कोरोना का संकट: भूख से मरते हैं तो मर जाएं, कोरोना से नहीं मरने चाहिए!
ग्राउंड रिपोर्ट: भोपाल में भूखे हैं कई लोग, 3 कम्यूनिटी किचिन हैं नाकाफी रोज कमाने—खाने वाले सबसे अधिक मुसीबत में। प्रशासन का दावा कि जरूरी चीजों की कमी नहीं आने दी जाएगी, लेकिन हकीकत में कमी आने लगी है। वस्तुओं की कमी की अफवाहें और जमाखोरी। खाना और जरूरी सामान उपलब्ध कराने की व्यवस्था का तंत्र बेहद कमजोर। निगरानी की व्यवस्था नहीं। खाना भेजने में सबसे बड़ा रोड़ा पुलिस। पुलिस का कहना है- भूख से मरते हैं तो मर जाएं, कोरोना से नहीं मरने चाहिए। खाने की पैकेट की मांग बहुत ज्यादा है, आपूर्ति बेहद कम। अशोका गार्डन, दशमेश नगर, फ़कीर मोहल्ला, छोला, जेपी नगर, पिपलानी, सतनामी नगर, बी सेक्टर, बाणगंगा और व्हाइट हाउस में हालत बेहद खराब। कई घरों गैस भरवाने के पैसे नहीं।
सुझाव: कोविद 19 की सही जानकारी आम नागरिक कहां से ले सकते हैं, इसके लिए पूरी व्यवस्था हो। अफवाहें रोकने की कारगर व्यवस्था यही है कि जानकारी जल्द सार्वजनिक हो, और सबकी पहुंच में हो। ज्यादा से ज्यादा कम्युनिटी किचिन बनाए जाएं। नागरिक भी अपने स्तर पर जरूरतमंदों की मदद करें। हर मोहल्ले में दीन दयाल अंत्योदय किचिन का इंतजाम हो, इससे आवागमन की समस्या से भी छुटकारा मिलेगा और वितरण में भी आसानी होगी। पके खाने के साथ साथ कच्चा सामान भी पहुंचाया जाए, ताकि उस इलाके में दोबारा 15 दिन तक न जाना पड़े। बस्तियों की राशन दुकानों में सामान की डिलेवरी हो। स्वयंसेवी संस्थाओं को एक पास पर 50 पैकेट की व्यवस्था करे और संस्था के लिए कम से कम 10 पास इश्यू हों। पुलिस सघन पूछताछ करे, लेकिन मार पीट ना की जाये।
भोपाल। मध्य प्रदेश में कोरोना वायरस के कारण उज्जैन निवासी एक महिला की मौत के बाद हालात और अधिक चिंताजनक हैं। लॉकडाउन और कर्फ्यू के चलते अफवाहों का बाजार भी गर्म है, तो कई इलाकों में खाने की कमी की खबरें भी आ रही हैं। इस पूरी अफरातफरी में सबसे अधिक समस्या उन लोगों की है, जो रोज कमाते और खाते हैं। इन लोगों के पास कमाई का कोई जरिया नहीं है, और न ही इतनी बचत कि राशन दुकानों से सामान खरीद सकें।
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प्रशासन की ओर से आवश्यक वस्तुओं की कमी न आने देने की कोशिशें और दावे किए जा रहे हैं, लेकिन यह उन लोगों के लिए है, जो पैसा खर्च कर सामान खरीद सकते हैं। दिक्कत यह भी है कि ऐसे लोगों ने सामान घर में जमा करना शुरू कर दिया है, इससे बाजार में कमी आ गई है। किसी वस्तु के मिलने में 1—2 घंटे की देरी के कारण भी अफवाहें उड़ने लगती हैं, और जमाखोरी तेजी से होने लगी है।
प्रशासन यह भी दावा कर रहा है कि लोगों को घर में ही खाना और जरूरी सामान उपलब्ध कराने की व्यवस्था शुरू कर दी गई हैं। लेकिन अभी इसका निगरानी और वितरण तंत्र कितना कारगर है, इसके संबंध में दावे से कुछ नहीं कहा जा रहा है।
