Yusuf Shaikh: “यूसुफ भाई” एक जिंदादिल इंसान

Yusuf Shaikhस्मृति शेष (Yusuf Shaikh) by आरती पाराशर

पन्ना जिले के पत्थर खदान मजदूरों के हक में हर समय खड़े रहने वाले जिंदा दिल इंसान, नेता और समाजसेवियों की जमात का कोहिनूर हीरा और हम सबके बड़े भाई युसूफ भाई का असमय चले जाना ऐसा दर्द दे गया है जिसे भरने में लम्बा समय लगेगा ! दुःख तो इस बात का है कि हम हम सबकी कोशिशें भी उनको बचा नहीं सकी…!! इन दिनों का यह वक़्त जैसे हमें कुछ ज़्यादा ही रूखा और बेतरतीब बनाता जा रहा है।

इस वाक़िये में तो जैसे नई तरह की जिन्दगी बहुत कुछ लेकर कुछ दे गई| मुझे भाभी कहकर पुकारने और चाय के लिए आग्रह करने वाली आवाज अब कभी मेरे कानो को सुनाई नहीं देगी, क्योंकि अब युसूफ भाई इस दुनिया में हमारे बीच नहीं रहे, कोविड महामारी ने हम सबसे वह कोहिनूर हीरा छीन लिया।

अक्सर जब वे भोपाल आया करते थे तक मेरे घर के ही पास अरविन्द के घर में रुक जाया करते थे। दोनों गहरे दोस्त जो थे, अक्सर दोनों देर रात ढेर सारी बातें किया करते, फिर दोनों सो जाते थे और युसूफ भाई को सुबह जल्दी जागने की आदत थी तो वो अक्सर जल्दी जागकर अरविन्द के घर से मेरे घर की ओर निकल आते। वे अक्सर सुबह जल्दी जागकर मेरे घर आकर आवाज लगाया करते थे भाभी जी, क्या चाय मिलेगी ? मैं उनकी आवाज से जाग कर उनके और अपने लिए झटपट से चाय बना लिया करती थी और दोनों सुबह सुबह टहलने निकल जाया करते थे।वे रास्ते भर मुझे न जाने क्या क्या सलाह दिया करते थे। मुझे भी उनके साथ बाते करते हुए टहलने में बड़ा मजा आता था। क्यों न आएगा मुझे बड़े भाई की सलाह जो मिल जाती थी और साथ ही कुछ दिन के लिए एक दोस्त की कम्पनी भी।

वो अक्सर रास्ते में अपनी पत्नी की बाते किया करते थे उन्होंने मुझे बताया था कि उनकी पत्नी का नाम समीना है और कैसे वे उनका विशेष खयाल रखती हैं| वे बताते थे कि शुगर के मरीज होने से समीना भाभी उनको सुबह सुबह करेले का जूस, बादाम मूंगफली वगेरह जो कि वो रात में भिगो देती थी। सुबह उनको खाने के लिए दिया करती थीं। वगैरा वगैरा वे बताया करते थे, वे ये सब बाते इसलिए भी बताते थे कि उनके साथ चल रही उनकी यह दोस्त भी शुगर की ही मरीज है और शायद उनकी इन बातों से कुछ फायदा उनकी दोस्त को भी मिल सके। मैं वापस आकर ऑफिस के लिए तैयार होकर झटपट ऑफिस निकल जाया करती थी और वो शाम को पन्ना।

पन्ना के निवासी यूसुफ बेग पन्ना पत्थर खदान मजदूर यूनियन के अध्यक्ष रहे । बहुत ही सशक्त वक्ता,नेतृत्व कर्ता और बेहतरीन फोटोग्राफर भी , उन्होंने हीरा उत्खनन में लगे पत्थर खदान के सीलिकोसिस से पीड़ितों के हक में लम्बा संघर्ष किया साथ ही यह मांग भी अंत तक करते रहे कि मप्र में इन मजदूरों के हित में पुनर्वास नीति बने।

