अमेरिकी साम्राज्यवाद का भविष्य: क्या अमेरिका 21वीं सदी में भी विश्व शक्ति बना रहेगा?
सचिन श्रीवास्तव
20वीं सदी अमेरिका की थी— द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से अमेरिका ने खुद को दुनिया का “एकमात्र सुपरपावर” घोषित कर दिया था। लेकिन अब 21वीं सदी में हालात बदल रहे हैं। चीन और रूस अब अमेरिका को सीधी चुनौती दे रहे हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था कर्ज और वित्तीय अस्थिरता से जूझ रही है। वैश्विक राजनीति में BRICS और अन्य देश अमेरिका के प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं।
इस समय बड़ा सवाल यही है कि क्या अमेरिका 21वीं सदी में भी विश्व शक्ति बना रह सकता है, या उसका पतन तय है?
अमेरिकी साम्राज्यवाद के तीन स्तंभ और उनकी कमजोरी
अमेरिकी डॉलर वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, लेकिन अब वह खतरे में है। 20वीं सदी में अमेरिका ने डॉलर को वैश्विक मुद्रा बनाया। 1971 में गोल्ड स्टैंडर्ड खत्म करके डॉलर को महाशक्ति का हथियार बनाया। अब चीन, रूस, भारत और अन्य देश डॉलर से दूर होने की कोशिश कर रहे हैं।
इस सीरीज के अन्य लेख यहां पढ़ें: अमेरिकी साम्राज्यवाद और वैश्विक संघर्ष में भारत की भूमिका
अमेरिका की दूसरी बड़ी ताकत उसकी सैन्य शक्ति है, लेकिन क्या यह टिक पाएगी?
दुनिया की सबसे बड़ी सैनिक ताकत को लगातार युद्धों (अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, यूक्रेन) ने कमजोर कर दिया है। अब अमेरिका के पास इतना संसाधन नहीं है कि वह एक साथ कई युद्ध लड़ सके।
अमेरिका की तीसरी ताकत उसकी वैचारिक शक्ति है, जो “लोकतंत्र” के झूठ को बनाए रखती है। अमेरिका “लोकतंत्र” के नाम पर देशों पर नियंत्रण करता रहा है। लेकिन अब अमेरिका की अपनी राजनीति ही बिखर रही है— ट्रम्प बनाम बाइडेन, नस्लीय हिंसा, और अंदरूनी अस्थिरता इस सबके बीच दुनिया को अब अमेरिकी “लोकतंत्र” पर भरोसा नहीं रह गया है।
अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती देने वाली ताकतें
अमेरिका को चुनौती देने वाली पहली ताकत चीन है, जो 21वीं सदी की नई महाशक्ति है। चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, और वह अमेरिका को आर्थिक रूप से पीछे छोड़ सकता है। Belt and Road Initiative (BRI) के जरिए चीन ने अमेरिका को टक्कर दी है। अमेरिका अब चीन को रोकने के लिए ताइवान और इंडो-पैसिफिक में तनाव बढ़ा रहा है।
रूस भी अमेरिका को लगातार चुनौती दे रहा है और सोवियत संघ के बिखराव के बाद वह सैन्य और ऊर्जा दोनों में अमेरिका के सामने खड़ा है। रूस ने अमेरिका के प्रतिबंधों का जवाब देकर अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत रखी। यूक्रेन युद्ध ने दिखा दिया कि अमेरिका रूस को कमजोर नहीं कर सकता। अब रूस और चीन साथ मिलकर अमेरिका के खिलाफ रणनीति बना रहे हैं।
अमेरिका के लिए तीसरी चुनौती BRICS और ग्लोबल साउथ से है, जो नई विश्व व्यवस्था बन रही है। भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और अन्य विकासशील देश अब अमेरिका के प्रभाव से दूर हो रहे हैं। BRICS देशों ने अपने व्यापार में डॉलर की जगह अपनी मुद्राओं का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। यह अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
अमेरिका की नई रणनीतियां: वर्चस्व बचाने की कोशिश
डिजिटल डॉलर और आर्थिक प्रभुत्व के जरिये अमेरिका अपना वर्चस्व बचाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका अब डिजिटल डॉलर (CBDC) लाकर वैश्विक वित्त पर पकड़ बनाए रखना चाहता है। अगर यह सफल रहा, तो अमेरिका किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को ब्लॉक कर सकता है।
दूसरे वह सैन्य गठबंधनों का विस्तार कर रहा है। अमेरिका ने NATO को और मजबूत किया है। AUKUS और QUAD जैसे नए सैन्य गठजोड़ बनाए गए हैं। लेकिन यह रणनीति लंबे समय तक टिकेगी या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है।
इस बीच वैश्विक अस्थिरता फैलाकर भी अमेरिका अपने प्रभाव को बनाए रखना चाहता है। अगर अमेरिका को लगेगा कि वह कमजोर हो रहा है, तो वह और ज्यादा युद्ध भड़काने की कोशिश करेगा। चीन-ताइवान, रूस-यूरोप, मध्य पूर्व—यह सभी इलाके अमेरिका की रणनीति के केंद्र में हैं।
अमेरिका का भविष्य: महाशक्ति या पतन?
अमेरिकी पतन की संभावना इस दौर में ज्यादा है। अगर डॉलर की ताकत खत्म हुई, तो अमेरिका का प्रभुत्व भी खत्म होगा। इसी तरह चीन और रूस का गठबंधन मजबूत होता है, तो अमेरिका कमजोर हो सकता है। साथ ही अमेरिका ने ज्यादा युद्ध किए, तो उसकी अपनी अर्थव्यवस्था डूब जाएगी।
अगर इस दौर में अमेरिका को बचना है, तो उसे अपनी आक्रामक नीति छोड़नी होगी। नया अमेरिका एक सहयोगी शक्ति के रूप में उभर सकता है, लेकिन यह कितना संभव है?
कुल मिलाकर 21वीं सदी में अमेरिका का भविष्य अनिश्चित है। अमेरिका अब पहले जैसा मजबूत नहीं रहा है। चीन, रूस और BRICS उसे चुनौती दे रहे हैं। अगर अमेरिका ने अपनी नीति नहीं बदली, तो उसका पतन तय है। लेकिन अमेरिका अभी भी बहुत ताकतवर है और अंतिम लड़ाई लड़ रहा है।