Farmers Movement: क्या 2020 की जनवरी की तरह केंद्र के विरोध का गवाह बनेगा 2021 का शुरूआती महीना?
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किसान डटे हैं, 3 कृषि कानून और बिजली बिल की वापसी की मांग पर, तो सरकार बतिया रही अन्य मुद्दे
200 जिलों में किसानों का स्थायी प्रदर्शन जारी, 27 को मन की बात के समय पीटेंगे थाली
भोपाल। आज किसान आंदोलन को एक महीना पूरा हो गया है और इस बीच किसानों ने 3 बार सरकार के साथ टेबल पर बातचीत की है। आंदोलन के पहले भी 2 बार वे बतिया चुके थे। इस बीच पिछले दो सप्ताह से चिट्ठियों का आदान प्रदान भी चल ही रहा है। इस सबका हासिल यह रहा है कि अब देश के 200 जिलों में किसान धरना प्रदर्शन और लगातार संघर्ष कर रहे हैं। यानी दिसंबर 2020 में जो हालात थे लगभग वैसे ही हालात फिर बनते दिख रहे हैं। फर्क बस इतना है कि तब देश का एक बड़े अल्पसंख्यक वर्ग ने सरकार विरोध की अगुवाई थी, तो इस बार देश की सबसे बड़ी आबादी किसान केंद्र सरकार के खिलाफ लामबंद हैं। मौजूदा राजनीतिक जमीन और आंदोलनरत समूहों की एकजुटता को देखें तो किसी तरह का शक नहीं रहना चाहिए कि 2021 का शुरूआती महीना भी सरकार विरोध की तकरीरों और तहरीरों के साथ इंकलाबी नारों से भरा रहने वाला है। इतना ही नहीं देश के साथ विदेशों से भी इन कानूनों के खिलाफ आवाज तेज होने लगी है।
Great! Farm laws: Seven US lawmakers, including Pramila Jayapal, write to Mike Pompeo over farmer protests.
They said that although the agitation is of particular concern to Sikh-Americans linked to Punjab, it also heavily impacted other Indian-Americans. https://t.co/FMhOqM7JZT— Prashant Bhushan (@pbhushan1) December 25, 2020
अभी तक सरकार के लिए राहत की बात यह थी कि देश के अन्य हिस्सों में छुटपुट विरोध हो रहा था, लेकिन दिसबर के तीसरे सप्ताह में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों से भी किसान आंदोलन की खबरें आने लगी हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में जिलावार विरोध प्रदर्शन हो रहा है, और खास बात यह है कि इन सबके तार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस बात से सरकार भी बेखबर नहीं है, लेकिन अब पीछे कदम खींचना, यानी कानूनों की वापसी में सरकार को अपनी हार दिख रही है। यह हार तब मायने नहीं रखती जब किसान ही सामने होते, लेकिन खुद सरकार ही इस आंदोलन को विपक्ष का भ्रमजाल कह चुकी है, तो ऐसे में अगर वह कदम पीछे खींचती है, तो फिर उसे यह भी जवाब देना होगा कि वह किसानों के प्रति नत मस्तक हुई है, या फिर विपक्ष की एकता के कारण झुकी है? जाहिर है सरकार की हालात इस समय सांप और छछूंदर वाली हो चुकी है।
#WATCH | Protesters agitating against the new farm laws run a tractor over a police barricade in Bajpur, of the Udham Singh Nagar district in Uttarakhand pic.twitter.com/aI97qNcg0U
— ANI (@ANI) December 25, 2020
इसलिए 3 कृषि कानूनों पर ऐसा तो नहीं कहा जा सकता है कि कोई डेडलाॅक है, मामला तो आगे बढ़ रहा है। लेकिन अगर एक लाइन में बात समझनी हो तो वह इतनी भर है कि किसान जहां तीनों कृषि कानूनों की बिना शर्त वापसी की मांग कर रहे हैं, तो वहीं सरकार अन्य मुद्दों पर खेल रही है।
आज अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की प्रेस विज्ञप्ति में भी इस बात पर जोर दिया गया है। एआईकेएससीसी ने कहा है कि सरकार जानबूझकर किसानों की ‘तीन कानून व बिजली बिल’ वापसी की मांग को ‘नहीं पढ़ रही’। ‘अन्य मुद्दों’ की मांग कर रही है। किसानों ने अपने पिछले खतों में स्पष्ट रूप से लिखा है कि, सवाल कानून वापसी का है, सुधार का नहीं।
