ओबीओआर (ओबोर) परियोजना: भारत को घेरने का रास्ता तैयार कर रहा चीन

सचिन श्रीवास्तव
2013 में
कजाकिस्तान में एक भाषण के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पहली बार सिल्क रोड के आर्थिक इस्तेमाल पर अपना नजरिया दुनिया के सामने रखा था। अब चार साल बाद एक बार फिर 14-15 मई को चीन इसका विस्तृत खाका दुनिया के सामने पेश कर रहा है। लेकिन इन चार सालों में कई चीजें बदली हैं। शुरुआत में यह विचार मध्य एशिया में परिवहन ढांचा विकसित करने के लिए पैसा उपलब्ध कराने के लिए था। अब इसमें वैश्विक राजनीति, सैन्य समझौते और एशिया राजनीति में प्रभुत्व की होड़ भी शामिल है।
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दुनिया का सबसे बड़ा निवेश 
03 महाद्वीपों एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सीधे तौर पर जोड़ेगा ओबोर प्रोजेक्ट
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दुनिया जुट रही चीन में
चीन के इस सम्मेलन में विभिन्न देशों और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। ब्रिटेन और जर्मनी के अलावा अमरीका का दल भी चीन में है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ दो दिन पहले चीन पहुंच चुके थे। इटली के प्रधानमंत्री पाओलो जेंटिलोनी भी इसमें शिरकत कर रहे हैं। चीन से सैन्य मतभेद रखने वाले जापान और दक्षिणी कोरिया के प्रतिनिधि भी यहां हैं और दक्षिणी चीन सागर के मुद्दे पर चीन के खिलाफ खड़े वियतनाम और इंडोनेशिया भी ओबोर प्रोजेक्ट के हिस्सेदार हैं। भारत को छोड़कर सभी दक्षिण एशियाई देश भी इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं।

14-15 मई को शिखर सम्मेलन आयोजत हो रहा है चीन
29 देशों के राष्ट्राध्यक्ष पहुंचे हैं बीजिंग
70 अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के प्रमुख हैं शामिल
1200 से ज्यादा प्रतिनिधिमंडलों के समक्ष चीन पेश कर रहा अपनी योजना
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ओबोर का उद्देश्य
रेलवे, बंदरगाहों, हाइवे और पाइपलाइन के नेटवर्क के जरिये मध्य एशिया और यूरोप के व्यापार में नई जान डालना। साथ ही सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों को बेहतर बनाना।
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यह है योजना
65 देशों में नए सिल्क रूट से होगा बड़े पैमाने पर निवेश और विकास
4.4 अरब आबादी रहती है एशिया, अफ्रीका, यूरोप के इन देशों में
2.1 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी वैश्विक जीडीपी में इस रास्ते की
6 कॉरिडोर भी बनाने का प्लान है वन बेल्ट वन रूट (ओबोर) प्रोजेक्ट के तहत
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दो रास्ते
वन बेल्ट वन रोड (ओबोर) के दो रास्ते होंगे।
पहला रास्ता: जमीनी रास्ते से चीन को मध्य एशिया के जरिये यूरोप से जोड़ेगा। यह कभी सिल्क रोड कहा जाता था।
दूसरा रास्ता: समुद्री मार्ग से चीन को दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी अफ्रीका होते हुए यूरोप से जोड़ेगा। इसे नया मैरिटाइम सिल्क रोड कहा जा रहा है।
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इतिहास दोहराने की तैयारी 
2000 साल से पहले चीन ने सिल्क रोड बनाया था। इसके तहत चीन को मध्य एशिया और अरब से जोडऩे वाले व्यापारिक रास्ते बनाए गए थे। उस वक्त चीन बड़ा सिल्क निर्यातक था।
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भारत की बेरुखी
चीन ने परियोजना के लिए भरोसे का माहौल पैदा नहीं किया। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर है भारत को आपत्ति। इसके अलावा ओबोर प्रोजेक्ट गिलगिट-बॉल्टिस्तान से होकर गुजरता है। इसलिए भारत, चीन के ओबोर फोरम से दूर है।
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दक्षिण एशिया की हामी
भारत को छोड़कर दक्षिण एशिया के सभी देश ओबोर प्रोजेक्ट पर सहमति जता चुके हैं। दो दिन पहले तक नेपाल, भारत के साथ था, लेकिन 12 मई को नेपाल ने भी इस प्रोजेक्ट पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इस तरह अब भारत इसके विरोध में अकेला पड़ गया है।
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अमरीका और चीन आ रहे हैं करीब
चीन के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी अमरीका ने यूटर्न लेते हुए ओबोर में हिस्सा लेने पर सहमति जता दी है। इसे अमरीका-चीन के बीच राजनीतिक फैसला माना जा रहा है, लेकिन दोनों देशों की आर्थिक भागीदारी भी बढ़ रही है। चीन ने ‘100 डे प्लान’ समझौते के तहत अमरीकी बीफ खरीदने की प्रतिबद्धता जताई है। वहीं अमरीका अपने यहां चीनी बैंकों के विस्तार की अनुमति प्रदान करने पर राजी हो गया है।
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किसी को नहीं पता पूरी योजना
चीन का दावा है कि यह प्रोजेक्ट सभी देशों के लिए फायदे का सौदा है। हालांकि 6 आर्थिक गलियारे बनाने की योजना का अब तक कोई विश्वसीनय खाका उपलब्ध नहीं है। बताया जा रहा है कि ओबोर सम्मेलन के बाद चीनी कंपनियों, सरकार और बाकी देशों के साथ समझौते पर इसका स्वरूप निर्भर करेगा।
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चीन का लाभ
– इस्पात और अन्य निर्माण सामग्री को मिलेगा नया बाजार
– ओवर प्रॉडक्शन की समस्या से मिल सकती है निजात
– ऊर्जा जरूरतों के लिए हो सकेगा इस रास्ते का इस्तेमाल
– एशिया में बड़ी ताकत बनने के लक्ष्य की बढ़ा सकेगा कदम
– अमरीकी सैन्य और आर्थिक प्रभुत्व होगा कम
– मध्य एशिया के विकास से उइगर मुस्लिमों के बीच चरमपंथ का जोखिम होगा कम
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अफ्रीका के लिए है घातक
– चीन इस योजना के जरिये अफ्रीका को अपना सामरिक गढ़ बनाना चाहेगा।
– कच्चे माल के बदले तैयार उत्पाद निर्यात करने की चीनी नीति से स्थानीय लोगों से छिन गए हैं रोजगार के अवसर
– विनिर्माण उद्योग खत्म होने के कगार पर है
– कर्ज में डूबे हैं ज्यादातर अफ्रीकी देश, इससे सामाजिक तनाव पैदा हो गया है
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भारत और अफ्रीकी देशों का बन सकता है गठजोड़
वन बेल्ट वन रोड के संभावित खतरे को भांपते हुए कुछ अफ्रीकी देश भारत के करीब आ रहे हैं। चीन के 14-15 मई को आयोजित ओबीओआर सम्मेलन में महज दो अफ्रीकी देश इथोपिया और केन्या शामिल हो रहे हैं। नाइजीरिया समेत घाना और अंगोला आदि कई अफ्रीकी देशों ने चीन का विरोध किया है।
2014 में दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति जैकब जुमा ने चीन के साथ असंतुलित व्यापार को लेकर चेतावनी दी थी
2015 में खराब बर्ताव की शिकायत के बाद जांबिया ने एक चीनी कॉपर माइन अपने कब्जे में ले ली थी। 

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