सेलिब्रेशन आॅफ जर्नलिज्म: महिला पत्रकार की कलम ने डुबोया ऑयल कंपनी का जहाज

26 सितंबर 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

सचिन श्रीवास्तव 
20वीं सदी की शुरुआत में अमरीका की स्टैंडर्ड ऑयल कंपनी का कारोबार पूरी दुनिया में फैला हुआ था और अमरीकी ऑयल मार्केट में इसकी हिस्सेदारी 90 प्रतिशत थी। सभी को इस बात का अंदाजा था कि कंपनी कानून की संकरी गलियों का फायदा उठाकर बाजार में अपना एकाधिकार बनाए हुए है। राजनीतिक हलकों में स्टैंडर्ड के संस्थापक और चेयरमैन जॉन डी रॉकफेलर की तूती बोलती थी और प्रशासनिक गलियारों में उनके समर्थकों की लंबी फौज थी। कुल मिलाकर हालात कंपनी के पक्ष में थे और उसकी बादशाहत खत्म होने की बात सोचना तो दूर कोई चुनौती मिलने के भी आसार नहीं थे। ऐसे में एक महिला पत्रकार ने अपनी धारदार खोजी पत्रकारिता के जरिये ऑयल कंपनी पर इतनी चोट कीं, कि 10 साल में ही कंपनी 90 हिस्सों में बिखर गई, कानून में बदलाव हुआ और तेल के व्यापार का निगरानी तंत्र बना।

इडा एम टारबेल
जन्म: 5 नवंबर 1857
निधन: 6 जनवरी 1944
बतौर शिक्षक कॅरियर की शुरुआत। बाद में लेखन शुरू किया। 1990 में खोजी पत्रकारिता से जुड़ीं। 1904 के बाद से लगातार ऑयल कंपनियों की गैरकानूनी हरकतों के खिलाफ लेखन। दो दर्जन से ज्यादा किताबें लिखीं।

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ऑयल कंपनियों की गैरकानूनी हरकतें
बात शुरू होती है 1960 के दशक से। उस वक्त पैन्सिलवेनिया में ऑयल इंडस्ट्री ने पैर पसारने शुरू किए थे और कई लोग इस व्यवसाय में भविष्य के सुनहरे दिन देख रहे थे। इन्हीं में टारबेल परिवार भी शामिल था। टारबेल परिवार ने तेल कारोबार में अपने पैर पसारे और चार-पांच सालों में ही अच्छी खासी प्रगति कर ली। इसी दौर में स्टैन्डर्ड ऑयल कंपनी समेत अन्य बड़ी कंपनियों ने गैरकानूनी तरीके से ऑयल मार्केट पर कब्जा शुरू किया। नतीजतन छोटे कारोबारी घाटे में जाने लगे। इसका खामियाजा टारबेल परिवार ने भी भुगता और आखिरकार 70 के दशक के अंत तक उनका कारोबार चौपट हो गया। टारबेल परिवार की बच्ची इडा बड़ी तेल कंपनियों की साजिशों को तो नहीं समझ पा रही थी, लेकिन उसके प्रभावों को नजदीक से देख रही थी।

कंपनी की बादशाहत
1890 में स्टैंडर्ड ऑयल कंपनी का अमरीकी तेल मार्केट के 88 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा था। 1892 में ओहियो में एक मामला चला लेकिन अपने राजनीतिक रसूख के जरिये कंपनी को क्लीन चिट मिल गई। हालांकि इस दौर में न्यू जर्सी ने कानून में बदलाव कर कंपनी का एकाधिकार खत्म करने की कोशिश की, लेकिन दुनिया भर में फैले कारोबार पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा।

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क्या करती थी स्टैंडर्ड ऑयल कंपनी
स्टैंडर्ड ऑयल कंपनी ने कई छोटी-छोटी कंपनियां बना रखी थीं, जिनके सहारे तेल के दामों को नियंत्रित करती थी। तीसरी दुनिया के छोटे देशों में सस्ता तेल उपलब्ध कराकर पहले बाजार कब्जाती थी, और फिर मनमानी कीमत वसूलती थी।

1904 में मिली पहली चुनौती
1904 इडा एम टारबेल ने पहली बार एक खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की। इसमें उन्होंने जॉन डी रॉकफेलर को तुनक मिजाज, कंजूस, पैसा हथियाने वाला और तेल व्यापार में गैरकानूनी रास्तों का सहारा लेने वाला बताया। इस दौर में स्टैंडर्ड कंपनी का 91 प्रतिशत बाजार पर कब्जा था। लगातार खबरों और कानूनी प्रक्रिया का असर पड़ा और 2006 में कंपनी का कारोबार 70 प्रतिशत रह गया। 2011 तक आते-आते यह 64 प्रतिशत पहुंच गया।

अदालती आदेश से बिखरी कंपनी
1909 में अमरीकी अदालत ने स्टैंडर्ड कंपनी के खिलाफ आदेश सुनाते हुए कहा कि वह अपनी 90 कंपनियों में अलग-अलग निदेशक नियुक्त करे। साथ ही प्रशासन को कंपनियों के बीच होने वाले कारोबार पर निगरानी रखने का आदेश दिया। यह फैसला शेरमन एंटीट्रस्ट एक्ट के तहत सुनाया गया।