लोगों को खाना पहुंचा रहे स्वयंसेवियों का कहना है कि खाना भेजने में सबसे बड़ा रोड़ा पुलिस है जो इस बात को कहने में संकोच नहीं कर रही है कि भूख से मरते हैं तो मर जाएं, कोरोना से नहीं मरने चाहिए।
वितरण तंत्र बेहद कमजोर, निगरानी की व्यवस्था भी ठीक नहीं
इस बीच कुछ स्वयं सहायता समूहों ने विभिन्न इलाकों में खाद्य सामग्री और खाने के पैकेट पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए नगर निगम की ओर से भी व्यवस्था की गई है। भोपाल के स्वयंसेवी अब्दुल हक ने बताया कि खाने की पैकेट की मांग बहुत ज्यादा है, जबकि इसकी आपूर्ति बेहद कम है।
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एक—एक संस्था को 500 पैकेट बांटने के लिए निर्धारित किया गया है, जिसके लिए सिग्नेचर भी लिए गए हैं, लेकिन उनका अनुभव है कि कोई भी दो व्यक्ति मिलकर 100 से अधिक पैकेट दिन भर में जरूरत मंदों तक नहीं पहुंचा सकते हैं। उन्होंने बताया कि 24 मार्च को हमें 30 पैकेट एक स्थान से और दूसरी जगह से 100 पैकेट मिले। साथ ही सूचना के मुताबिक उन्हें जो नंबर दिए गए थे, उनमें से 2 किचिन में सामान नहीं था, जबकि एक किचिन में सामान खत्म हो गया था।
वहीं लोगों में कोविद 19 की जानकारी पूरी नहीं है। इसकी वजह से खाने पहुंचाने जा रहे स्वयंसेवकों का काफी वक्त जानकारी देने में लग जाता है। अब्दुल्ला कहते हैं कि अफवाहें फैलना इस समय की सबसे बड़ी समस्या है। जैसे 25 की रात में भोपाल में खबर फैल गई कि यहां 21 पॉजिटिव केस हैं, जबकि इसका कोई आधार नहीं है।
वे कहते हैं कि अधिकतर जहां जहां कम्युनिटी किचिन हैं, वहां ज़्यादा से ज्यादा 300 से 500 पैकेट की व्यवस्था है, वह भी एक ही टाइम में। सुबह का खाना नहीं पहुंच पा रहा है।
लोगों के बीच काम कर रहे सूफियान कहते हैं कि इस माहौल में जरूरी है कि जो जहां है, वहां अपने स्तर पर, अपने मोहल्ले, अपनी बस्ती में जितने हो सकें, खाने के पैकेट बनाएं और गरीब, असहाय, जरूरतमंदों की मदद करें।
व्यवस्था में हैं खामियां
जानकारी में पाया गया मोहल्ले की दुकानों पर खाने का सामान कम मात्रा में है, जिनके पास पैसा था उन्होंने सामान खरीद कर रख लिया है। अशोका गार्डन, दशमेश नगर, फ़कीर मोहल्ला में हालात बेहद ख़राब हैं, वहां रोज़ 500 पैकेट की जरूरत है। 24 मार्च तक यहां 100 पैकेट ही पहुंच पा रहे थे।
कई इलाकों में खाने की आपूर्ति नहीं
जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक छोला, जे पी नगर में भी खाने की आपूर्मि पूरी नहीं हो पाई है। पिपलानी, सतनामी नगर, बी सेक्टर में भी खाने की आपूर्ति पूरी तरह से नहीं हो पाई। अब्बास नगर में 400 पैकेट खाने की डिमांड है, जबकि वहां सिर्फ 75 पहुँच पाए।
