Covid Tales: घर में बंद बच्चों के साथ बढ़ रही है हिंसा
सायरा खान
Covid Tales: शहर की आवासीय मल्टीया और उसमें रहने वाले लोग। मल्टी में बने छोटे-छोटे कमरे, जिसमें एक परिवार को रहने के लिए जगह पूरी नहीं पड़ती है। ऐसे हालात में बच्चों के लिए वह जेल की तरह है। न खेलने की जगह है न खुल कर रहने का स्थान। ईश्वर नगर मल्टी में रहने वाले कुछ परिवारों से इस संबंध में बात की तो काफी कुछ ऐसा निकल कर आया तो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है।
रानी बाई (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह लोग मजदूरी करके अपना जीवन किसी तरह से गुजारते हैं। उन्होंने आवासी योजना के तहत घर लिया है, क्योंकि कम पैसों में मिल रहा था। उनकी आधी कमाई किराए में ही चली जाती थी, बाकी घर की जिम्मेदारियों को पूरा करने में। उन्होंने यही सोचकर घर खरीद लिया कि अपनी भी एक छत हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि हम बहुत खुश थे। हमें घर मिल रहा था, लेकिन जब घर मिला तो बहुत दुख हुआ, क्योंकि वह बहुत ही छोटा था। उसमें एक परिवार का गुजारा होना बहुत मुश्किल था। एक छोटा सा कमरा, एक छोटा सा किचन है। उसी में बिजली का बोर्ड भी लगा हुआ है। एक समय ही पानी आता है। जो केवल एक घंटे ही मिलता है।
उन्होंने बताया कि वह जैसे-तैसे उस घर में रहने लगे, लेकिन बच्चे परेशान रहने लगे, क्योंकि उन्हें खेलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल रही थी। जिसके कारण उनमें चिड़चिड़ापन और गुस्सा पनपने लगा। उन्होंने बताया, “मैं अपने बच्चों को छत पर खेलने नहीं जाने देती हूं, क्योंकि डर लगता है। बच्चे छोटे हैं, खेलते वक्त छत से न गिर जाएं। उन्हें सड़क पर भी खेलने नहीं जाने देती। डर रहता है। कहीं एक्सीडेंट न हो जाए। आजकल सुनने में भी बहुत आ रहा है कि बच्चे चोरी हो रहे हैं। यहां पर सब अपने घर का दरवाजा बंद करके रखते हैं। कहीं ऐसा न हो कि बच्चा चोर मेरे बच्चों को बहला-फुसलाकर ले जाएं। इसी कारण मैं अपने बच्चों को घर पर ही रखती हूं। सिर्फ शाम को ही थोड़ी देर के लिए बच्चों को नीचे लेकर आती हूं। वह थोड़ा घूम लें। बच्चे खेलते हैं तो उनका मानसिक व शारीरिक स्तर ठीक रहता है।”
उन्होंने बताया कि लंबे समय से लॉकडाउन है। उसका प्रभाव बच्चों पर बुरा पड़ रहा है। जब से यह लॉकडाउन लगा है, बच्चों का घर से निकलना बंद हो गया है। चारों तरफ बीमारी फैल रही है। लोग मर रहे हैं। डर के कारण माता-पिता ने बच्चों को बाहर निकलना बंद कर दिया है। काम धंधे बंद हो गए हैं। घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है।
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उन्होंने कहा कि बच्चों का पेट भरना मुश्किल हो गया है। जब हमारे बच्चे हमसे कुछ मांगते हैं तो हमारा सारा गुस्सा हम उन पर उतारने लग जाते हैं। पिता उन्हें मार देते हैं। कई बार मेरा भी हाथ छूट जाता है। जब बच्चे खाने के लिए हम से पैसे मांगते हैं और हम उन्हें नहीं दे पाते। इसके कारण बच्चे रोने लगते है और एक कोने में बैठ जाते हैं।
यह स्थिति अधिकतर परिवारों के बच्चों के साथ बनी हुई है, जिससे उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास रुक रहा है। आज हमारे बच्चों का भविष्य खतरे में लगता है कि कहीं बच्चे घर की चहारदीवारी के अंदर घुट कर न मर जाएं।