फिर यह अचानक ही हुआ कि 16 अप्रैल 2021 को मैंने अपने ऑफिसियल व्हाट्सएप ग्रुप पर एक मैसेज पढ़ा कि युसूफ भाई की तबियत ज्यादा ख़राब है उन्हें पन्ना जिला अस्पताल से सागर मेडिकल कोलेज रेफर कर दिया गया है तो दिलो दिमाग ने जैसे साथ देना ही छोड़ दिया हो। अचानक मैंने अपने पब्लिक हेल्थ ग्रुप में साथियों के लिए एक मैसेज ड्राप कर दिया और इंतजार करने लगी रिप्लाय का…! सभी साथी उसमे डॉक्टर ही हैं उसमे मैंने लिखा मेरा एक दोस्त नाम युसूफ बेग हैं उनको पन्ना से रेफर किए गया है। कोई साथी क्या सागर के डॉक्टरों से सम्पर्क करा सकता है तब तुरंत मेरी एक साथी जो पन्ना जिला अस्पताल में पोस्टेड हैं ने तुरंत सागर के डॉक्टरों का नम्बर साझा कर दिया जोकि सागर मेडिकल कोलेज में पदस्थ है।

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मैंने तुरंत उन्हें फोन लगाया तो पता चला कि सागर मेडिकल कोलेज में बेड फ़िलहाल उपलब्ध नहीं हैं लेकिन मुझे सोशल मीडिया से पता चला है कि सागर के ही आयुष्मान अस्पताल में एक बैड मिल जाएगा |इसके तुरंत बाद मैंने सचिन सर को फोन किया और बात कर के स्पष्ट हुआ कि उनको बिडला हॉस्पिटल सतना के लिए रेफर कर दिया गया है अब मेरा फोकस सतना हॉस्पिटल हो गया मेरा कौन साथी सतना में पोस्टेड है, यह सोचने लगी।

अचानक मैंने एक दोस्त जिससे उम्मीद थी कि उसके पास मुझे उस सतना वाली साथी का नम्बर मिल सकता है उसको यानी डॉ राहुल को फोन लगाया जो कि जबलपुर में पदस्थ है उन्होंने तुरंत मुझे सतना की साथी शुभि का नम्बर साझा कर दिया फिर मैंने उसको फोन करके सारी स्थिति स्पष्ट की और सहयोग के लिए कहा तब उसने तुरंत डॉ अरुण का नम्बर साझा कर दिया जो कि सतना अस्पताल में पदस्थ हैं। उनसे मुझे सतना के एक अस्पताल के बारे में जानकारी हुई कि सुबह 11 बजे वहां अस्पताल में एक बेड खाली दिख रहा था लेकिन अब शायद वहां भी नहीं हैं इसके अलावा अन्य प्रायवेट अस्पतालों में भी कोई बेड खाली नहीं है। इससे बेहतर मैं आपको एक नम्बर देता हूँ उस पर संपर्क कर लीजिये। उस हेल्प लाइन नम्बर पर मेरी सुधीर जी से बात हुई जिन्होंने मुझे ठीक से रेस्पोसं देकर मुझे पूरा सहयोग किया और मुझे प्रायवेट अस्पतालों के नम्बर साझा किये, जिनमे मैंने संपर्क किया तो पाया कि कोई बेड प्रायवेट अस्पतालों में वाकई उस समय तक उपलब्ध हैं, वे बिना ऑक्सीजन के हैं।

मैंने वापस डॉ अरुण से संपर्क किया और उनको स्थिति से अवगत कराया। तोउन्होंने मुझे डॉ सुनीता वाधवानी सतना के ही एक अस्पताल की प्रमुख का नम्बर साझा किया। मैंने मेडम से बात की तो पता चला कि वहां बेड खाली नहीं हैं लेकिन उन्होंने एक नम्बर डॉ विजय सिंह जी का दिया। उनसे बात करके मुझे बड़ी राहत मिली। उन्होंने मुझे सतना के सुयश अस्पताल से कनेक्ट करा दिया, फिर एक उम्मीद की किरण दिखाई दी और मैंने वो नम्बर डायल कर दिया। यह नम्बर डॉ धीरेन्द्र सिंह का था। उनसे बात हुई तो बताया कि मैडम यहाँ भी बेड तो उपलब्ध नहीं हैं फिर मैं निराश हुई। लेकिन मैंने थोडा आग्रह किया तो उन्होंने कहा कि आप पेशेंट की डिटेल भेज दो मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगा |

उधर युसूफ भाई के साथ जो लोग थे उनका 14 वर्ष का बेटा अकरम और भतीजा सलीम साथ थे और सिलेंडर खाली होने से पहले किसी अस्पताल की शरण चाहते थे। उनसे बात हुई तो उन्होंने कहा कि समीना भाभी की बहन के पति की सतना के ही एक अस्पताल जान पहचान है तो उनके पति ने वहीं हम लोगों को बुलवा लिया है ।

