काश! लॉकडाउन ने भूख पर भी ताला मार दिया होता
काश! लॉकडाउन ने भूख पर भी ताला मार दिया होता
Nighat Khan
यह भोपाल का ऐशबाग है। यहां सभी ऐश और आराम से हों ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हां, इतना जरूर है कि इसने अमीर-गरीब सभी को अपने दामन में समेट रखा है। उनमें एक रेशम भी है। एक अच्छे जीवन साथी के साथ शुरू हुई उसकी जिंदगी ने अब उसे किराए के मकान से फुटपाथ पर ला फेंका है। उसके दो बच्चों को पिता की आगोश की जगह फुटपाथ की पथरीली जमीन का ही सहारा है। जिंदगी कभी खूबसूरत होगी, इसकी उम्मीद भी दूर-दूर तक नहीं है। कोरोना के दौर में उनके सामने अब खाने का संकट है। रेशम को अपनी जान की तो परवाह नहीं है, लेकिन बच्चों को कहीं कोरोना अपनी जद में न ले ले, यह फिक्र उसे जरूर मारे डालती है।
रेशम (बदला हुआ नाम) का बचपन ऐशबाग की गलियों में खेलते-कूदते गुजरा। घर की माली हालत ठीक नहीं थी। वह मां-बाप के साथ किराए के मकान में रहती थीं। घर की आर्थिक हालात खराब होने की वजह से वह पढ़-लिख भी नहीं सकीं। रेशम ने बताया कि उसने लव मैरेज की थी। घर वालों को भी ज्यादा एतराज नहीं था, इसलिए उनका निकाह हो गया। रेशम एक किराये के मकान से दूसरे किराए के घर में आकर रहने लगीं। उनका शौहर दिहाड़ी मजदूर था।
रेशम के मुताबिक, शौहर ने कुछ साल तो उसे ठीक से रखा, उसके बाद वह आये दिन मारपीट करने लगा। दरअसल उसका शौहर नशे का लती हो गया था। वह जो कुछ कमाता था, वह नशे में उड़ा देता था। नतीजे में घर में हर दिन हंगामा और मारपीट होने लगी। इसी सबके बीच रेशम दो बच्चों की मां भी बन गई। उनके घर एक बेटा और एक बेटी पैदा हुए। रेशम को उम्मीद थी कि बच्चों के भविष्य के लिए उसका शौहर नशे की लत छोड़ देगा और घर की खुशहाली के बारे में सोचेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
धीरे-धीरे बच्चे बड़े होने लगे। घर में होने वाले लड़ाई-झगड़े का बच्चों पर बुरा असर पड़ा। मां को अब्बू से पिटता देखकर वह सहम कर कोने में दुबक जाते थे। उन्हें अपने अब्बू से भी डर लगने लगा था। इस सबसे बेपरवाह रेशम का शौहर नशे की दुनिया में मस्त था। रेशम का बेटा दस साल का और बेटी आठ साल के हो गए। रेशम भी अब 30 साल की हो चली है।
रेशम ने बहुत दुख के साथ बताया, “बच्चे बड़े हो रहे थे और शौहर का जुल्म भी बढ़ रहा था। अब अकसर यूं होने लगा कि जब घर में मारपीट शुरू होती तो बच्चे डर कर घर से भाग जाते। अकसर वह रात में भी घर नहीं लौटते। किसी के घर से खाना मांग कर खा लेते और वहीं किसी के घर के बाहर जमीन पर सो जाते। मैंने शौहर से नशा छोड़ने की काफी मिन्नतें कीं, लेकिन उसके कुछ भी समझ में नहीं आया। वह अकसर घर में भी नशे के इंजेक्शन लेने लगा।” रेशम ने बताया कि वह इससे डर गई, क्योंकि इसका बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा था। तंग आकर उसने बच्चों को बाल आश्रम भेज दिया, ताकि उनका बचपन और भविष्य सुरक्षित हो सके। यह एक मुश्किल फैसला था। कोई भी मां अपने बच्चों को खुद से दूर नहीं करना चाहती, लेकिन उसने मजबूरी में इस फैसले पर अमल कर डाला।
