आईटी उद्योग : क्या वाकई है नौकरियों पर खतरा

सचिन श्रीवास्तवआईटी सेक्टर को कभी जॉब के लिहाज से सबसे अच्छा माना जाता था और आईटी में जॉब करने वालों को इंडिया की बढ़ती पावर और चाहतों का पोस्टर बाय। पश्चिमी जगत के मुकाबले सस्ते में काम करने की क्षमता के दम पर मजबूत हुए आईटी आउसोर्सिंग सर्विसेज सेक्टर ने एजुकेटेड मिडल क्लास में उम्मीदों और तरक्की की नई चमक पैदा की थी। हालांकि उस इंडियन ड्रीम को झटका लग चुका है। लेकिन क्या वाकई ऐसा है।
——————————————————————
खतरे का आकलन
एच-1बी वीजा पर ट्रंप प्रशासन की ओर से लगे प्रतिबंधों के कारण पहले से मुश्किल हालातों से जूझ रहा आईटी सेक्टर और भी खतरे में आ गया है। आईटी सेक्टर ऐसे दौर में है जब उसे खेल में बने रहने के लिए अपने दशकों पुराने बिजनस मॉडल को बदलना होगा। जिस तरह से मौके कम हो रहे हैं और मार्केट बदल रहा है, उसे देखते हुए 2020 तक एक तिहाई से ज्यादा सॉफ्टवेयर इंजिनियर्स अपनी नौकरी गंवा देंगे। चौंकाने वाली बात यह है कि मार्केट की हालत ऐसी होगी कि निकाले गए इंजिनियर्स के लिए दूसरी नौकरी मिलना काफी मुश्किल होगा।
40 लाख लोग कार्यरत हैं आईटी इंडस्ट्री में
30 से 40 प्रतिशत जॉब्स पर खतरे की है आशंका
—————————————–
नेसकॉम का इनकार
नेसकॉम ने ऐसे किसी खतरे से इनकार किया है। हालांकि यह माना है कि बाकी क्षेत्रों में नौकरियां कम होती हैं, तो इसका असर आईटी पर भी पड़ेगा, लेकिन खासतौर पर आईटी उद्योग पर नौकरियों का ऐसा कोई खतरा नहीं है।
—————————–
यह है वजहें
एच-1बी वीजा: अमेरिकी फर्मों को स्पेशलिटी सेगमेंट्स में अस्थायी तौर पर विदेशी कामगार हायर करने की इजाजत देने वाले एच-1बी वीजा पर प्रतिबंध लग चुका है।
पुराना बिजनेस मॉडल: भारतीय आईटी उद्योग का बिजनेस मॉडल करीब दो दशक पुराना है। इसमें लंबे समय से बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है।
स्किल्स की कमी: भारत के सामने नौकरियों का संकंट है। हर साल 10 लाख इंजिनियर्स में से 90 प्रतिशत नौकरी देने लायक नहीं हैं।
सरकार का अधूरा वादा: मोदी सरकार ने चुनाव के दौरान हर साल 1 करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था। ऐसा नहीं है कि आर्थिक वृद्धि की दर कम है और नौकरियां नहीं निकल रही हैं। नई नौकरियां पैदा हो रही हैं लेकिन वह मांग को पूरा करने के लिए काफी नहीं है।
अन्य क्षेत्रों का असर: आईटी से लेकर बैंकिंग तक और ऑटोमोबाइल से लेकर टेलिकॉम सेक्टर तक ऑटोमेशन ने जॉब मार्केट हिला दिया है। वल्र्ड बैंक के अनुसार इससे भारत में 69 प्रतिशत नौकरियों को खतरा है।
—————————————-
बदलते हालात में कम जॉब
एक दशक पहले अपने पीक पर रहने के दौरान टेलिकॉम इंडस्ट्री में 40 लाख से ज्यादा वर्कर थे, लेकिन अब कंसॉलिडेशन (वोडाफोन-आइडिया और एयरसेल-आरकॉम) और टेक्नॉलजी के मामले में प्रगति ने हालात बदल दिए हैं। निकट भविष्य में इस इंडस्ट्री में 30-40त्न एंप्लॉयीज की जॉब जा सकती है। इसके अलावा स्ट्रेस्ड एसेट्स से दबे हुए बैंकिंग सेक्टर के कर्मचरियों पर डिजिटल टेक्नॉलजी की मार पड़ रही है। उदाहरण के लिए, एचडीएफसी बैंक के कर्मचारियों की संख्या 2016-17 की तीसरी तिमाही में 4500 कम हो गई, साथ ही बैंक नई हायरिंग में भी सुस्ती दिखा रहा है।
———————————
अन्य सेक्टर्स में भी हालात खराब
दूसरे कर्मचारियों के बीच खराब हालात की जमीन लंबे समय से बन रही है। लोअर एंड पर ज्यादातर अकुशल और अशिक्षित मजदूर हैं। वहां संकट कहीं ज्यादा गहरा है। इंडिया में लेबर डेटा एक तो बहुत अंतराल पर आता है और उसमें पूरी तस्वीर भी नहीं दिखती।
————————
हर जगह मंदी
1.35 लाख नए रोजगार सृजित हुए 2015 में आईटी-बीपीओ, टेक्सटाइल्स, गारमेंट्स और ऑटोमोबाइल्स जैसे आठ एक्सपोर्ट आधारित सेक्टरों में लेबर ब्यूरो सर्वे के मुताबिक।
—————————–
धीरे-धीरे खराब हुए हालात
2014 की एक क्रिसिल रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि 2011-12 और 2018-19 के दौरान कृषि क्षेत्र के अलावा महज 3.8 करोड़ नई नौकरियां पैदा होगी, जबकि 2004-05 से 2011-12 के बीच ऐसी 5.2 करोड़ नौकरियों के मौके बने थे।
—————————–

यह भी पढ़ें:  पर्यटन निवेशक सम्मेलन: आसान होगा देश में सैलानियों का सफर