Farmers Protest Live: सरकार की पेशानी पर चिंता की लकीरें और किसान आंदोलन का मौजूदा हाल
Farmers Protest Live: टीम संविधान लाइव
भारतीय राजनीति के मौजूदा हाल और हलचलों को लेकर कई लोग बेहद उत्साहित हैं और उन्हें लगता है कि आने वाले समय में बड़े राजनीतिक बदलाव की नींव यहां से पड़ सकती है। उपरी तौर पर देखें तो यह बात कमोबेश ठीक लगती है। बीते दो—तीन सालों में जनता के मुद्दे आक्रामक ढंग से आगे आए हैं। सरकारी लीपापोती, मीडिया की अनदेखी, ट्रोल आर्मी के अनाप—शनाप प्रचार और भाजपा के कथित सर्वशक्तिमान प्रचार तंत्र के बावजूद केंद्रीय निजाम के माथे पर बल पड़ने शुरू हो गए हैं।
अब सवाल यह है कि क्या इन हालिया घटनाओं के हासिल के जरिये कोई ऐसी तस्वीर बनाई जा सकती है, जो कि एक मजबूत लोकतंत्र और जनता की खुशहाली में इजाफा करने वाली हो। बिना किसी किंतु, परंतु के कहा जाए तो ऐसा नहीं है। असल में अगले 10—15 सालों तक भारतीय लोकतंत्र के हिचकोले खत्म होना और एक सपाट राह पर तेजी से कदम बढ़ाने की सुनहरी तस्वीर दूर की कौड़ी है। इसकी कुछ ठोस वजहें हैं।
पहली तो यह कि केंद्र की हालिया मुश्किलें उसकी अपनी गलती का नतीजा हैं। जिस कृषि कानून के कारण फिलहाल हल्ला मचा हुआ है, उसे लेकर केंद्र सरकार अति संवेदनशील है और वह अपने कॉरपोरेट मित्रों को किसी भी कीमत पर नाराज नहीं करना चाहती। सरकार जानती है कि उसे कदम पीछे खींचने हैं, लेकिन इसके लिए वह इस वक्त सही मौके का इंतजार कर रही है।
वहीं दूसरी तरफ किसानों को एकजुट करने और उन्हें आंदोलन से जोड़ने की जिम्मेदारी जिन किसान यूनियनों, प्रगतिशील तबकों और जनवादी आधार वाले संगठनों पर है, उनमें खास किस्म का उत्साह तो है, लेकिन वे अपनी पिछली गलतियों से सीख भी नहीं रहे हैं।
फिलहाल दिल्ली में पंजाब—हरियाणा के किसानों का साथ देने के लिए अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में किसान पहुंचने लगे हैं। जहां जहां संगठनों ने गांवों में जाकर किसानों से संपर्क किया है और अपनी बात रखी है, वहां से किसान जुड़ रहे हैं। लेकिन ज्यादातर संगठन अभी भी सोशल मीडिया के जरिये अपने ही सीमित समुदाय के बीच सक्रिय है, इनसे बहुत ज्यादा मदद मिलेगी ऐसा लगता नहीं। जैसे अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति से ही बताया जाता है कि 250 से ज्यादा संगठन जुड़े हुए हैं, लेकिन उनकी भागीदारी कितनी और किस तरह की है, यह देखना दिलचस्प है। उम्मीद की जा रही है कि इस समिति के सभी धड़े जल्द जमीन पर सक्रिय होंगे और किसान आंदोलन को मजबूत करेंगे।
दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से फिल्म स्टार और अन्य सेलिब्रिटीज ने किसान आंदोलन का पक्ष खुलकर लेना शुरू कर दिया है। नतीजतन आप जल्द ही तेलंगाना से खास तौर पर बड़े किसान जत्थे देखेंगे।
दक्षिण के अन्य राज्यों में तमिलनाडु और कर्नाटक के किसान पहले ही निकल चुके हैं। केरल के किसान भी सिंघु और टिकरी बार्डर पर हैं। महाराष्ट्र से किसानों का एक बड़ा जत्थ निकला है। इसी तरह मध्य प्रदेश से जल्द दो से तीन जत्थे पलवल बार्डर की ओर जाएंगे।
बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा से किसान आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की उत्साहजनक खबरें अभी तक नहीं मिली हैं।