काम नहीं मिला तो भीख मांगी, लॉकडाउन में भूखों मरने की नौबत
काम नहीं मिला तो भीख मांगी, लॉकडाउन में भूखों मरने की नौबत
Nighat Khan
आर्थिक तौर पर बदहाल लोगों के लिए कोरोना महामारी और लॉकडाउन बड़ी विडंबना बन गई है। अगर वह घर पर रहते हैं तो भूखों मरने की नौबत है और बाहर कोरोना संक्रमण है। लॉकडाउन लगने से हालात और बदतर हो गए हैं। माली तौर पर कमजोर बड़ी आबादी के सामने जीविका का पहले से संकट है, जो अब और विकराल हो गया है। जीने के इस मुश्किल दौर को लेकर आम तौर पर मजदूर तबके की ही बात होती है, लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जिन पर लोगों का ध्यान कम ही जाता है। यह वर्ग खानाबदोशों और फकीर समुदाय का है। रोज कुंआ खोदकर पानी वाले फकीर समुदाय के सामने कोरोना काल में भूखों मरने का संकट खड़ा हो गया है।
दमोंह सागर जिले के रहने वाले सलमान 25 साल के हैं। उनके परिवार में मां-बाप और बहन-भाई हैं। सलमान फ़क़ीर समुदाय से आते हैं। उनका पूरा खानदान दमोह में ही रहता है। लॉकडाउन लगने से उनके सामने भी रोजी-रोटी का संकट है। सलमान बताते हैं कि घर चलाना मुश्किल हो रहा था, इसलिए काम की तलाश में वह लोग दामोंह से भोपाल आ गए। भोपाल में सबसे पहले जरूरत थी सर छुपाने लायक जगह की तलाश। हॉकी स्टेडियम में उन्हें अपना छोटा सा ‘बसेरा’ बनाने की अस्थाई जगह मिल गई है।
सलमान ने बताया कि उन्होंने भोपाल में काम की काफी तलाश की, लेकिन कहीं भी उन्हें रोजगार नहीं मिला। कई जगह से उन्हें जलील करके भगा दिया गया। इज्जत से जीने की जब यह चाह नाकाम हो गई तो परिवार ने मजबूरी में भीख मांगने का काम चुन लिया। परिवार वाले भी भोपाल में आकर रहने लगे और भीख मांगने का काम करने लगे। कभी भीख मिलती है तो कभी नहीं मिलती। वैसे भी कोरोना काल में हर कोई परेशान है।
सलमान ने बताया कि कई बार वह भीख मांगने के लिए काफी दूर-दूर तक जाते हैं। अकसर लोग सवाल करते हैं कि हट्टे-कट्टे हो, भीख क्यों मांग रहे हो? वह शर्मिंदगी के साथ कहते हैं, “भीख मांगना कोई अच्छा काम नहीं है, लेकिन जब कहीं काम नहीं मिल रहा है तो पेट की आग बुझाने के लिए उनके और परिवार के पास दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा है।” उन्होंने कहा कि अकसर उन्हें दुत्कार मिलती है। लोग बेइज्जती करके भगा देते हैं। यह सब कुछ बहुत तकलीफदेह होता है। सलमान ने बताया, “पहले तो अच्छी भीख मिल जाती थी पर लॉक डाउन के बाद से और बुरे हाल हो गए हैं। 200 से 300 रुपये पहले मिल जाया करते थे, अब मुश्किल से 50 से 100 रुपये ही मिल पाते हैं।”
सलमान मेहनत करके इज्जत से जीना चाहते हैं। उनकी शिकायत है कि उन्हें कहीं काम नहीं मिल रहा है। फकीर समुदाय से होने की वजह से दमोंह में उन्हें काम मिलने में दिक्कत आ रही थी। इसी वजह से वह भोपाल आए थे, लेकिन यहां भी उन्हें काम नहीं मिला।
लॉकडाउन लग जाने की वजह से अब उनके सामने रोटी की दिक्कत है। उन्हें इस बात का भी एहसास है कि लोगों के पास पैसे नहीं हैं, तो वह उन्हें भीख कहां से देंगे। सलमान ने कहा, “सरकार के लिए लॉकडाउन का एलान करना आसान है, लेकिन वह हम जैसे लोगों के बारे में कभी नहीं सोचती कि हमारे लिए भूखों मरने के हालात हैं।” वह सवाल करते हैं, “जाने कब सरकार गरीबों के बारे में सोचेगी!” उनका यह सवाल उनकी बेचारगी बयां करता है, लेकिन सरकार को फिक्र कब है ऐसे लोगों की!