अंतरराष्ट्रीय व्यापार कॉरिडोर : भविष्य का रास्ता
सचिन श्रीवास्तव
एक दशक पहले भारत, रूस और ईरान के बीच हुआ अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) समझौता एक बार फिर चर्चा में आ गया है। वजह बनी है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुलाई में होने वाली मध्य एशिया के पांच देशों की यात्रा। इस समझौते का उद्देश्य ईरान से यूरोप और उत्तर एशिया क्षेत्र तक बेहतर संपर्क स्थापित करना है। उम्मीद की जा रही है कि इस कॉरिडोर पर अगले 15 दिनों में ड्राई रन शुरू हो जाएगा। इस साल के अंत तक परियोजना के औपचारिक तौर पर शुरू होने के आसार हैं। आईएनएसटीसी के सदस्यों ने इसी माह कैस्पियन सागर होते हुए भारत, ईरान और रूस के बीच यातायात के हालात पर समीक्षा बैठक की और जुलाई में एक और बैठक होनी है। भारत अभी इस कॉरिडोर से मुंबई के जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह से जुड़ा है। इस परियोजना को भविष्य में दक्षिण एवं पश्चिम एशिया तथा यूरोप एवं मध्य एशिया के बीच अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख मार्ग के रूप में देखा जा रहा है।
7200 किलोमीटर लंबा है यह नया गलियारा
30 दिनों में मुंबई से रूस के सेंट पीटर्सबर्ग तक हो सकेगी माल ढुलाई
90 प्रतिशत रेलमार्ग हो चुका है तैयार
2017 के अंत तक पूरी तरह व्यापारिक आवागमन
के लिए तैयार होगा गालियारा
50 प्रतिशत रह जाएगा यूरोप तक पहुंचने का समय। लागत भी हो जाएगी आधी
10 प्रतिशत हिस्सा वैश्विक समुद्री व्यापार का गुजरता है स्वेज नहर से। नई परियोजना से कम होगा स्वेज नहर पर दबाव
200 से 250 लाख टन सामान जाएगा इस कॉरिडोर से। शुरुआत में 40 लाख टन सामग्री की ढुलाई
ऐसे होगी यात्रा
– कोरिडोर मुंबई से कंटेनर को समुद्री जहाज से ईरान के बंद्र्वास बंदरगाह ले जाएगा।
– बंद्र्वास बंदरगाह से रेल से ईरान के आखिरी शहर तक जाएगा माल
– इसके बाद रूसी रेल गेज अजरबेजान देश से होते हुए रेल से मास्को तक पहुंचाएगी।
– इसके बाद इसे फिनलैंड से भी जोड़ा जाएगा, जहां से इसे यूरोप ले जाया जा सकता है।
समय की बचत
मुंबई से ईरान के बंदर अब्बास से होते हुए रूस के अस्त्रखान और अजरबेजान के बाकू तक के इस गलियारे से भारत से मध्य एशियाई क्षेत्रों और रूस तक माल ढुलाई का समय काफी कम हो सकता है।
ये देश जुड़ेंगे इस गलियारे से
भारत, ईरान, रूस, तुर्की, अजरबेजान, कजाकिस्तान, अर्मेनिया, बेलारूस, तजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ओमान, यूक्रेन, बुल्गारिया और ईस्टोनिया
विशेष आमंत्रित: उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान
चुनौतियां भी कम नहीं
भ्रष्टाचार: ईरान और रूस में भ्रष्टाचार काफी बढ़ गया है। समुद्री मार्ग में एक बार कंटेनर में माल भरने के बाद गंतव्य तक पहुंचता है। सड़क मार्ग में ऐसा नहीं है। इसलिए रुकावटें आ सकती हैं।
महंगाई: ट्रक से सामान भेजना समुद्री मार्ग की तुलना में महंगा होता है। दूरी कम होने से लाभ हो सकता है, लेकिन तेल के दाम बढऩे से असर पड़ेगा।
माल की कमी: चीन से यूरोप को चलने वाली रेलगाडिय़ों के लिए माल नहीं मिल रहा है। यह परियोजना भी माल की कमी से प्रभावित हो सकती है।
खाली कंटेनर: अभी तक लग रहा है एक तरफ से कंटेनर खाली ही आएंगे। इससे लगत बढ़ जाएगी।
समुद्री, रेल और सड़क मार्ग का संयोजन
इस गलियारे में समुद्री, रेल और सड़क मार्ग के जरिये तेजी से व्यापारिक वस्तुओं का आवागमन हो सकेगा। फिलहाल रूस तक पहुंचने के लिए स्वेज नहर के रास्ते समुद्री मार्ग का इस्तेमाल किया जाता है। सीधे रास्ते से रूस के यूरोपीय हिस्से तक पहुंचने का समय और लागत इससे आधी रह जाएगी। साथ ही नए देशों से व्यापार के रास्ते खुलेंगे।
स्वेज नहर पर कम होगा दबाव
इस समय समुद्री मार्ग से होने वाले कुल वैश्विक व्यापार का करीब 10 प्रतिशत हिस्सा स्वेज नहर से होकर गुजरता है। ईरान पर लगे प्रतिबंध हटने के कारण स्वेज नहर से गुजरने वाले जलपोतों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी के आसार हैं। इससे स्वेज नहर पर क्षमता से अधिक दबाव होगा। इससे माल ढुलाई में देरी होगी। ऐसे हालात में नया गलियारा स्वेज नहर के बोझ को कम करेगा।
साइबेरियाई तेल तक भारत की पहुंच
इस परिवहन गलियारे का 3 हजार किलोमीटर हिस्सा रूसी जमीन पर है। इसका सड़क वाला हिस्सा रूस-फिनलैंड सीमा से कैस्पियन सागर तक रूसी रेलवे के समानांतर गुजरता है। गलियारा बनने के बाद साइबेरिया के तेल स्रोतों तक भारत की सीधी पहुंच होगी और ईंधन जरूरतों को आसानी से पूरा किया जा सकेगा।
सुरक्षा महत्व भी है इस योजना का
भारत के लिए राजनीतिक और रक्षा की नजर से पाकिस्तान को बिना छूए मध्य एशिया के देशों तक पहुंचना जरूरी है। नये परिवहन गलियारे के अंतिम चरण में पहुंचने काकेशिया और पश्चिम एशिया की सुरक्षा का महत्व काफी बढ़ गया है। सीरिया में रूस ने अपने स्थायी वायुसैनिक अड्डे स्थापित किए हैं। यह परियोजना न केवल इस क्षेत्र में रूस के सैन्य तथा मानवीय अभियानों में महत्वपूर्ण होगी, बल्कि पश्चिम एशिया के टिकाऊ आर्थिक विकास की नींव भी बनेगी।
तीन वैश्विक परियोजनाओं में सबसे महत्वपूर्ण
इस दशक में पूरी दुनिया में तीन बड़ी ट्रांसपोर्ट परियोजनाएं सामने आई हैं। इनमें चीन-पकिस्तान का ग्वादर सी पैक कोरिडोर और चीन का यूरोप से रेल कोरिडोर के अलावा भारत- ईरान- रूस का उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर शामिल है।
अनौपचारिक यातायात है शुरू
अभी यह गलियारा अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए नहीं खुला है। इसके बावजूद 2015 में गलियारे के जरिये 73 लाख टन विदेशी व्यापारिक माल की ढुलाई हुई, जो 2014 की तुलना में 4 प्रतिशत ज्यादा थी। इसी तरह 2016 में भी मध्य एशिया के कई देशों में ढुलाई जारी रही।