स्कूल फीस पर कानून : क्या गुजरात की राह पर चलेंगे बाकी राज्य?

सचिन श्रीवास्तव
देश भर में इन दिनों स्कूलों की फीस बढ़ोत्तरी के खिलाफ प्रदर्शन, धरने और बयानों का दौर जारी है। गुजरात सरकार ने एक विधेयक बनाकर फीस पर लगाम की कोशिश की है। बीते साल एक केंद्रीय कानून की भी चर्चा थी, लेकिन हालात नहीं बदले। मनमानी फीस वसूली के मर्ज से देश के सभी अभिभावक परेशान हैं। ऐसे में फीस बढ़ोतरी का नियमन कैसे हो? क्या गुजरात के विधेयक से अभिभावकों को राहत मिल पाएगी? बाकी राज्य इस राह पर चलेंगे? जैसे कई सवाल हवा में हैं। चूंकि देश में सरकारी स्कूलों का हाल खराब है और वे ढांचागत सुविधाएं भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए मजबूरन अभिभावकों को निजी स्कूलों की राह पकडऩी पड़ती है। इन स्कूलों में वे काफी ज्यादा फीस चुकाने को बाध्य होते हैं।

2005 से 2015 के बीच स्कूल फीस में 150 फीसदी का इजाफा हुआ है।
एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक
55,000 रुपये से बढ़कर 1,25,000 हो गया है 10 साल में स्कूल पर सालाना खर्च

सर्वे : अभिभावकों की चाहत, फीस पर लगाम

देश का शायद ही कोई ऐसा छात्र अभिभावक हो जो स्कूलों की फीस से परेशान न हो। बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक स्कूल फीस में अनियमितता का रोग एक जैसा है। देश के 14 राज्यों के अभिभावकों की राय पर आधारित एक सर्वे में 79 प्रतिशत अभिभावकों ने फीस बढ़ोत्तरी की सीमा तय करने पर सहमति जताई थी। अभिभावकों का कहना था कि हर साल होने वाली फीस बढ़ोत्तरी की सीमा तय की जाए और अन्य मदों में की जाने वाली वसूली पर भी लगाम कसी जाए।
47 प्रतिशत अभिभावक चाहते हैं वार्षिक महंगाई दर के मुताबिक बढ़े स्कूलों की फीस
64 प्रतिशत अभिभावक फीस वृद्धि की अधिकतम सीमा तय करने के पक्षधर हैं, जिसका हर साल आकलन होना चाहिए

मौजूदा कानून हैं नाकाफी

गुजरात के अलावा महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान और तमिलनाडु में स्कूल फीस तय करने के नियम पहले से ही हैं। उत्तर प्रदेश ने ऐसा कानून बनाने पर सहमति जताई है। फीस बढ़ोतरी की शिकायत संबंधित बोर्ड से भी की जा सकती है।
– 13 स्कूलों को फीस बढ़ोतरी पर नोटिस भेजा इस साल सीबीएसई ने
सीबीएसई के निर्देर्शों का होता है उल्लंघन

देश के ज्यादातर निजी स्कूल सीबीएसई से संबंधित हैं। इनमें केंद्रीय निर्देशों का उल्लंघन आम है। इस साल भी सीबीएसई ने दोहराया है कि स्कूल किताब, नोटबुक, स्टेशनरी, यूनिफार्म आदि नहीं बेचेंगे और बोर्ड के नियमों का पालन करेंगे। अभिभावकों पर अलग किताबें खरीदने का दबाव न बनाने का भी निर्देश दिया गया है, लेकिन ज्यादातर स्कूल इनका पालन नहीं करते हैं।

यह भी पढ़ें:  अमीरी में हम नंबर 7

फीस वृद्धि का गुजरात मॉडल
गुजरात सरकार ने हाल ही में फीस वृद्धि पर लगाम के लिए विधेयक पेश किया है। केंद्र सरकार इसके आधार पर एक केंद्रीय कानून लाने पर विचार कर रही है। खबर है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी इसके पक्ष में हैं। गुजरात के विधेयक में प्राइमरी, सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूलों के लिए क्रमश: 15 हजार, 25 हजार और 27 हजार रुपए प्रतिवर्ष की सालाना फीस का प्रस्ताव रखा गया है। यह फीस प्रस्ताव सभी तरह के स्कूलों के लिए लागू होगा, चाहे वह राज्य बोर्ड से संबंधित हों, या केंद्रीय बोर्ड से। कोई भी निजी स्कूल इससे ज्यादा फीस नहीं ले सकेगा।

फीस वृद्धि पर सरकार की सख्ती
अभी तक ट्यूशन फीस में बढ़ोतरी स्कूल प्रबंधन करता रहा है। गुजरात के नए कानून में तय सीमा से अधिक फीस लेने के लिए स्कूल को फीस रेगुलेटरी कमेटी के सामने अपने तर्क रखने होंगे। इसके बाद ही कमेटी फीस वृद्धि की छूट देगी। अन्य राज्यों में भी इसी तर्ज पर फीस वृद्धि पर लगाम की बात कही जा रही है।

यह भी पढ़ें:  सेलिब्रेशन आॅफ जर्नलिज्म: ब्रिटिश फोन हैकिंग विवाद - मीडिया समूह ने भुगता निजता में दखल देने का खामियाजा

11 से 20 प्रतिशत बढ़ी इस साल फीस
इस साल विभिन्न राज्यों में औसतन 11 से 20 प्रतिशत की फीस वृद्धि हुई है। साथ ही कई स्कूलों की फीस में 150 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। रिपोट्र्स के मुताबिक, बिहार और गुजरात ही दो ऐसे राज्य हैं, जहां अभिभावकों ने बताया कि उनके बच्चे की स्कूल फीस में 10 प्रतिशत से कम बढ़ोत्तरी हुई है।

स्कूल प्रबंधन पर हो जुर्माना
गुजरात के विधेयक में तय सीमा से अधिक फीस वसूलने पर 5 लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है। यही अपराध दूसरी बार होने पर जुर्माने की राशि 10 लाख रखी गई है। देश भर में ऐसा कानून बनने पर इस जुर्माना राशि में अलग-अलग विकल्प सामने आ सकते हैं।

विदेश भी में भारतीय स्कूल ले रहे ज्यादा फीस
देश में तो स्कूलों की फीस वृद्धि चिंता का विषय है ही। विदेशों में भी भारतीय स्कूल तय सीमा से अधिक फीस ले रहे हैं। हालिया मामला कतर का है। यहां कुछ भारतीय स्कूलों पर सीबीएसई की ओर से मंजूर दर से अधिक फीस लेने का आरोप है। मार्च में कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षाओं में प्रवासी भारतीय छात्रों से यहां 3,000 रुपए (करीब 197 रियाल) की फीस तय है, लेकिन एमईएस (मध्य पूर्व एजुकेशन सोसाइटी) भारतीय स्कूल 500 रियाल वसूल रहा है।

कई मदों में वसूली के तरीके

– री-एडमिशन की रसीद न देने की भी हैं कई शिकायतें
– इंटरनेट आदि के नाम अतिरिक्त पैसा लेना है आम कई राज्यों में
– स्कूल डायरी के लिए ली जाती है फीस
– राष्ट्रीय आपदा के वक्त अनिवार्य राहत चंदा लेते हैं कई स्कूल
– डिक्शनरी आदि किताबों के नाम पर करते हैं कई स्कूल अतिरिक्त वसूली
– एक्स्ट्रा एक्टिविटी के नाम पर बेवजह फीस की कई शिकायतें