लॉकडाउन रोक रहा बच्चों का मानसिक विकास

लॉकडाउन रोक रहा बच्चों का मानसिक विकास

सायरा खान

देश-समाज में होने वाली हर घटना का सबसे ज्यादा बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। चाहे वह महंगाई के बाद उनके दूध में कटौती के तौर पर हो और चाहे लॉकडाउन के बाद होने वाला उन पर असर हो। दुर्भाग्य यह है कि उन पर होने वाले मानसिक प्रभाव पर देश में कोई बहस होती है और न समाज ही उनकी फिक्र करता है।

हमने बात की ईश्वरनगर के सात साल के एक छोटे बच्चे से। वह अपने माता-पिता तथा पांच बहनों के साथ किराए के घर में रहता है। वह कक्षा दूसरी में पढ़ता है। बच्चे का कहना है कि मैं बोर हो गया हूं घर पर रहकर। मुझे बाहर खेलने जाने दो। रोज सुबह उठो, ब्रश करो, खाना खाओ, टीवी पर कार्टून देखो, फिर सो जाओ। शाम को उठो। चाय पियो और फिर एक कोने में बैठे रहो, मुझे लगा था कि स्कूल की छुट्टी है तो घर पर खूब मजा आएगा। मैं खुद खेलूंगा, लेकिन घर के बाहर जैसे ही मैं निकलता हूं। मां बोलती है अंदर आ जाओ, नहीं तो कोरोना हो जाएगा। सब मर रहे हैं तुम भी मर जाओगे।

बच्चे का कहना है कि मैं बाहर खेलने जाता हूं, तो वहां मुझे मार पड़ती है। घर के अंदर मैं खेल नहीं सकता। कमरा छोटा और सामान इतना सारा रखा है। इससे तो अच्छा मेरा स्कूल था। कम से कम मैं वहां दोस्तों के साथ खेलता तो था। अब दिन भर घर में बंद रहो, शाम को जब दरवाजे पर खड़ा होता हूं तो पुलिस की गाड़ी की आवाज आती है। सब घर पर रहो, यह आवाज सुनकर मां जोर से चिल्लाती है। अंदर आ जाओ, नहीं तो पुलिस तुम्हें जेल में डाल देगी।

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अब तो पापा भी हमें बाहर घुमाने नहीं ले जाते हैं। न ही खाने की चीज दिलाते हैं। जब चीज के लिए पैसा मांगता हूं तो कहते हैं, लॉकडाउन लगा है। काम बंद है। अभी पैसा नहीं है, जब खुलेगा लॉकडाउन तो काम करेंगे। फिर पैसा मिलेगा तब तू चीज ले लेना। अभी घर पर जो बना है उसे खा लो बेटा। पहले तो हमें दो रुपये रोज मिलते थे चीज खाने के लिए। अब तो वह भी नहीं मिलते हैं।

बच्चे ने कहा, “अगर मुझे पता चल जाए कि यह सब किसने बंद कराया है तो मैं उसे पकड़ कर जंगल में दूर छोड़ आऊंगा। और फिर खूब बाहर आकर खेलूंगा और पापा के साथ रोज घूमने जाऊंगा। बस मुझे वह इंसान मिल जाए, जिसकी वजह से हम घर पर बंद हैं तो फिर देखना कैसा मजा आएगा।”

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दूसरी तरफ बच्चे के माता-पिता परेशान हैं कि हम अपने बच्चों को कोई सुख सुविधा नहीं दे पा रहे हैं। न ही उनकी रोज की जरूरत को पूरा कर पा रहे हैं, क्योंकि जब हम दिन भर काम करते हैं। तब हमें पैसा मिलता है। मेरे पति गारा-मिट्टी का काम करते हैं, जो बंद पड़ा हुआ है। दूसरी कोई जीविका का साधन नहीं है, हमें समझ नहीं आ रहा है कि बच्चों को कैसे समझाएं कि हमारे पास पैसा नहीं है खर्चे के लिए। इसी वजह से हमारे बच्चों में चिड़चिड़ापन आ गया है। बच्चों के बाहर खेलने-कूदने से उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहता था और वह खुश भी रहते थे, लेकिन घर पर बंद रहने के कारण उनकी मानसिक स्थिति और स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। अब हम क्या करें।

इस समय बच्चों के अंदर बहुत गुस्सा भरा हुआ है, और कितने सारे सवाल उनके मन में पनप रहे हैं। इसे हम नकार नहीं सकते हैं कि लॉकडाउन का बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। परिस्थितियां बदल रही हैं। बच्चों के भविष्य क्या होगा यह एक चिंता का विषय है।