कोरोना कब बड़ा अजाब था जो मुआ लॉकडाउन भी लगा दिया!

कोरोना कब बड़ा अजाब था जो मुआ लॉकडाउन भी लगा दिया!

लॉकडाउन के साइड इफेक्टः मुस्लिम मजदूर रोजा तो रख रहे, लेकिन उन्हें अफतार तक मयस्सर नहीं

अब्दुल हक़ (अब्दुल्ला)

इस बार भी सरकार ने बिना किसी तैयारी के लॉकडाउन लगा दिया और लोगों को संभलने का मौका ही नहीं दिया। लॉकडाउन असंगठित मजदूर वर्ग के लिए दोबारा मुश्किल दौर लेकर आया है। यूं तो सरकार ने इलैक्ट्रीशियन, कारपेंटर और प्लंबर के लिए साइट पर काम करने की छूट दे रखी है, लेकिन बाज़ार बंद होने से लोगों को सामान नहीं मिल पा रहा है, इसलिए उन्हें काम नहीं मिलता है।

अनवर बिजली मैकेनिक हैं। वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि हमारे पास पहले से बहुत काम था, हमारे पास पहले से ही काम नहीं था, बस इतना ही हो पाता था कि चटनी रोटी चल रही थी। हम किराए के मकान में रहते हैं, इसलिए हम गरीबी रेखा से नीचे नहीं आते और हमारे पास राशन कार्ड नहीं है, जिसकी वजह से हमें राशन नहीं मिलता है। जिसको भी लाइट का काम करना है उसके पास सामान होगा तो ही वो काम करायेगा अब बाज़ार बंद है, जिसकी वजह से सामान नहीं मिल रहा है। अगर काम मिलता भी है तो पुलिस वाले नहीं समझते। उन्हें यही लगता है कि हम आवारागर्दी करने निकले हैं। वो डंडे चलाते हैं, जिसकी वजह से चोरों की तरह निकलना होता है। अनवर ने कहा कि अगर लॉकडाउन ऐसा ही लगा रहा तो कोरोना से मरने से पहले भूख से मर जाएंगे।

यह भी पढ़ें:  Indore Lynching Case: न्यायिक हस्तक्षेप के जरिए खारिज हो पीड़ित पर दर्ज मामले: जांच दल

रशीद प्लंबर का काम करते हैं। तीन दिन से वो वाशबेसिन की टोंटी और पाइप खरीदने की कोशिश कर रहे हैं, मगर उन्हें सामन नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वजह से वो काम पर नहीं जा पा रहे हैं। काम पर नहीं जाएंगे तो क्या खाएंगे। अभी रमजान चल रहे हैं। अफ्तार में बच्चों के मायूस चेहरे देखकर खुद पर गुस्सा आता है कि दिन भर के रोज़े के बाद बच्चों के दस्तरखान में हम अफ्तारी भी अच्छी नहीं दे पा रहे हैं। पता नहीं ये सब कब तक चलेगा। बच्चे रातों में तहज्जुद की नमाज़ में अल्लाह से दुआ मांग रहे हैं कि अल्लाह इस अज़ाब से जल्दी छुटकारा दे दे।

यह भी पढ़ें:  Education: तय करनी होगी शिक्षा से हमें अपनी अपेक्षाएं

संजू कारपेंटरी का काम करते हैं, मगर लॉकडाउन की वजह से उनके पास काम नहीं आ रहा है। लॉकडाउन से पहले जहां काम कर रहे थे, उन्होंने भी काम करवाने से मना कर दिया है। सरकार दो किलो गेंहू, दो किलो बाजरा और एक किलो चावल दे रही है। उधार उन्हें ही मिलता है जो चुकाने की हिम्मत रखते हैं। हम तो किराने वाले से यह वादा भी नहीं कर सकते कि इसका उधर चुका देंगे। समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाए! गरीब का कोई नहीं होता है। अगर ऐसी आवाज़ किसी अमीर की होती तो सरकार उनका काम करती। हमारा कुसूर है, गरीब होना। हम जानते हैं कि अगर कोरोना ने हमें छोड़ दिया तो गरीबी ज़रूर हमारी जान ले लेगी। कोरोना तो एक दिन चला जाएगा मगर गरीबी हमारा कब पीछा छोड़ेगी।