आंग सान सू की : मानवतावादी नजरिये को हार्वर्ड का सम्मान

19 सितंबर 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

सचिन श्रीवास्तव
म्यांमार की नेता आंग सान सू की को साल 2016 के ह्यूमैनटेरीयन ऑफ द ईयर पुरस्कार से नवाजा जाएगा। यह पुरस्कार हार्वर्ड फाउंडेशन की ओर से दिया जाता है। नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित सू की म्यांमार की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की महासचिव हैं। सरकार विरोधी प्रदर्शनोंके कारण 15 साल तक अपने घर में नजरबंद रहीं सू की का जीवन कई उतार-चढ़ाव से गुजरा है।

आंग सान सू की
जन्म: 19 जून 1945
विदेश मंत्री के पद पहुंचने वाली देश की पहली महिला। 1990 में राफ्तो पुरस्कार व विचारों की स्वतंत्रता के लिए सखारोव पुरस्कार से और 1991 में नोबेल से सम्मानित। 1992 में अंतरराष्ट्रीय सामंजस्य के लिए भारत सरकार की ओर जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से नवाजा गया। वर्षों की नजरबंदी के बाद 13 नवंबर 2010 को रिहा।

रंगून में बीता बचपन
आंग सान सू जब दो साल की थीं, तभी उनके पिता की हत्या हो गई थी। वह मां खिन की और दो भाइयों आंग सान लिन और आंग सान ऊ के साथ रंगून में पली-बढ़ीं। उनकी मां खिन की 1960 के दशक में भारत और नेपाल में बर्मा का राजदूत रहीं।

यह भी पढ़ें:  कम होती लागत : बुनियादी सेवाएं हो रही हैं सस्ती

भारत में की पढ़ाई
खिन की जब भारत में राजदूत थी, तब सू की कॉलेज की पढ़ाई कर रही थीं। उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से 1964 में राजनीति विज्ञान में स्नातक किया। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड चली गईं। वहां उन्होंने दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने लंदन यूनिवर्सिटी से 1985 में पीएचडी की।

संयुक्त राष्ट्र के लिए किया है काम
भारत से स्नातक करने के बाद सू की न्यूयॉर्क चली गई थीं। यहां वे तीन साल तक रहीं। इस दौरान सू की ने संयुक्त राष्ट्र में काम किया।

तिब्बती विद्वान को चुना हमसफर
1972 में आंग सान सू की ने तिब्बती संस्कृति के विद्वान और भूटान में रह रहे डॉ. माइकल ऐरिस से शादी की। उनके दो बेटे हैं। बड़े बेटे अलेक्जेंडर ऐरिस का जन्म लंदन में 1972 में हुआ। दूसरा बेटा किम 1977 में पैदा हुआ।
पति की मौत के वक्त नहीं रह सकीं साथ
1988 में सू बीमार मां की सेवा के लिए म्यांमार लौटीं। यहां लोकतंत्र समर्थक आंदोलन अपने हाथ लिया। 1995 में क्रिसमस के दौरान पति माइकल से सू आखिरी बार मिलीं। इसके बाद म्यांमार सरकार ने माइकल को वीजा नहीं दिया। 1997 में माइकल को प्रोस्टेट कैंसर हो गया। अमरीका, संयुक्त राष्ट्र संघ और पोप जान पाल द्वितीय की अपीलों के बावजूद सरकार ने उन्हें वीजा नहीं दिया। हालांकि सू की को बाहर जाने की इजाजत दी। लेकिन देश में वापसी पर पाबंदी की आशंका के चलते सू की म्यांमार छोड़कर नहीं गईं। 53 साल की उम्र में माइकल का निधन हो गया। 

यह भी पढ़ें:  1 अक्टूबर 2016 को राजस्थान पत्रिका के सोशल मीडिया पेज पर प्रकाशित