US imperialism Russia China conflict

लोकतंत्र की आड़ में साम्राज्यवाद: अमेरिका का रूस और चीन के खिलाफ छेड़ा गया युद्ध

US imperialism Russia China conflictसचिन श्रीवास्तव
2019 के बाद अमेरिका ने अपने दो सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वियों— रूस और चीन के खिलाफ अपने आक्रामक अभियान को तेज कर दिया। रूस को घेरने के लिए अमेरिका ने यूक्रेन युद्ध को भड़काया। चीन को कमजोर करने के लिए अमेरिका ने व्यापार युद्ध, ताइवान विवाद और इंडो-पैसिफिक रणनीति अपनाई। अमेरिका ने यूरोप को भी अपने प्रभाव में बनाए रखने के लिए रूस-यूरोप के रिश्तों को कमजोर किया।

अमेरिका बनाम रूस: यूक्रेन युद्ध की असली साजिश (2014-2024)
2014 में अमेरिका ने यूक्रेन की लोकतांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंका और पश्चिम समर्थक सरकार बैठाई। अमेरिका ने NATO का विस्तार पूर्वी यूरोप में बढ़ाना शुरू किया, जिससे रूस नाराज हुआ। अमेरिका ने यूक्रेन को NATO में शामिल करने की कोशिश की, जिससे रूस को अपनी सुरक्षा खतरे में दिखी। 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, लेकिन यह युद्ध केवल रूस-यूक्रेन तक सीमित नहीं था। अमेरिका और पश्चिमी देश इस युद्ध को भड़का रहे थे ताकि रूस कमजोर हो जाए।

अमेरिका का मकसद साफ था — यूरोप को रूस से अलग करना, ताकि यूरोप पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर रहे। साथ ही रूसी ऊर्जा और व्यापार को खत्म करके अमेरिका अपनी गैस कंपनियों को फायदा पहुंचाना चाहता है। रूस को आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमजोर करने के बाद उसका प्रभुत्व बनाए रखना तो है ही।

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US imperialism Russia China conflictअमेरिका का चीन के खिलाफ युद्ध: व्यापार, ताइवान और दक्षिण चीन सागर (2018-वर्तमान)
2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध शुरू किया। अमेरिका ने चीन पर भारी टैरिफ लगाए ताकि उसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान हो। टेक्नोलॉजी सेक्टर में चीन को कमजोर करने के लिए हुवावे (Huawei) और टिक-टॉक (TikTok) जैसी कंपनियों को टारगेट किया।

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चीन हमेशा ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, लेकिन अमेरिका वहां दखल देता आया है। 2021 में अमेरिका ने ताइवान को हथियार बेचना शुरू किया और चीन के खिलाफ गठजोड़ बनाना शुरू किया। 2023 में अमेरिकी राजनेताओं ने ताइवान का दौरा किया, जिससे चीन और भड़क गया।

अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक में कई देशों को चीन के खिलाफ खड़ा किया। AUKUS (अमेरिका-यूके-ऑस्ट्रेलिया) और QUAD (अमेरिका-भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया) जैसे समूह बनाए। चीन के खिलाफ सैन्य दबाव बनाने के लिए दक्षिण चीन सागर में नौसैनिक युद्धाभ्यास किए।

यहां अमेरिका का असली मकसद है— चीन की आर्थिक और सैन्य ताकत को कम करना और ताइवान को इस्तेमाल करके चीन को युद्ध में उलझाये रखना है। इसके जरिये अमेरिका एशिया-प्रशांत में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है।

US imperialism Russia China conflictयूरोप और अन्य देशों पर अमेरिकी नियंत्रण (2019-2024)
यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोप को रूस से गैस और तेल खरीदना बंद करना पड़ा। अब यूरोप को महंगे दामों पर अमेरिकी गैस खरीदनी पड़ रही है। अमेरिका यूरोप की राजनीति में भी हस्तक्षेप कर रहा है ताकि वह रूस और चीन के खिलाफ बना रहे।

भारत और अन्य देशों पर अमेरिका का दबाव भी इसी तरह की रणनीति है। भारत पर दबाव डाला गया कि वह रूस से तेल न खरीदे, लेकिन भारत ने यह दबाव नहीं माना। अमेरिका ने भारत को चीन के खिलाफ QUAD में शामिल किया। दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के देशों में भी अमेरिका ने अपने हित साधने के लिए लोकतंत्र का नाम लेकर दखलअंदाजी की।

अमेरिका की नई साजिश: डिजिटल डॉलर और वित्तीय प्रभुत्व
अमेरिका ने रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाए और उसे SWIFT बैंकिंग सिस्टम से बाहर कर दिया। डॉलर का इस्तेमाल अब एक हथियार की तरह किया जा रहा है। यूरोप, एशिया और अन्य देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर अमेरिका अपना दबदबा बनाए रखना चाहता है।

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अमेरिका अब डिजिटल डॉलर (CBDC) लाने की तैयारी कर रहा है, जिससे वह दुनिया के वित्तीय सिस्टम को पूरी तरह नियंत्रित कर सके। अगर डिजिटल डॉलर आ गया, तो अमेरिका किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर सकता है।

अमेरिका के खिलाफ उठती नई ताकतें: रूस, चीन और ब्रिक्स (2024 के बाद)
रूस, चीन, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका अब अमेरिका के खिलाफ आर्थिक गठबंधन बना रहे हैं। BRICS देश अब अपने व्यापार के लिए डॉलर की जगह दूसरी मुद्राओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

अगर BRICS देश मजबूत हो गए, तो अमेरिकी साम्राज्यवाद कमजोर हो जाएगा। इसलिए अमेरिका अब एशिया और यूरोप में नए युद्ध भड़काने की कोशिश कर रहा है।

अमेरिका का साम्राज्यवाद जारी है, लेकिन पतन करीब
अमेरिका ने रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन-ताइवान विवाद को भड़काकर दुनिया को अस्थिर कर दिया। डॉलर के प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए अमेरिका नए आर्थिक हथकंडे अपना रहा है। लेकिन रूस, चीन और BRICS देश अब अमेरिका के एकछत्र शासन को चुनौती दे रहे हैं। साफ है कि आने वाले सालों में अगर अमेरिका ने अपनी रणनीति नहीं बदली और वह इसी तरह लोकतंत्र की आड़ में साम्राज्यवादी हसरतें पूरी करता रहा, तो जल्द ही वह अपनी सत्ता खो देगा।