रेशम ने बताया कि शौहर ने मकान का किराया भी देना बंद कर दिया। जब भी महीना पूरा होने वाला होता शौहर घर छोड़कर भाग जाता। कुछ दिनों बाद वह फिर लौट आता। इस दौरान रेशम घर में अकेली रहती। उसे बच्चों की बहुत याद आती। तकरीबन एक साल बाद रेशम बच्चों को बाल आश्रम से वापस ले आई। शायद उसे उम्मीद थी कि इतने दिनों बाद शौहर बच्चों को देखेगा तो वह सुधर जाएगा, लेकिन उसमें जरा सा भी बदलाव नहीं आया। वह बच्चों को भी पीटने लगा। बाप जब चिल्लाता तो डरे-सहमे बच्चे मां के पीछे दुबक जाते।
रेशम ने कहा कि उसने बच्चों को पास के एक सेंटर में पढ़ने के लिए भेजना शुरू कर दिया था। वह चाहती थी कि बच्चे पढ़ जाएंगे तो जिंदगी जीना उनके लिए आसान हो जाएगा। रेशम ने कहा, “शादी के तुरंत बाद ही घर में पैसों की तंगी का एहसास हो गया था। मैं किसी तरह से जिंदगी की गाड़ी खींच रही थी। जब से शौहर नशा करने लगा, तबसे हालात बद से बदतर होते चले गए। कई बार ऐसा होता कि घर में खाने के लिए कुछ नहीं होता। मजबूरी में बच्चे दूसरे घरों से मांग कर खा लेते और मुझे भूखा सोना पड़ता। मायके वाले भी गरीब थे, इसलिए वहां से भी मदद की कोई उम्मीद नहीं थी।”
रेशम ने बताया कि मकान का किराया काफी चढ़ गया था। एक दिन उन्होंने और बच्चों ने घर छोड़ दिया। अब फुटपाथ उनका बिछौना था और आसमान छत। यह उनके हिस्से का आसमान था, जिसे कोई नहीं छीन सकता था। रेशम ने कहा कि उसने घर छोड़ तो दिया था, लेकिन उसके पास जीने का कोई सहारा नहीं था। उसे कोई काम भी नहीं आता था। मजबूरन उन्होंने भीख मांगना शुरू कर दिया। रेशम ने बताया, “हमने गरीबी जरूर देखी थी, लेकिन कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। भीख मांगना बहुत मुश्किल भरा फैसला था, लेकिन यह हमारी मजबूरी और किस्मत बन चुका था, जिसे हमने नहीं चुना था।”
रेशम के लिए अब एक बड़ा मसला और है। उसकी बेटी बड़ी हो रही है। वह फुटपाथ पर सोते हैं। उसे हमेशा बेटी की फिक्र लगी रहती है कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए। उसे रातों को नींद नहीं आती है। जरा सी आहट होने पर वह उठकर बैठ जाती है और अंधेरे में बेटी को टटोलने लगती है।
रेशम दिन भर मजार के अंदर बैठी रहती है। वहां आने वाले लोग उसके आगे कुछ सिक्के डाल जाते हैं। इसी से उनकी किसी तरह से गुजर बसर हो रही है। बच्चे दिन भर ऐशबाग की गलियों में भटकते रहते हैं। रेशम ने बताया कि वह भीख मांगने के लिए ऐशबाग से लेकर इतवार को पिपलानी इतवार और बुधवार को अन्य जगहों पर जाती है।
लॉकडाउन लगने से उनकी ज़िंदगी में और उथल पुथल शुरू हो गई है। भीख मिलना बंद हो गई है। उसके सामने खाने के लाले हैं। दूर-दूर तक कहीं कोई मददगार नहीं है। एक शौहर था, जिसके साथ उसने जिंदगी गुजारने का ख्वाब देखा था, उसने भी कभी सुध नहीं ली। रेशम ने कहा कि वह बच्चों को फिर से बाल आश्रम भेजने के बारे में सोचती है, लेकिन उसके लिए बच्चों के बिना रह पाना बहुत मुश्किल होगा। कई दिन हो गए हैं, उन्होंने भरपेट खाना नहीं खाया है। रेशम ने कहा, “काश! लॉकडाउन ने भूख पर भी ताला मार दिया होता।”