बाणगंगा और उसके पास व्हाइट हाउस में बड़े समूह के पास खाने का सामान नहीं है। जिनके पास सामान है उनमें से कई के पास घरों गैस नहीं है और गैस भरवाने के पैसे भी नहीं है। वहां कार्यरत स्वयंसेवी ने बताया कि हम यहाँ सिर्फ 100 पैकेट ही भेज पाए हैं।
अंत्योदय किचिन की मांग
भोपाल वासियों ने मांग की है कि हर मोहल्ले में दीन दयाल अंत्योदय किचिन का इंतेज़ाम करना इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है। बस्ती में जिन घरों में खाना नहीं है। वहीं स्वास्थ्य के दिशा निर्देशों का पालन करते हुए खाना बनाकर वितरित किया जाता है तो इससे आवागमन की समस्या से भी छुटकारा मिलेगा और वितरण में भी आसानी होगी।
बुधवार को खाद्य सामग्री वितरण में जो समस्याएं आईं हैं, उनके आधार पर स्वयंसेवकों का कहना है कि
- हमारी टीम एक बार फिर अलग अलग हिस्सों में गई, जहाँ आज कई पेट्रोल टैंक बंद मिले और पंचर की वजह से 2 घंटे ख़राब हुए जिसकी वजह से आवागमन में परेशानी हुई।
- पके खाने के साथ साथ कच्चा सामान भी पहुंचाया जाए, ताकि उस इलाके में दोबारा 15 दिन तक न जाना पड़े।
- बस्तियों की राशन दुकानों में सामान उतना नहीं है जितनी खपत है। दुकानदार पुलिस के खौफ की वजह से सामान लेने नहीं जा पा रहे हैं।
- वितरण व्यव्स्था के लिए जो पास दिए जा रहे हैं, उनमें परमीशन का लक्ष्य है, वह व्यावहारिक नहीं है। 500 पैकैट की जिम्मेदारी देने पर ही संस्था को 2 पास जारी किए जाएंगे। स्वयंसेवी संस्थाओं का कहना है कि प्रशासन एक पास पर 50 पैकेट की व्यवस्था करे और संस्था के लिए कम से कम 10 पास इश्यू करे। इससे प्रशासन का लक्ष्य भी पूरा होगा और संस्था के कार्यकर्ता आसानी से अपना काम कर पायेंगे। अन्यथा 500 पैकेट का लक्ष्य कागज पर तो आ जाएगा, लेकिन असल में वह जमीन पर पूरा नहीं होगा।
- स्वयंसेवकों ने मांग की है कि पुलिस को डंडे चलाने से रोका जाय जो भी गाड़ी से निकला है उससे सघन पूछताछ हो, लेकिन मार पीट ना की जाये।
- प्रशासन कच्चे सामान और सिलेंडर की व्यवस्था करे जिससे कम्युनिटी किचिन अपना काम कर पाएं, इससे जो डिमांड आ रही है उसे पूरा किया जा सके।
- अभी तक कम्युनिटी से खाना इकठ्ठा किया जा रहा है। प्रशासन यदि 1000 पैकैट की व्यवस्था करता है, तो उसे जरूरतमंदों तक पहुंचाकर उसका जमीनी ब्यौरा हासिल किया जा सकता है।
- पके हुए खाने की जरूरत सबसे ज्यादा उस मजदूर तबके को है, जो होटल में खाना खाता था, और वे स्टूडेंट जो टिफिन सेंटर से खाना खाते थे। साथ ही अस्पताल में जो तीमारदारी के लिए रुके हैं, या जिनके पास घर नहीं है उन्हें पके खाने की ही ज़रूरत है।
- जानकारी के मुताबिक, 26 मार्च को दोपहर तक काफी जगह से खाने के पैकेट लिए गए हैं, लेकिन मांग पूरी नहीं हो पा रही है।