भारतीय स्पिन परंपरा का नया जादूगर रवि चंद्रन अश्विन
24 अगस्त 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित |
सचिन श्रीवास्तव
जन्म: 17 सितंबर 1986, चेन्नई, तमिलनाडु
जन्म: 17 सितंबर 1986, चेन्नई, तमिलनाडु
टीम में भूमिका: ऑलराउंडर। राइट आर्म ऑफ स्पिनर और राइट हैंडेड बेट्समैन
पहला टेस्ट: 6 नवंबर 2011, वेस्टइंडीज के खिलाफ
पहला वनडे: 5 जून 2010, श्रीलंका के खिलाफ
टी20 पदार्पण: 12 जून 2010, जिम्बाब्वे के खिलाफ
टेस्ट मैचों में छठी बार मैन ऑफ द सीरीज का खिताब अपने नाम कर रविचंद्रन अश्विन ने रिकॉर्ड बुक में सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग को पीछे छोड़ दिया है। स्पिन गेंदबाजी की भारतीय परंपरा के इस नये जादूगर को शुरुआती दिनों में टेस्ट का गेंदबाज नहीं माना जाता था। यह दीगर बात है कि उन्होंने अपने टेस्ट पर्दापण में मैन ऑफ द मैच खिताब जीता था। ऐसा करने वाले वे महज तीसरे भारतीय हैं।
अश्विन अगले महीने अपनी उम्र के 30 साल पूरे करने वाले हैं और उन्होंने महज ३६ टेस्ट में 6 मैन ऑफ द सीरीज अपने नाम करने का कारनामा कर दिखाया है। अपने पांच साल के कॅरियर में अश्विन ने 13 टेस्ट सीरीज में हिस्सेदारी की है और इनमें से छह में वे मैन ऑफ द सीरीज रहे हैं। यह आंकड़े अश्विन की कामयाबी की घोषणा करते हैं।
वनडे से टेस्ट का सफर
कॅरियर के शुरुआती दिनों में अश्विन को सीमित ओवरों की क्रिकेट का विशेषज्ञ गेंदबाज माना जाता था। नवंबर 2011 में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण के बाद उन्होंने इसे गलत साबित किया। उन्होंने किसी भारतीय गेंदबाज के मुकाबले सबसे कम 29 मैचों में 150 टेस्ट विकेट पूरे किए। इस क्रम में उन्होंने ईरापल्ली प्रसन्ना (34 टेस्ट), अनिल कुंबले (34 टेस्ट) और हरभजन सिंह (35 टेस्ट) जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ा। 50 और 100 टेस्ट विकेट सबसे पहले लेने का भारतीय रिकॉर्ड भी अश्विन के ही नाम है।
प्रतिभा के साथ मेहनत
अश्विन की कामयाबी में उनकी शानदार प्रतिभा के कड़ी मेहनत का भी योगदान है। कर्नाटक की पारंपरिक शालीनता और चुपचाप अपना काम करने की रणनीति उन्हें अनिल कुंबले और राहुल द्रविड के समकक्ष खड़ा करती है। द्रविड की तरह शांत और कुंबले की तरह धैर्यवान रहने वाले अश्विन अपने प्रयोगों के लिए अलग से जाने जाते हैं।
6 टेस्ट मैन ऑफ द सीरीज
1- वेस्टइंडीज के खिलाफ 2011/12 में। 3 मैचों में 22 विकेट (दो बार 5 विकेट) और 121 रन (एक शतक)। भारत सीरीज 2-0 से जीता।
2- न्यूजीलैंड के खिलाफ 2012 में। 2 मैचों में 18 विकेट (तीन बार 5 विकेट) और 69 रन। भारत सीरीज 2-0 से जीता।
3- ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2012/13 में। 4 मैचों में 29 विकेट (4 बार 5 विकेट) और 20 रन। भारत सीरीज 4-0 से जीता।
4- श्रीलंका के खिलाफ 2015/16 में। 3 मैचों में 21 विकेट (दो बार 5 विकेट) और 94 रन (एक अर्धशतक)। भारत सीरीज 2-1 से जीता।
5- दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 2015/16 में। 4 मैचों में 31 विकेट (चार बार 5 विकेट) और 101 रन (एक अर्धशतक)। भारत सीरीज 3-0 जीता।
6- वेस्टइंडीज के खिलाफ 2016 में। 4 मैचों में 17 विकेट (दो बार 5 विकेट) और 235 रन (दो शतक)। भारत सीरीज 2-0 जीता।
कुछ दिलचस्प तथ्य
रविचंद्रन या अश्विन?: उनके नाम के बारे में कई लोगों में गफलत है। असल में रविचंद्रन उनके पिता का नाम है और अश्विन उनका अपना नाम। इसलिए आर. अश्विन उनके लिए मुफीद नाम है।
खून में क्रिकेट: अश्विन के पिता रविचंद्रन दक्षिण रेलवे के कर्मचारी रहे हैं और उन्होंने इग्मोर एक्सेलसियोर्स के लिए करीब एक दशक तक क्लब क्रिकेट खेली है। इसी क्लब में अश्विन ने क्रिकेट के शुरुआती सबक सीखे।
मां है सख्त: अश्विन की मां चित्रा उनकी पढ़ाई को लेकर काफी सख्त रही हैं। हालांकि माता-पिता दोनों ने उनके क्रिकेट प्रेम को तवज्जो दी, लेकिन शर्त यही थी कि वे पढ़ाई में भी अच्छा करेंगे।
ओपनिंग बल्लेबाज: वेस्टइंडीज में लगाए गए हालिया दो शतकों के अलावा कई मौकों पर अश्विन भारतीय बल्लेबाजी के संकटमोचक साबित हुए हैं। कम लोगों को ही पता है कि अपने शुरुआती दिनों में वे ओपनिंग बल्लेबाज रहे हैं। इसीलिए उनकी तकनीक पुछल्ले बल्लेबाजों के मुकाबले खासी बेहतर है।
चोट के कारण छोड़ी बल्लेबाजी: 14 साल की उम्र में अश्विन के पेडू में चोट लग गई थी। जिसके कारण उनकी हिप बोन्स के बीच काफी खून बहा। इसके बाद दो महीने अश्विन को पूर्ण आराम कराया गया। इस चोट के बाद अश्विन ने बल्लेबाजी के बजाय गेंदबाजी पर ध्यान देना शुरू कर दिया।
हर शुरुआत बेहतर: अश्विन ने अपने टी20, वनडे और टेस्ट तीनों मैचों के पदार्पण में ध्यान आकर्षित किया। जिम्बाब्वे के खिलाफ टी20 पदार्पण में उन्होंने चार ओवर में महज 22 रन देकर एक महत्वपूर्ण विकेट लिया। श्रीलंका के खिलाफ वनडे की शुरुआत में अश्विन ने 32 गेंदों में 38 रन की पारी खेली और बाद में 50 रन देकर दो विकेट लिए। टेस्ट में उनकी निजी शुरुआत सबसे शानदार रही। वेस्टइंडीज के खिलाफ पहली पारी में उन्होंने 61 रन देकर 3 विकेट झटके। तो दूसरी पारी में 47 रन पर 6 विकेट लेकर भारत की जीत सुनिश्चित की। यह टेस्ट पदार्पण में भारत के लिए नरेंद्र हिरवानी के बाद सबसे बेहतरीन प्रदर्शन था।