लॉकडाउन की नई गाइडलाइन तो ठीक है साहब! यह तो बताएं गरीबों का क्या होगा
लॉकडाउन की नई गाइडलाइन तो ठीक है साहब! यह तो बताएं गरीबों का क्या होगा
सायरा खान
मध्य प्रदेश में बढ़ते कोरोना संक्रमण के साथ सरकार भी सख्त हो गई है। अब नई कोरोना गाइडलाइन जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि आवश्यक सेवाएं छोड़कर सभी कार्यालयों में 10 फीसदी कर्मचारी ही उपस्थित रहेंगे। ऑटो रिक्शा और कार में दो सवारी बैठा सकेंगे, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, स्पोर्ट्स और मनोरंजत गतिविधियां प्रतिबंधित कर दी गई हैं।
इन्हें रहेगी छूट
* बड़ी सब्जी मंडियों को छोटे स्वरूप में विभिन्न हिस्सों में बांटा जा सकता है।
* किराने की दुकानों को थोक व्यापारियों द्वारा फुटकर व्यापारियों को सामग्री सप्लाई जारी होगी।
* राज्य सरकार के कार्यालय, कलक्ट्रेट, पुलिस, आपदा, प्रबंधन, फायर, स्वास्थ्य, जेल, राजस्व, पेयजल, आपूर्ति, नगर प्रशासन, विद्युत प्रदाय, सार्वजनिक परिवहन और कोषालय को छोड़कर सभी में 10% उपस्थित रहेगी।
* आईटी कंपनियों, बीपीओ, मोबाइल कंपनियों का सपोर्ट स्टॉफ और यूनिट को छोड़कर शेष निजी कार्यालय भी 10% की क्षमता से काम करेंगे।
इसको पालन करने की जिम्मेदारी कलेक्टर को दी गई है।
इस गाइड लाइन को लेकर जब बस्ती स्थल पर बातचीत की गई तो लोगों के अलग-अलग तर्क आए।
80 फिट रोड की 35 साल की एक महिला का कहना है कि मेरे पति नहीं हैं। दो बच्चों की जिम्मेदारी है मेरे ऊपर। मैं किराए के मकान में रहती हूं। लॉकडाउन खुलने के बाद ही बड़ी मुश्किल से काम पर जा रही थी, लेकिन फिर लॉकडाउन लग गया और मेरा काम बंद हो गया। अब घर पर रहना पड़ रहा है। यदि इस गाइडलाइन के तहत कुछ ही लोगों को काम करने के लिए बुलाया जाएगा तो हम निम्न वर्ग के लोग अपने परिवार का पालन पोषण कैसे करेंगे। उन्होंने कहा कि गाइडलाइन जारी करने से पहले सरकार हमारे घरों में खाने-पीने की चीज और हमारे घर का किराया भी हमें दे देती तो मेरे बच्चे भूख से बच जाते। अब तो लगता है कि मेरे बच्चे तो भूख से और मैं अपने कर्ज से दबकर ही मर जाऊंगी।
पुष्पा नगर के चासील साल के शख्स का कहना है कि मैं गांव से यहां पर काम करने आया था। मैं पान की दुकान लगाता हूं। मेरे परिवार में मां, पत्नी और बहन तीन बच्चे हैं। मैं किराए के घर में रहता हूं। लॉकडाउन लगने के बाद घर का खर्च उठा पाना मुश्किल हो रहा है और अब सुनने में आ रहा है कि सिर्फ सरकारी दफ्तर ही खुलेंगे। यह तो अन्याय है। जो दफ्तर में काम करते हैं वह तो अपने परिवार का पालन पोषण कर लेंगे, लेकिन मैं कहां पर जाकर दुकान लगाऊं, जिससे मैं परिवार के लोगों को दो वक्त का खाना खिला सकूं। कुछ छूट हमें भी मिलना चाहिए, जिससे हम अपना पेट भर सकें। अगर यह सब चलता रहा तो हम कोरोना बीमारी से तो बाद में मरेंगे, लेकिन भूख से पहले मर जाएंगे। हमारे पास खाने और अन्य सामान खरीदने के लिए रुपये नहीं होंगे। धन्य है सरकार, जो हमारी इतनी मदद कर रही है।
28 साल के एक व्यक्ति ने बताया कि वह पन्नी बीनने का काम करते हैं। दिन भर कचरा बीनने के लिए दूर-दूर तक जाते हैं। कचरा जमा कर शाम को कबाड़ वाले के यहां बेच देते हैं। इसके बाद परिवार का पेट पाल पाते हैं। आग लगे ऐसी सरकार और इस लॉकडाउन को, जो बार-बार सब कुछ बंद कर देती है। इस कारण मैं कचरा बीनने भी नहीं जा पा रहा हूं। जो कचरा मेरे पास जमा है, मैं उसे भेज भी नहीं पा रहा हूं, क्योंकि कबाड़खाना भी बंद है। मेरे पास तो राशन कार्ड भी नहीं है कि मुझे वहां से अनाज मिल जाए। हम एक वक्त का खाना खा सकें। सुनने में आ रहा है कि अब कुछ नहीं खुलेगा। लगता है पेट भरने के लिए अब तो घर-घर जाकर भीख मांगना पड़ेगा। क्या फायदा ऐसी गाइडलाइन का, जिसके कारण हम़ें दर-दर भटकना पड़े और भूख प्यास से मरना पड़े।
एक महिला से बात करते हुए लगा कि वह बहुत गुस्से में हैं और सारा गुस्सा आज लॉकडाउन पर निकाल रही हैं। उन्होंने कहा, अरे बहन तुम कहां लगी हो इस लॉकडाउन और राजनीति की बातों में। कुछ नहीं होने वाला और न ही कुछ बदलने वाला है। उसने कहा कि समय तो यही बता रहा है कि लॉकडाउन लगाओ, जनसंख्या घटाओ, देश के उद्योग-धंधे बंद कराओ, देश को कर्ज में डूबाओ, फिर जनता को बताओ कि हमारा देश विकास कर रहा है।