वैज्ञानिकों का दावा: कितना सच्चा है 1000 साल तक जिंदा रहने का दावा

सचिन श्रीवास्तव

6 जुलाई 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित
1000 तक जिंदा रहने वाला शख्स धरती पर पैदा हो चुका है। इस वक्त उसकी उम्र करीब 15 साल है। हाल ही में कैंब्रिज  यूनिवर्सिटी के अनुवांशिकी वैज्ञानिक आब्रे डि ग्रे के इस दावे से विज्ञान की दुनिया में हलचल मच गई थी। बीते करीब एक दशक से हजार साल की उम्र पर बहसें होती रही हैं। जानते हैं इसके दावे और विरोध की हकीकत

पैदा हो चुका है 1000 तक जिंदा रहने वाला शख्स

वैज्ञानिक आब्रे डि ग्रे का मानना है कि इंसान की औसत उम्र बीते सौ साल में करीब 25 से 35 साल बढ़ी है और आने वाले सालों में मानक परिस्थितियों में इंसान 135 साल तक आराम से जिंदा रह सकता है। वे इसके आगे जाकर मल्टी ऑर्गन चेंजेज और मेडिकल वर्ल्ड को कंप्यूटर तकनीक से लैस करने की बात कहते हैं और दावा करते हैं कि इसकी मदद से 1000 साल तक जिंदा रहा जा सकता है। यह दावा करीब-करीब इंसान की अमरता की ओर इशारा करता है। अमरता संबंधी अब तक के रिसर्च में सबसे चौंकाने वाले परिणाम बड़े विश्वविद्यालयों के अनुवांशिकी प्रयोगशालाओं द्वारा निकले हैं। लेकिन आब्रे का मानना है कि अनुवांशिकी पर अनुसंधान का मतलब सिर्फ अमरता के तरीके खोजना नहीं है। इस मामले में जीव विज्ञानी समाज दो भागों में बंटा है। विरोधी इसे मानवता और नैतिकता के खिलाफ मान रहे हैं। 

“अमरता गलत है तो लंबे जीवन के लिए संघर्ष क्यों? मौत पर जीत का विरोध भयंकर भाग्यवाद है। बीमारी और वृद्धावस्था से हर राज लाखों लोग मरते हैं। इसे रोकना संभव है, लेकिन फैसला करना है कि रोकें या नहीं।”  
आब्रे डि ग्रे, अनुवांशिकी वैज्ञानिक, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी

इंसानी शरीर की उम्र
आंख: इंसानी आंख सामान्यत: 50 से 60 साल तक अपनी पूरी क्षमता से कार्य करती है। इसका विकल्प अब तक नहीं बना है।
दिमाग : प्रो आब्रे के मुताबिक, इंसान की 1000 साल की उम्र में दिमाग सबसे बड़ा बाधक है। वे दिमाग की कंप्यूटर प्रतिकृतियां बनाकर उसे लगातार रिप्लेस करने की बात कहते हैं। यानी कॉपी-पेस्ट जैसा।
दिल: दिल को बदलने की तकनीक पर विज्ञानी समाज एकमत है। इसे अगले 50 सालों में हासिल किया जा सकता है।
फेफड़े: फेफड़ों को पूरी तरह रिप्लेस करने के बारे में कई रिसर्च चल रही हैं। इनके सकारात्मक नतीजे अगले 20 से 30 साल में मिलेंगे।
किडनी: किडनी की सामान्य उम्र 80 साल है। बेहतर जीवनशैली से इसे बढ़ाया जा सकता है और इसकी कंप्यूटरीकृत इमेज भी बनाना संभव हो सकेगा।
लिवर: लिवर के काम करने और खुद को ठीक करने की क्षमता आश्चर्यजनक है। इसे 1000 साल तक काम करने लायक बनाया जा सकता है।
त्वचा: त्वचा की झुर्रियां यानी इसके मृत सैल को बदलना  बड़ी बात नहीं है। आब्रे के अनुसार त्वचा विज्ञान  तेजी से तरक्की कर रहा है, उसके मुताबिक अगले 30-40 साल में झुर्रियां बीते जमाने की बात होंगी।
जोड़: घुटने और शरीर के अन्य जोड़ मनुष्य के शरीर की सबसे कमजोर कडिय़ां हैं। इनके रिप्लेसमेंट पर मेडिकल साइंस ने काफी तरक्की की है। आने वाले समय में यह कोई समस्या नहीं रह जाएंगे।

80% मौत बुढ़ापे की वजह से होती हैं।

सैद्धांतिक रूप से संभव

डी ग्रे के रिसर्च के समर्थक यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया में विकासवादी जीव विज्ञान के प्रोफेसर माइकल रोज कहते हैं, इस पर सैद्धांतिक रूप से सोचा जा सकता है। यह संभव है। 

भयावह होंगे अमरता के परिणाम

येल स्कूल ऑफ मेडिसिन की प्रो. शेर्विन नुलैंड और पूर्व अमेरिकी बुस की कौंसिल में जैव नैतिकता प्रमुख लियोन कॉस आब्रे के धुर विरोधी हैं। नुलैंड इसे संभव नहीं मानतीं, लेकिन इसके भयानक परिणामों की चेतावनी भी देती हैं।
यह भी पढ़ें:  नाराजगी के नए सुर, नए तरीके: छात्र संग्राम की आहट