सेहत सुधारेगी वर्चुअल रियल्टी

सचिन श्रीवास्तव
अब तक वर्चुअल रियल्टी का इस्तेमाल गेमिंग, मैन्युफैक्चरिंग, इंटीरियर डिजाइन और फैशन इंडस्ट्री में खूब देखने को मिला है और इसके नतीजे भी अच्छे निकले हैं। लेकिन कम ही लोगों को पता है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी वर्चुअल रियल्टी का इस्तेमाल हो रहा है और यह कई गंभीर बीमारियों के इलाज का कारगर हथियार बन रही है। इनमें मानसिक विकार, किसी खास चीज की लत, फोबिया और ट्रोमा भी शामिल हैं।


चार तरह के इलाजों में कारगर

1- मनोविकार

ऑटिज्म पीडि़त के लिए वर्चुअल रियल्टी एक वरदान है। यह एक खास किस्म का मनोरोग है, जिसमें पीडि़त को खुद पर यकीन नहीं होता है,
या फिर वह दूसरों से घुलने-मिलने में परहेज करता है।
कैसे
– पीडि़त को एक हेड माउंट डिवाइस (एचएमडी) यानी सिर पर लगाई जाने वाली मशीन दी जाती है, जिसमें उसकी आंखों के आगे एक स्क्रीन होती है। इसके बाद पीडि़त एक आभासी वातावरण में पहुंच जाता है। जहां उसे कुछ खास चुनौतियां, जैसे स्ट्रीट लाइट पार करना, सड़क क्रास करना, सीढिय़ा चढऩा मिलती हैं। पीडि़त इनसे खुद को उबार पाता है।
– ऐसे ऑटिस्टिक बच्चे जो बाहरी वातावरण की चुनौतियों में असहज होते हैं, उन्हें क्लासरूम के भीतर कुछ काम दिए जाते हैं। इस दौरान आभासी दुनिया में ही एक 3डी शिक्षक बच्चे की मदद करता है।
– जब बच्चा कुछ हद तक चुनौती लेने लगता है, तब 3डी शिक्षक गायब हो जाता है, और बच्चे खुद ही चुनौतियां पूरी करना सीखने लगता है। इसके बाद उसे बाहरी वातावरण दिया जाता है।

यह भी पढ़ें:  पापा ने दी उम्र भर के लिए सीख: स्वरा भास्कर

2- नशे आदि की लत
अमरीका और चीन में शोधकर्ताओं ने वर्चुअल रियल्टी से नशाखोरी की लत से निजात का तरीका निकाल लिया है। इसे कामयाबी से इस्तेमाल भी किया जा रहा है।
कैसे
– वर्चुअल रियल्टी में आभासी व्यक्ति पीडि़त को कई तरह के नशे ऑफर करता है और आभासी काउंसलर उसे इनसे पीछा छुड़ाने के लिए प्रेरित करता है। वह पीडि़त को बताता है कि उसे यह नशा क्यों नहीं करना चाहिए।
– धीरे-धीरे पीडि़त प्रलोभनों देने वाले से काउंसलर की तरह बात करने लगता है।
– कुछ हद तक कामयाबी के बाद पीडि़त को असली दुनिया में अपनी सीख इस्तेमाल करने की छूट दी जाती है।
– यह आभासी टूल नशे के पीडि़त को धीरे-धीरे सामान्य जीवन की ओर लाता है और उसे नशे के इस्तेमाल को खत्म कर देता है।

3- फोबिया
डॉक्टर्स मरीज को डर का सामना कराने और उससे निजात के लिए वर्चुअल रियल्टी का इस्तेमाल करने लगे हैं। इसके नतीजे बेहतर रहे हैं।
कैसे
– सिर पर डिवाइस लगाकर मरीज को उसके डर का सामना कराया जाता है। ऐसा तब तक किया जाता है, जब तक कि मरीज उस डर पर जीत न हासिल कर ले।
– इस दौरान एक टीम पूरी प्रक्रिया पर नजर रखती है और मरीज को वह रास्ते सुझाती है, जिससे वह अपने डर पर काबू पा सकता है।

यह भी पढ़ें:  सेवानिवृत्ति योजना: पेंशन के दायरे से बाहर ज्यादातर कामकाजी आबादी

4- ट्रोमा के शिकार
कई सैनिकों में युद्ध के बाद डिसऑर्डर देखने को मिलता है या फिर वे किसी किस्म के सदमे में होते हैं। इन मामलों में वर्चुअल रियल्टी कारगर साबित हो रही है।
कैसे
-अफगानिस्तान और ईराक युद्ध के बाद अमरीकी शोधकर्ताओं ने पूर्व सैनिकों के घावों के इलाज और सदमे से निजात दिलाने के लिए पहली बार वर्चुअल रियल्टी का इस्तेमाल किया।
– इस प्रक्रिया के नतीजे बेहतर रहे और इससे पूर्व सैनिकों को किसी किस्म का नुकसान नहीं हुआ।
– मरीज को दर्द पहुंचाने वाले उपचार के दौरान वर्चुअल गेमिंग का सहारा भी लिया गया और यह बेहतर रहा।
– घावों की ड्रेसिंग के वक्त पीडि़त का ध्यान वर्चुअल गेमिंग में होता है, इससे उसे कम दर्द महसूस होता है।

भारत में वर्चुअल रियल्टी
हमारे देश में अब तक वर्चुअल रियल्टी का इस्तेमाल मनोरंजन के अलावा निर्माण आदि क्षेत्रों में ही किया जा रहा है, लेकिन जल्द ही इसका इस्तेमाल अन्य क्षेत्रों में देखने को मिलेगा। उम्मीद की जा रही है कि एक-दो सालों में भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में भी वर्चुअल रियल्टी का इस्तेमाल देखने को मिलेगा। देश के कई हिस्सों में वर्चुअल रियल्टी लाउंज बनाए जा रहे हैं, जो 2017 के अंत तक हकीकत में तब्दील हो जाएंगे। सिनेमाघरों में भी वर्चुअल रियल्टी लाउंज बनने लगे हैं।