Mobile Vendors: मोबाइल कारीगरों के लिए अजाब बना लॉकडाउन
अब्दुल हक़ उर्फ अब्दुल्ला
(कोरोना महामारी के बीच मोबाइल का महत्व और ज्यादा बढ़ गया है। इससे न सिर्फ बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, बल्कि बीमार होने पर सहायता के लिए भी यह काफी मददगार साबित हुआ है। साथ ही लॉकडाउन के बीच एक-दूसरे का हाल लेने में भी इससे काफी मदद मिली है। ऐसे में अगर मोबाइल खराब हो जाए तो काफी मुश्किल खड़ी हो जाती है। जरूरी होने के बावजूद लॉकडाउन में मोबाइल की दुकानें बंद हैं। इनके कारीगरों के सामने भी संकट है। ऐसे ही कुछ लोगों से संविधान लाइव ने बात की।
मेरे परिवार में छह लोग हैं। मेरी दुकान ज्योति काम्प्लेक्स के नीचे बेस्मेंट में है। मेरी दुकान मिलाकर उस बेसमेंट में 92 दुकानें हैं और हर दुकान का किराया 35000 से 50000 रुपये है। ऐसी ही एक दुकान में मेरा चार बाई तीन का एक काउंटर है, जिसका किराया 600 रुपये रोज़ है। कोविड से पहले हमारा काम सही चल रहा था। रोज़ हम घर पर 1200 से 1500 रुपये लेकर लौटते थे। वह अब घटकर 250 से 400 रुपये हो गए हैं। लॉकडाउन में भी हमें अपने काउंटर का आधा किराया देना पड़ा जो 300 रुपये रोज़ होता है। हमने दुकान वाले का किराया भी अभी पूरा नहीं दिया है। उनका धंधा नहीं चलने की खास वजह है कि स्टूडेंट का अपने घरों को चले जाना। हमारा सारा कारोबार स्टूडेंट से था। स्कूल-कालेज के खुलने का अभी कोई अता पता नहीं है। लॉकडाउन पर घर में काम वही करवा सकता है जो ज़्यादा पैसे दे। हमारे देश में दस्तूर बन चुका है कि आपदा सभी को अवसर देती है। जो मोबाइल फोल्डर मुझे आम दिनों में 1000 रुपये का मिलता था, वही लॉकडाउन में 2000 से 3000 रुपये में मिल रहा है। अभी मोबाइल में काम वही करवा पा रहे है, जिनके पास कालाबाज़ारी के लिए पैसा है। जिसके पास लिमिटेड आवक है वो तो इतना महंगा काम नहीं करवा सकता है।
– नवेद खान, भोपाल
एमपी नगर में मोबाइल शॉप चलाने वाले राकेश कुमार का कहना है कि मेरे परिवार में चार लोग हैं। उनकी जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही है। मेरा काउंटर एमपी नगर में है। 500 रुपये रोज़ पर मेरा काउंटर है। मेरा काम सॉफ्टवेर का है, जिसका सेटअप दुकान में लगा है। अचानक हुए लॉकडाउन की वजह से मैं अपने साथ सॉफ्टवेयर नहीं ला पाया। इससे मैं घर से काम कर भी नहीं सकता। इस लॉकडाउन ने तो हमारी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी है। कमाना तो दूरदूर तक नज़र नहीं आ रहा है। ये समझ नहीं आ रहा है किराया कहां से दें। अगर ऐसे ही लॉकडाउन लगता रहा तो ज़िंदा रहना ही मुश्किल हो जाएगा।
मैं गंजबासौदा में रहकर रोज़ ही भोपाल अपडाउन करता हूं। मेरे परिवार में हम चार लोग हैं और परिवार की ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर है। मेरे काउंटर का किराया 15000 रुपये है। पिछली बार तो दूकान मालिक ने किराया नहीं लिया था, मगर वो भी कब तक करेगा। जो कुछ जमा किया था वो लॉकडाउन में ख़त्म हो गया है। अब किराया भी देना है और समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें। बार-बार के बंद की वजह से मेरे जो ग्राहक हैं वो भोपाल के हैं। गंजबासौदा में अगर कोई छोटा-मोटा मोबाइल का काम आता भी है, तो सामान नहीं मिल रहा है। सरकार हमारे घर खर्च का इंतेज़ाम कर दे फिर चाहे जितने दिन का लॉकडाउन लगाना हो लगा दे।
– अरूण, गंजबासौदा
इस बारे में शाहजहांनाबाद में काउंटर लगाने वाले आबिद कहते हैं मेरा छोटा सा काउंटर शाहजहानाबाद में है और उसका किराया रोज़ 200 रुपये है। किराये के मकान में रहता हूं। उसका किराया भी 4000 रुपये है। अब मेरे लिए मुसीबत खाने से ज़्यादा इस बात की है कि जीवन यापन छोड़कर 10000 रुपये जो मेरा खर्च है वो कहां से निकाला जाए। सोचता हूं कि दूसरा काम शुरू किया जाए तो दूसरा काम भी कोई ऐसा नहीं है जो चल रहा है।
मेरे काउंटर का किराया 10000 रुपये है और मेरे परिवार में तीन लोग हैं और परिवार की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है। कोविड के बाद पूरे साल में मेरा कम से कम 250000 का नुकसान हो चुका है। अगर हम सभी मोबाइल सुधारने वालों को जोड़ लें तो करोड़ों का नुक्सान हम झेल चुके हैं। हालात पूरी तरह से सुधरने के बाद इस नुक्सान की भरपाई करने में हमें तीन साल लग जाएंगे। अगर सरकार ने इस सेक्टर में दखल नहीं दिया तो आने वाला समय हम सबके लिए और भी बहुत सारी मुसीबतों से भरा होगा। सरकार ने अगर तुरंत कदम नहीं उठाये तो हम लोगों के मरने की नौबत आ जाएगी।
– पवन कुमार, भोपाल