब तक लड़ी जाएगी जब तक जीत नहीं हासिल हों। उन्होंने कहा अभी वोटर सरकार चुनती थी। और अब सरकार तय कर रही कौन रहेगा वोटर।
इस मौके पर उर्दू, हिंदी और अंग्रेज़ी में कविताओं से देश के वंचित और दूर के इलाकों की परिस्थितियां व्यक्त की गईं। कश्मीर की चुप की गई आवाज़ के बीच में यह आवाज़ें हमें इन क्षेत्रों की खबर मिली।
wss द्वारा की गई सॉलिडेरिटी भ्रमण की टीम सदस्यों ने साझा किया कि 1913 में पहली बार कश्मीरी ज़मीन और नौकरियां राज्य के लोगों के लिए की गई थी क्योंकि यह कश्मीरी पंडितों की माँग थी कि नौकरियां अंग्रेजों और कश्मीर के अंदर के रहवासियों के लिए ही रखी जाए। आज कश्मीर का हर इंसान लगातार ज़ुल्म से जख्मी है।
महिला मंच की राम कुंवर ने भी सरकार को चेताते हुए कहा कि इस आन्दोलन में हमें एक दूसरे के विरुद्ध बांटने की कोशिश मत करो। अगर सरकार अभी भी बात नहीं समझी, तो हम सब सड़क पर आयेंगे।
बस्तर से आयीं सोनी सोरी और झारखंड से आयीं अलोका कुजूर के व्याख्यान में लौह अयस्कों और खनन के लिए आदिवासीयों को उनकी ज़मीन से बेघर करने के संघर्ष में लोगों के मानव अधिकारों के हनन, झूठे मसलों में फ़साने और ‘नक्सली’ कहकर जेल में भरने की बात कही। उन्होंने कहा कि हम पीछे नहीं हटेंगे, यह फ़ासीवादी सांप्रदायिक और पूंजीवाद पर टिकी सरकारों को देश के लोगों की बात सुननी होगी।
इस बातचीत के दौरान नौकरियां, शिक्षा, जल जंगल ज़मीन के अधिकारों की पूर्ति पर ध्यान देने की पुकार और नफरत की राजनीति के विरुद्ध एक साझी आवाज़ में औरतों के संघर्ष पर ध्यान आकर्षित हुआ। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि चाहे वो घर के अन्दर लड़ाई हो, या बाहर की लड़ाई हो, इसमें औरतें ही सबसे ज़्यादा दमन का सामना करती आयी हैं। फिर चाहे वो राजकीय ताकतों द्वारा की जाए, या समाज और परिवार द्वारा। शाहीन बाग़ से भोपाल के इकबाल मैदान तक संघर्ष कर रही औरतों से प्रेरणा मिलती हैं। इस दौरान कहा गया कि हमारे विरोध प्रदर्शन में सिर्फ भाषण से ही नहीं, बल्कि संगीत, कविताओं, नज्मों, कथाओं से बाँध कर उतने ही बुलंद तरीकों से, लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए हम अपने अनेक सुरों को एक राग में पिरो कर व्यक्त करते हैं।