Covid Tales: छोटी खुशियों पर लॉकडाउन का ताला
फरहा
रेहान 12 साल का बच्चा है। वह ऐश बाग में रहता है और छठवीं कक्षा में पढ़ता है। रेहान को पढ़ाई करना पसंद है। पढ़ाई के साथ-साथ खेलना भी बहुत पसंद है। रेहान हर साल रमज़ान में नए रैकेट खरीदता था। वो खुद ही पैसे जोड़ कर रैकिट खरीदता था। रेहान ने बताया कि रमज़ान शुरू होने के दस दिन पहले से वो पैसे जोड़ना शुरू कर देते थे। वो अपनी अम्मी, पापा, बहन, भाई, खाला सब से पैसे लेना शुरू कर देता था। वो दस दिन में पैसे जोड़ लेता था और फिर वो रमज़ान में नए रैकेट ले कर आ जाता था। फिर वो पूरे रमज़ान रैकेट खेलता। बीच में रेहान के रैकेट कभी टूट जाते तो कभी घूम जाते तो कभी रैकेट की जालियां निकल जाती, लेकिन वो फिर भी जुगाड़ लगा कर उस रैकेट को जोड़ लेता।
हर साल रेहान रैकेट खरीद था। कभी वो अपने दोस्तों से पुराने रैकेट कम दाम में खरीद था। फिर वो रैकेट रेहान रमज़ान के बाद भी खेलता, लेकिन इस साल रमज़ान में रेहान पैसे नहीं जोड़ पाया। उसे किसी ने पैसे नहीं दिए। उसने अपने पापा से कहा कि वह उसे रैकेट ला दें, लेकिन पापा ने मना कर दिया। पापा ने कहा कि अभी लॉकडाउन लगा है और दुकानें भी नहीं खुली हैं और पैसों की भी किल्लत है।
रेहान ने अपने भाई, बहन से कहा कि हमें रैकेट दिला दो। ईद के बाद हम आपको पैसे जोड़ कर दे देंगे। उनके भाई ने कहा कि अभी दुकानें नहीं खुली हैं। हम देखेंगे अगर कहीं मिलेंगे तो ला दूंगा। रेहान ने तीन-चार दिन इंतज़ार किया, लेकिन किसी की तरफ से कोई भी जवाब नहीं मिला। वह दुकानें भी देख आया, लेकिन मार्केट बंद है। उसने दोस्तों से पुराने रैकेट के बारे में पूछा, लेकिन दोस्तों के पास भी रैकेट नहीं मिले।