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किसानों ने यह भी कहा है कि सरकार का प्रस्ताव बन्द दिमाग और शर्तों के साथ है। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि किसानों को वार्ता से इंकार नहीं है। किसान किसी जल्दी में नहीं, जब तक सरकार न सुने, वे मोर्चे पर डटे रहेंगे। एआईकेएससीसी ने 26 को ‘धिक्कार दिवस’ और ‘करपोरेट बहिष्कार’ करने की अपील की है। साथ ही देश के 200 से ज्यादा जिलों में विरोध कार्यक्रम व स्थायी धरने जारी हैं।
आने वाले दिनों में 27 दिसंबर को प्रधानमंत्री की मन की बात के समय किसानों ने देश के अवाम से ‘थाली पीटने का आह्वान किया है। साथ ही एआईकेएससीसी ने हरियाणा में 13 किसानों द्वारा मुख्यमंत्री का विरोध करने पर 307 का मामला दर्ज करने की निंदा की है।
बता दें कि एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने सरकार द्वारा किसानों की ‘तीन कृषि कानून’ व ‘बिजली बिल 2020’ को रद्द करने की मांग को पहचानने तक से इंकार करने की कड़ी निन्दा की है और कहा कि सरकार इसे हल नहीं करना चाहती। 24 दिसम्बर को सरकार के पत्र में ‘3 दिसम्बर की वार्ता में चिन्हित मुद्दों’ का बार-बार हवाला है, जिन्हें सरकार कहती है, उसने हल कर दिया है और वह उन ‘अन्य मुद्दो’ की मांग कर रही है, जिन पर किसान चर्चा करना चाहते हैं।
एआईकेएससीसी ने कहा है कि किसान यूनियनों के जवाब में उन्होंने जोर दिया था कि सरकार ने ही कानून की धारावार आपत्तियों की मांग उठाई थी। इन्हें चिन्हित करने के साथ किसान नेताओं ने सपष्ट कहा था कि इन कानूनों के तहत ये धाराएं किसानों की जमीन व बाजार की सुरक्षा पर हमला करती हैं और कारपोरेट व विदेशी कम्पनियों द्वारा खेती के बाजार में प्रवेश की सेवा करती हैं। नीतिगत तौर पर दृष्टिकोण, मकसद और संवैधानिकता के आधार पर ये अस्वीकार हैं।
परन्तु सरकार ने जानबूझकर इसे नजरंदाज किया। जाहिर है कि पिछले 7 माह से चल रहे संघर्ष, जिसमें 2 लाख से अधिक किसान पिछले 29 दिन से अनिश्चित धरने पर बैठे हैं, की समस्या को हल करने को सरकार राजी नहीं है।
एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने कहा कि सरकार का दावा कि वह खुले मन से सहानुभूतिपूर्वक वार्ता कर रही है, एक छलावा है। उसका दिमाग पूरी तरह से बंद है और कानूनों में कुछ सुधारों पर अड़ा हुआ है। वह देश के लोगों को धोखा और किसान आन्दोलन को बदनाम करना चाहती है। उसकी योजना है कि यह दिखा कर कि किसान वार्ता के लिए नहीं आ रहे, वह किसानों को हतोत्साहित कर दे, विफल हो जाएगी। किसान नेताओं ने कभी भी वार्ता के लिए मना नहीं किया। वे किसी भी तरह की जल्दी में नहीं हैं और कानून वापस कराकर ही घर जाएंगे।
चारों धरना स्थलों की ताकत बढ़ रही है और कई महीनों की तैयारी करके किसान आए हैं। आस-पड़ोस के क्षेत्रों से और दूर-दराज के राज्यों से लोगों की भागीदारी बढ़ रही है। आज 1000 किसानों का जत्था महाराष्ट्र से शाहजहापुर पहंचा है, जबकि 1000 से ज्यादा उत्तराखंड के किसान गाजीपुर की ओर चल दिये हैं। 200 से ज्यादा जिलों में नियमित विरोध और स्थायी धरने चल रहे हैं।
एआईकेएससीसी ने सरकार के अड़ियल रवैये की कड़ी निन्दा की है और कहा है कि सरकार किसानों के भविष्य और जीवित रहने के प्रति संवेदनहीन है तथा ठंड के लिए उनकी पीड़ा के प्रति भी।
एआईकेएससीसी ने सभी इकाईयों से 26 दिसम्बर को जब दिल्ली के विरोध का एक माह पूरा हो रहा है ‘धिक्कार दिवस’ तथा ‘अम्बानी, अडानी की सेवा व उत्पादों के बहिष्कार’ के रूप में कारपोरेट विरोध दिवस मनाने की अपील की। सरकार का धिक्कार उसकी संवेदनहीनता और किसानों की पिछले 7 माह के विरोध और ठंड में एक माह के दिल्ली धरने के बावजूद मांगें न मानने के लिए किया जा रहा है।
एआईकेएससीसी ने हरियाणा, उ0प्र0, मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा किये जा रहे दमन की निन्दा की है। हरियाणा के 13 किसानों द्वारा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विरोध करने के लिए उन पर 307 का केस दर्ज किया गया है, जो वास्तविक विरोध को दबाने के लिए किया गया है। इससे विरोध और बढ़ेगा।