ए. एम. नाईक : दान करेंगे अपनी संपत्ति का 75 प्रतिशत हिस्सा
29 अगस्त 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित |
सचिन श्रीवास्तवएलएंडटी के प्रमुख एएम नाईक ने अपनी कुल संपत्ति का 75 फीसदी हिस्सा दान करने की घोषणा की है। वे अपने पद से मुक्त हो रहे हैं। एक इंटरव्यू के दौरान नाईक ने संपत्ति दान को अपनी व्यक्तिगत इच्छा बताया।
मेरे पिता और दादा के पास पैसे नहीं थे। उन्होंने अपना जीवन गरीबी में बिताया। इसलिए मैंने अपनी कुल कमाई का 75 फीसद हिस्सा दान करने का फैसला किया है।ए. एम नाईक
पोती के नाम पर मेडिकल ट्रस्ट
नाईक ने दो चैरिटी संगठन शुरू किए हैं। एक ट्रस्ट में वे बच्चों की शिक्षा और उनके कौशल विकास के लिए काम करेंगे। वहीं दूसरा, निर्मल मेमोरियल मेडिकल ट्रस्ट गरीबों को इलाज मुहैया कराएगा। इस ट्रस्ट का नाम उन्होंने अपने पोती के नाम पर रखा है। नाईक की पोती की 2007 में कैंसर से मौत हो गई थी। इन ट्रस्टों के काम में नाइक की बहन भी उनकी मदद करती हैं। फिलहाल वे गुजरात में अपने पिता द्वारा स्थापित स्कूल का विकास करने में व्यस्त हैं। साथ ही एक अस्पताल निर्माण करा रहे हैं।
20 साल में 125 करोड़ का दान
दान नाईक के मामले में कोई नई बात नहीं है। नाईक काफी समय से सामाजिक कार्यों के लिए दान करते रहे हैं। बताया जाता है कि बीते 20 सालों में वे करीब 125 करोड़ रुपए दान कर चुके हैं।
ए.एम. नाईक
9 जून 1942 को जन्म। 1966 में गीता नाइक से शादी। दो बच्चे।
1965 में बतौर जूनियर इंजीनियर लार्सन एंड टर्बो से कॅरियर की शुरुआत की।
1986 में उन्हें प्रमोशन मिला और वे जनरल मैनेजर बने।
1999 में वे कंपनी के सीईओ बने।
2003 में चैयरमैन पद पर पहुंचे।
2012 में चैयरमैन का कार्यकाल बढ़ा दिया गया।
2017 में वे एलएंडटी को अलविदा कह देंगे।
शिक्षक परिवार से ताल्लुक
दक्षिणी गुलरात के इंधल गांव में जन्में नाइक का परिवार शिक्षा क्षेत्र से जुड़ा था। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री हासिल की ओर इसके बाद मुंबई आ गए। तब उनके पिता ने मुकुंद आयरन एंड स्टील वर्कस में कार्यरत वीरेन जे शाह के नाम के नाइक को एक खत दिया था।
अंग्रेजी थी कमजोरी
मुंबई में अपनी शुरुआती नौकरी के दौरान कमजोर अंग्रेजी के कारण उन्हें दिक्कत हुई। कंपनी के पर्सनल मैनेजर ने उन्हें अंग्रेजी ठीक करने की सलाह दी। नाइक ने इसे गंभीरता से लिया। उन्होंने एक पारसी मालिक की कंपनी नेस्टर बोइलर्स ज्वाइन कर ली।
तीसरी नौकरी की एलएंडटी में
नेस्टर बोइलर्स में कुछ महीनों के बाद ही प्रबंधन बदल गया और नाइक फिर बेरोजगार हो गए। इसके बाद उन्होंने काम की तलाश शुरू की और 15 मार्च 1965 को बतौर जूनियर इंजीनियर एलएंडटी ज्वाइन की।