लॉकडाउन और फरहा की घड़ी

दिलचस्प है कि जहां कहानियां हैं, जहां किस्से हैं, जहां इंसानी सोच के खुले दायरे हैं, जहां खुरदुरी इच्छाएं और बहुत सारा प्यार है— वहां तक शब्दों की जादूगरी नहीं पहुंची है। वहां कहानियां कही जाती हैं, सुनी जाती हैं, बिल्कुल आसपास के लफ्जों में। कंप्यूटर, लैपटॉप, आईपैड की ठक—ठक से दूर इन कहानियों के किरदार खुद अपनी बात कह रहे हैं। बिना किसी लाग, लपेट के। अशोकनगर इप्टा के बच्चों के साथ कई सालों तक अखबार निकालने का अनुभव हो, या पातालकोट के जुझारू साथियों की कहन की अनूठी शैलियों से परिचय… या फिर रांची, मेरठ और लुधियाना में बच्चों की खुरदुरी कहानियों का सिलसिला हो, या अभी संविधान लाइव के जरिये ऐशबाग के साथियों की जुबानदराजी से दो चार होने का मौका हो— सभी में एक बात कॉमन है— इनमें लाग लपेट कुछ भी नहीं। नक्काशी नहीं। कोई चौंकाउं, या इधर उधर की बात नहीं। सीधी सपाट बयानी, लेकिन दिमाग की नसों में हमेशा के लिए बस जाने वाली।

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कहानियों को ऐसा ही होना चाहिए, खबरों को भी। जो खबर का, कहानी का हिस्सा है, वह खुद कहे। अपना माध्यम भी खुद चुने— कागज पर उकेरे, या रंग से भर दे, वीडियो में दर्ज करे या आवाज में तह करके रख दे, किरदार की मर्जी। इसी कोशिश को संविधान लाइव की मीडिया क्लास में अंजाम देने की कोशिश की जा रही है। इसमें ढेरों कहानियां, दर्जनों किस्से बयां हो चुके हैं, दर्ज हो चुके हैं। इन्हें जल्द आप तक पहुंचाया जाएगा।

फिलहाल एक किस्सा लॉकडाउन का। बच्ची फरहा की कलम से। बिना किसी कांट—छांट के, जस का तस…

मेरी घड़ी
मेरी घड़ी जिसको देख कर रोज सु​बह होती थी मेरी। जिसे देख कर मैं कॉलेज के लिए तैयार होती थी। मैं उसे ही देख कर हर काम करती थी।
अफसोस लेकिन मेरी घड़ी खराब हो गई। जब वो खराब हुई तो मैं परेशान हो गई। अब मैं क्या करूंगी। और उपर से लॉकडाउन लग गया था। अब मेरी घड़ी ठीक कैसे होगी। अब मैं उसे देखे बिना कैसे अपने सारे काम करूंगी। अब मैं क्या करूं।
बस इंतजार ही कर सकती हूं लॉकडाउन हटने का। फिर मैंने सोचा तीन दिन का ही तो है लॉकडाउन। अब मैं 3 दिन गुजार लूंगी। फिर तीन दिन के बाद मैंने क्या सुना। जब मैंने सुना तो मेरे होश ही उड़ गए।
मुझे पता चला कि लॉकडाउन 21 दिन का बड़ा दिया गया।
फिर क्या मैंने जुगाड़ करना शुरू कर दी घड़ी की। मेरे घर के पास एक खालाजान रहती हैं। अम्मीजान ने उनसे मुझे एक घड़ी लाकर दे दी। अब मेरी परेशानी का भी हल मिल गया। बस मैं अपने सारे काम घड़ी देखकर ही करती हूं।
लेकिन मुझे खालाजान की घड़ी वापस करना पड़ेगी और घड़ी को सुधरवाना पडेगा।