जब वे लोग बिरला पहुचे तो थोड़ी देर बाद ही उन लोगों का फोन आया कि दीदी सतना के उस अस्पताल में भी बेड खाली नहीं हैं पहले खाली था पर अब नहीं है आप ही कुछ कीजिये भाई का ऑक्सीजन सिलेंडर ख़त्म होने ही वाला है हम ज्यादा वेट नहीं कर सकेंगे तब मैंने उन लोगों को सुयश अस्पताल चले जाने को कहा जब वे वहां पहुचे ही होंगे। अचानक मेरे पास फोन आया कि दीदी हमें एडमिट नहीं कर राहे हैं और सचिन सर को मैं पहले ही बता चुकी थी कि इन लोगों को सतना के अस्पताल में जगह नहीं मिलने से सुयश में जाना पड़ेगा।

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पहले से बात करके रखी थी भेज दिया है डॉक्टर से बात करने पर ज्ञात हुआ कि उनका ऑक्सीजन स्तर 40 है इसलिए डॉक्टरों को संदेह था | फिर सचिन सर का फोन आया कि आरती वहा पेशेंट को अंदर नहीं ले रहे हैं। कृपया डॉक्टर से बात करो। मैंने डॉ धीरेन्द्र सिंह से बात की और आग्रह किया। इसके बाद उनको एडमिट किया गया। फीस सचिन सर ने ऑनलाइन जमा कर दी | इसके बाद युसूफ भाई 17 अप्रैल 2021 तक उसी अस्पताल में रहे हम डॉक्टर के लगातार संपर्क में थे उनका ऑक्सीजन लेवल 40 से 72 के बीच झूलता रहा उनके लिए इंजेक्शन रेमडेसिवीर की व्यवस्था में हम लोग जुट गए।

16 को दोपहर 2 बजे उनको रेमडेसिवीर इंजेक्शन दिया गया जिसकी सूचना मुझे डॉ सिंह ने दी। शाम को सचिन सर का फोन आया कि आरती वे लोग पेशेंट को रेफर करने की बात कह रहे हैं, बात करो उन लोगों से। जब मैंने फोन लगाया तो पता चला कि युसूफ भाई वेंटीलेटर के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए वो उसे फेक देते थे, डॉक्टर ने मुझे ये बताया। मैंने आग्रह किया कि सर अभी की स्थिति में कहीं बेड नहीं हैं हम पेशेंट को कहा ले जाएंगे तब वे मान गए और कहा कि ठीक है मैं अपनी पूरी कोशिश करता हूँ।

17 अप्रैल की शाम को मैंने डॉक्टर को फोन लगाया तब पता चला कि 12 घंटे के अन्दर एक और इंजक्शन दिया जाना है जिसके लिए मैं और सचिन पहले से प्रयास कर ही रहे थे। उन्होंने सहारा मेडिकल से उस इंजेक्शन को कलेक्ट करने को सलीम को कहा।सलीम वहाँ गया तो पता चला कि कोरियर नहीं आया है। कल ले जाना, सारी बात मुझे सलीम ने बताई और कहा दीदी वो इंजक्शन रात ही मिल जाता तो सुबह लगवा लेते।

इसके लिए मैंने सतना के ही एक अस्पताल की प्रमुख वाधवानी मैडम को रात 10 बजे फोन किया जिसका उन्होंने बड़े अच्छे तरीके से उत्तर दिया। उन्होंने मुझे हरी मेडिकल से इंजेक्शन कलेक्ट करवा लेने को बोला मैंने ये बात सलीम को बताई तो पता चला उसके पास गाडी नहीं है। गाडी युसूफ भाई की पत्नी यानि समीना जी को पन्ना छोड़ने गई है कि उनकी माँ कोरोना से ख़त्म हो गई है जो कि सागर अस्पताल में भर्ती थी |

मैंने सचिन भाई को सारी बात बताई और वसीम को समझाया इंजेक्शन की जुगाड़ हो ही गया है अब तुम आराम से दो दिन की नीद पूरी कर लो। वो मुझे यह कहके सो गया कि दीदी आप ध्यान रखना, डॉक्टर से हाल चाल लेते रहना |

रात के 11 बज चुके थे। मुझे नीद नहीं आ रही थी। जैसे तेसे करवट बदल कर सोने का इन्तजार करती रही। रात को 3:30 पर सलीम का फोन आया दीदी युसूफ भाई नहीं रहे … हम उनको एम्बुलेंस में पन्ना ले जा रहे हैं। यह शब्द सुनकर मैं तो अवाक रह गई कि ऐसा कैसे हो सकता है लेकिन यह कठोर सच था जिसने यूसुफ भाई के परिवार जनों और हम मित्रों को अंदर तक झकझोरकर रख दिया।