मेधा पाटकर ने शुरू किया आगरा-मुंबई हाइवे पर चेतावनी उपवास

मजदूरों की समस्याएं पर नहीं दिया ध्यान तो अनिश्चितकालीन उपवास की तैयार

बड़वानी भोपाल। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने सोमवार को देश भर के श्रमिकों के गंभीर हालात के खिलाफ 24 घंटे का चेतावनी उपवास शुरू किया है। बड़वानी जिले की ठीकरी तहसील में एबी रोड पर स्थित पेट्रोल पंप के हनुमान मंदिर के करीब जारी इस एक दिवसीय चेतावनी उपवास में केंद्रीय मानव अधिकार सुरक्षा संगठन के प्रदेश अध्यक्ष एमडी चौबे और सेंचुरी वर्कर्स संगठन के राजेश खेते भी मेधा पाटकर के साथ उपवास पर बैठे हैं।

उपवास की जरूरत और आज के हालात पर संविधान लाइव से विशेष बातचीत करते हुए मेधा पाटकर ने कहा कि कोरोना संकट के इस भयावह समय में देश भर के श्रमिकों की अवमानना की जा रही है। सरकार संवेदना शून्य हो गई है और देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हमारे श्रमिक भाई बहन सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर हैं।

उन्होंने कहा कि इस महामारी के दौर में संविधान की पूरी तरह से धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। देश में लॉकडाउन के बावजूद आवश्यक सेवाओं के लिए परिवहन चालू है, लेकिन मजदूरों को कोई सुविधा नहीं दी गई। स्थानीय स्तर पर बस मालिक भी ट्रेवल बसें देने को तैयार हैं, लेकिन सरकार इस दिशा में कदम नहीं उठा रही है।

उन्होंने कहा कि आज देश भर में सबसे बड़ा सवाल मजदूरों की सुरक्षा और उनकी सुरक्षित घर वापसी है। इस काम में कलेक्टरों के बीच भी समन्वय की कमी दिखाई देती है, जिस कारण श्रमिक और परेशान हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर हालात सामान्य नहीं होते हैं, और मजदूरों की समस्या पर ध्यान नहीं दिया जाता है, तो आगे हम अनिश्चितकालीन उपवास करेंगे।

यह भी पढ़ें:  Covid Tales: ऑनलाइन वर्क ने बदल दी जिंदगी

मेधा पाटकर ने कहा कि यह समय बहुत गंभीर है और इसमें सरकार की लापरवाही और अधिक गंभीर है। देश के विभिन्न हिस्सों से श्रमिक भाई बहन, अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ 42 डिग्री तापमान में पैदल चलने को मजबूर हैं। यह हालात बताते हैं कि सरकार श्रमिकों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है।

कोरोना संकट के दौर में सरकार की ओर से खाना खिलाने की कोशिशों पर उन्होंने कहा कि देश के ​तमाम शहरों में जो खाना वितरण का कार्य किया जा रहा है, उसे सामाजिक संगठन अंजाम दे रहे हैं। सरकार की ओर से जो खाना बांटा जा रहा है, वह बहुत थोड़ा है। इस काम को ज्यादातर सा​माजिक संगठन ही कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना के लिए लगाए गए कैंप से भी जल्दी छोड़ते नहीं हैं। इसलिए मजदूर भाई उनमें जाना नहीं चाहते हैं।

मानवाधिकार संगठन के एमडी चौबे ने संविधान लाइव को बताया कि श्रमिक सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर घर जा रहे हैं। वे पहले से ही परेशान हैं। उनकी परेशानी को समझकर मदद करने के बजाय प्रशासन उन्हीं पर दोषारोपण कर रहा है, यह भयावह है। श्रमिकों की समस्या को सुलझाने के बजाय उन्हें और अधिक परेशानी की तरफ धकेला जा रहा है।

उन्होंने कहा कि हमारी प्रमुख मांग है कि
1- जितने भी मजदूर गुजरात, महाराष्ट्र समेत देश के विभिन्न इलाकों से पैदल चलकर अपने घर जा रहे हैं, उनके लिए परिवहन व्यवस्था की जाए। श्रमिकों की कोरोना स्क्रीनिंग कर उन्हें बसों, ट्रक या अन्य किसी व्यवस्था से सुरक्षित घर भेजा जाए।
2- दूसरे, मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात सभी बार्डर पर श्रमिकों को रोका जा रहा है और उन्हें चार—चार, पांच—पांच घंटे के लिए कैंप में या किसी नजदीकी गांव में पहुंचा दिया जाता है, जहां सामान्य सुविधाएं भी नहीं होती हैं। हमारी मांग है कि एक बार बार्डर पर जिनका टेस्ट या स्क्रीनिंग हो चुकी है, उन्हें बाद में किसी जिला सीमा पर परेशान न किया जाए और उन्हें बार्डर पर ही इस संबंध की चिट्ठी या कोई पास या कागज देने की व्यवस्था हो ताकि गृह जिले तक श्रमिकों को कोई दिक्कत न हो।
3- इसके साथ ही एक राज्य से दूसरे राज्य के बार्डर पर अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि यहां रेड जोन है यहां से बाहर नहीं निकल सकते, ऐसी अफवाहों पर रोक लगाए और प्रशासन की ओर से स्पष्ट आदेश श्रमिकों के लिए सभी चैक पोस्ट और बार्डर पर पहुंचाए जाएं।
4- साथ ही माइग्रेंट लेबर को मार्च की सैलरी नहीं दी गई है, जो पैसे श्रमिकों के पास थे वे रास्ते में खर्च हो गए। किसी ट्रक वाले ने 1000 रुपए लेकर कुछ दूर तक छोड़ा तो रास्ते में खाने की व्यवस्था में भी मजदूरों के पैसे चुक गए हैं। ऐसे श्रमिकों को जो पैदल जा रहे हैं उन्हें तुरंत 1000 रुपए की सहायता राशि उपलब्ध कराई जाए, ताकि वे सुगम तरीके से अपने गृह जिले तक पहुंच सकें।