Covid Tales: घर में भूख और बाहर कोरोना का खतरा
अमरीन शेख
भोपाल शहर में रहने वाले राहुल की उम्र 25 साल है। वह परिवार के साथ हिनोतिया में ही एक झुग्गी बनाकर रहते हैं। उनके घर परिवार में उनकी मां और बहने हैं। उनका खुद का घर नही है और किराये पर कोई घर नहीं देता है, क्योंकि वह और उनका परिवार कचरा बीनने का काम करते हैं। उनके पास कोई दूसरा काम भी नहीं है।
राहुल ने बताया कि उनके साथ पारिवार के लोग भी कचरा बीनने का काम करते हैं। घर चलाने के लिए और इस महँगाई से लड़ने के लिए सभी को इस काम में जुड़ना पड़ा है। उन्होंने बताया, “हम ये काम बचपन से ही कर रहें हैं और हमारे कई रिश्तेदार भी कचरा बीनने का काम करते हैं। हम लोग रोज़ाना सुबह छह बजे निकलते हैं और 12 बजे तक बीनते हैं। इस बीच हम अलग-अलग जगहों पर कचरा बीनने जाते हैं। जैसे कि बड़े-बड़े एरिये में और कचरे के डिब्बे में और जहां कचरे का ढेर होता है। वह भी बीनते हैं और ये काम पूरा होने के बाद जो कचरा हम बीनकर लाए हैं, उसको छांटते हैं। सभी को अलग-अलग करके फिर उसको कबाड़े वाले को बेच कर आते हैं। इससे हमको रोज़ 150 से 200 रुपये की कमाई हो जाती है। इसी कमाई से घर चलता है।”
उन्होंने बताया कि पिछले लॉकडाउन से उनको इतना ज्यादा पैसा नहीं मिल रहा है, क्योंकि जिन दामों में हम कबाड़ा बेचते थे। उन दामों में अब हम लोगों से नहीं खरीदते हैं। अब बहुत ही कम रेट में हमसे कबाड़ा लेते हैं, जिससे अब हमको पैसा भी कम मिलने लगा था। पर अभी तो ये भी काम बंद हो गया है लॉकडाउन लगने से। राहुल ने बताया कि अभी हम सिर्फ अपने घर से लगी आस पास की बस्तियों में जो भी कबाड़ा अभी मिल रहा हैं, वो बस जमा हो रहा हैं। अभी खरीदने वाला कोई नहीं है। इस लॉकडाउन से तो हम लोगों का काम पूरा ही बंद हो गया है।
उन्होंने बताया कि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है। परिवार का पेट भरने के लिए बीनने के साथ साथ अब मांगना भी पड़ रहा है। कबाड़ा कोई खरीद नहीं रहा है और उनके पास ऐसा कोई काम भीं नहीं है, जो वह कर सकें और न उनको कोई काम देता है।
उन्होंने बताया कि पिछले लॉकडाउन ने हमारी माली हालत वैसे ही खराब कर दी थी और अब इस लॉकडाउन ने तो हम लोगों को पूरी तरह से तोड़ दिया है। हम लोग बीमारी का बाद में सोचते हैं, सबसे पहले ये ख्याल आता है कि अब खाएंगे क्या और घर कैसे चलाएंगे।
राहुल की शिकायत है कि सरकार ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है। उनको किसी तरह की कोई मदद नहीं मिलती है। उनके परिवार के आगे भूखों मरने की नौबत है। बाहर कोरोना है तो घर में भूख का भूत है।