सेलिब्रेशन आॅफ जर्नलिज्म: रेडिया और टीवी प्रसारण सरकार की दखल को दी चुनौती

29 अगस्त 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

सचिन श्रीवास्तव
1927 में अमरीका ने रेडियो एक्ट लागू किया तो दुनिया भर के पत्रकारीय जगत ने उम्मीद की थी कि प्रसारण अधिकारों पर सरकारी और व्यावसायिक घरानों का एकाधिकार खत्म होगा। यह उम्मीद बेमानी साबित हुई और सभी के लिए समान प्रतिस्पर्धी माहौल मुहैया कराने वाला कानून सरकारी गलियारों और व्यावसायिक हथकंडों की भेंट चढ़ गया। हालांकि इस बीच दुनिया के दूसरे देशों में प्रसारण संबंधी कानून की बहस तेज हुई और यूरोप, एशिया समेत कुछ अफ्रीकी देशों में नए नियम बने।

एडवर्ड आर मुरे
जन्म: 25 अप्रैल 1908
निधन: 27 अप्रैल 1965
वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र, भाषण और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की पढ़ाई। द्वितीय विश्व युद्ध की यूरोप में रहकर रिपोर्टिंग। इस दौरान एंकरिंग का लहजा और भाषा बदलने में अहम योगदान।
मुरे का योगदान
रेडियो कानूनों की इस बहस के दौर में एडवर्ड आर मुरे अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद अध्यापन के काम में जुटे थे। इसी बीच 1935 में उन्हें सीबीएस ने द्वितीय विश्व युद्ध की रिपोर्टिंग का जिम्मा सौंपा। मुरे इस काम में लग गए। लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया कि आखिर वे जो रिपोट्स भेजते हैं उनका इस्तेमाल सरकार और चंद ताकतवर लोग अपने हितों के लिए करते हैं। मुरे ने इसके खिलाफ एक तोड़ निकाला। वे लाइव रिपोर्टिंग करने लगे। साथ ही एंकरिंग के दौरान ताजा खबरें सीधे श्रोताओं तक पहुंचाने लगे। रेडियो पर उनके अंदाज को पसंद किया गया। इस दौरान मुरे ने सबसे ज्यादा खबरें अमरीका और यूरोप की हथियार लॉबी के खिलाफ कीं। मुरे खुद तो ऐसी खबरें कर लेते थे, लेकिन उनके अन्य साथियों की खबरें दबा दी जाती थीं। तब उन्होंने कानून की मांग की। आखिरकार लंबी लड़ाई के बाद 1949 में इसके लिए पॉलिसी तैयार की हुई और खबरों पर सरकारी अंकुश खत्म हुआ।
———————————-
टेड कोप्पल
जन्म: 8 फरवरी 1940
अपने एंकरिंग के खास लहजे और खबरों के प्रस्तुतिकरण में बदलाव के लिए जाने जाते हैं। 2005 में रिटायर। बीबीसी और डिस्कवरी के लिए काम किया।
टेड कोप्पल की भूमिका
हिटलर के शासनकाल में अपना बचपन गुजारने वाले टेड ने पांचवें और छठवें दशक में खबरों को रुकते और कमजोर होते देखा था। अपने पत्रकारीय कॅरियर की शुरुआत के वक्त से ही वे सरकारी अंकुश के खिलाफ रहे और उन्होंने अपने पूर्ववर्ती साथियों की लंबी लड़ाई को तेजी से आगे बढ़ाया। टेड ने पूरे यूरोप में हर देश के लिए अलग कानून और पत्रकारों के हालात दिखाने की पहल भी की। उन्होंने सीधी-सपाट खबरें दिखाने के बजाय इस बात पर जोर दिया कि पत्रकार किन हालात में वह रिपोर्ट लाए हैं। यानी खबर हासिल करने की पूरी प्रक्रिया को उन्होंने खबर का हिस्सा बनाया। साथ ही यूरोपीय शहरों में पत्रकारीय समूहों का निर्माण कराया।
———————————-

वुल्फ ब्ल्टिजर

जन्म: 22 मार्च 1948
1990 के बाद से सीएनएन का प्रमुख चेहरा रहे। मिस्र और इस्राइल के संबंधों को सामान्य करने में अहम भूमिका। इंटरव्यू के दौरान अपने तीखे सवालों के लिए जाने जाते हैं। निजी जीवन में बेहद शांत और कम मिलने-जुलने वाले।
वुल्फ ब्ल्टिजर
एडवर्ड और टेड के काम को बीच के सालों में कई लोगों ने आगे बढ़ाया लेकिन बीती सदी के आखिरी दशक में वुल्फ ने दो देशों के बीच की खबरों पर लगने वाले सरकारी अंकुश के खिलाफ बड़ी, लंबी और थकाऊ लड़ाई लड़ी। बतौर अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टर उन्होंने मिस्र और इस्राइल के बीच संबंध सामान्य करने में अहम भूमिका निभाई और रेडियो-टीवी की खबरों पर सरकारी दखल कम करने के लिए लगातार लेख लिखे।

यह भी पढ़ें:  सेलिब्रेशन आॅफ जर्नलिज्म: महिला पत्रकार की कलम ने डुबोया ऑयल कंपनी का जहाज