कोरोना का कहर: बच्चों का भविष्य खतरे में
कोरोना का कहर: बच्चों का भविष्य खतरे में
कोरोना में खाने पीने की किल्लतों और मेडिकल सुविधाओं की कमी की बीच यह बात लगभग भुला दी गई है कि बच्चे बेहद बुरी तरह से कोरोना के कारण प्रभावित हुए हैं। उनके खेलने कूदने से लेकर पढ़ने लिखने तक पर पाबंदी आयद है और इसका असर बच्चों के मानसिक विकास पर पड़ रहा है। बच्चों के हालात की टोह लेती परवाज समूह की साथी सायरा खान की ग्राउंड स्टोरी।
भोपाल। पुराने भोपाल में ऐशबाग स्टेडियम के करीब की बस्ती बाग उमराव दूल्हा के निवासी यहां के मकानों की तरह एक दूसरे से मजबूती से जुड़े हैं। कोरोना ने इनके जीवन को अस्त व्यस्त कर दिया है। रोजाना की कमाई पर संकट आया है, तो घर की रसोई प्रभावित हुई है। लेकिन इससे बुरी तरह यहां के बच्चे भी प्रभावित हुए हैं।
80 फीट रोड पर रहने वाले हम्माल शाहिद (काल्पनिक नाम) बताते हैं कि सिर्फ हम्माली से गुजारा नहीं होता, इसलिए वह रोज दाल-चावल भी बेचते हैं। उनके परिवार में पत्नी, एक बेटा, एक बेटी, मां और बहन हैं। बेटा 12वीं कक्षा में पढ़ता है। मां गृहिणी हैं। बहन घर पर ही रहती है। यह परिवार किराए से रहता है।
परिवार के भरण-पोषण के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी परिवार के मुखिया पर है। वे बताते हैं कि बड़ी मुश्किल से बेटे की पढ़ाई की फीस जमा की थी ताकि वह अच्छे से पढ़ाई कर सके और और अपने पैरों पर खड़ा हो सके, लेकिन कोरोना में स्कूल बंद है तो पढ़ाई भी प्रभावित हुई है। अब पता नहीं कब सामान्य स्थिति आएगी।
शाहिद की ही तरह रूखसार (काल्पनिक नाम) का परिवार भी बाग उमराव दूल्हा में रहता है। रूखसार सब्जी बेचने का काम करती है। उनकी दो बेटी और एक बेटा है। बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। लॉकडाउन और कोरोना काल के कारण स्कूल नहीं लग रहा है। जिससे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। नियमित स्कूल ना लगने से और नियमित पढ़ाई ना होने से बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कक्षा आठवीं में पढ़ने वाला रूखसार का बेटा न तो हिंदी पढ़ पा रहा है और ना ही अन्य विषय।
यहां माता-पिता की समस्या यह है कि वे बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं लेकिन बच्चों को ठीक से पढ़ा नहीं पा रहे हैं क्योंकि स्कूल बंद हैं, कॉलेज बंद हैं, कोचिंग क्लास भी बंद हैं। हालांकि स्कूल खुले भी होते तो अभिभावकों का कहना है कि ना तो प्राइवेट स्कूल में अच्छी शिक्षा दी जा रही है, ना ही सरकारी स्कूलों में।
प्राइवेट स्कूल में तो हाल ये है कि स्कूल ना लगने के बाद भी बच्चों से फीस मांगी जा रही है। फीस जमा न करने पर उन्हें स्कूल में नहीं आने दिया जा रहा है और कहा जा रहा है फीस जब तक जमा नहीं करोगे, तब तक परीक्षा में बैठने की अनुमति तुम्हें नहीं दी जाएगी। स्थानीय निवासी कहते है। कि इस वक्त हम दो वक्त का खाना ठीक से नहीं खा पा रहे हैं तो बच्चों की स्कूल की फीस कैसे जमा करें।
लोग कहते हैं, कुछ समझ नहीं आ रहा है क्या हो रहा है और क्या होगा बच्चों की शिक्षा का। ऊपर से बार-बार परीक्षा का टाइम टेबल बदल जाता है, जिससे बच्चों की पढ़ने की इच्छा मर जाती है।
वे बताते हैं कि पहले 10वीं और 12वीं की परीक्षा मार्च माह में होना तय हुआ फिर अचानक अप्रैल में तय हो गया। अब कोरोना के कारण सुनने में आ रहा है यह परीक्षाएं मई में होंगी। क्योंकि कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। पता नहीं और कितनी बार यह परीक्षाएं रद्द होंगी।
दूसरी तरफ कक्षा 1 से 8 और कक्षा 9 पर नजर डालें तो उनकी हालत और भी खराब है। इन कक्षाओं के बच्चों को मासिक टेस्ट के आधार पर बिना परीक्षा दिए पास कर दिया जाएगा। उन्हें अगली कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा। तब से बच्चे बहुत खुश हैं। हमने कुछ बच्चों से बात की तो पता चला कुछ बच्चे बहुत ही ज्यादा खुश हैं क्योंकि उन्हें पढ़ाई से छुटकारा मिल गया है।
बच्चे कहते हैं, उन्हें घर पर ही उत्तर पुस्तिका मिल जाएगी जिसे कॉपी करके लिखना है और पास हो जाना है तो पढ़ने की क्या जरूरत है। हम तो बिना पढ़े पास हो रहे हैं हमें तो बहुत मजा आ रहा है। स्कूल बंद है। पूरा दिन खेलने को मिलता है और होमवर्क भी नहीं करना पड़ता। अब तो टीचर की डांट भी नहीं पड़ती है।
दूसरी तरफ माता पिता की चिंता बढ़ती जा रही है कि उनका भविष्य का क्या होगा? जब बच्चे पढ़ेगे नहीं तो इनका मानसिक विकास कैसे होगा?
कई माता-पिता के तो सपने टूट गए, क्योंकि वह बच्चों को अच्छी शिक्षा इसलिए दिलवा रहे थे कि जो काम वह खुद करते हैं उनके बच्चों को ना करना पड़े। उनके बच्चे पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करें और समाज में अपनी अच्छी छवि बना सकें। लेकिन अब ऐसा होना मुमकिन नहीं है।
Sayra Khan, Eka