कोरोना का कहर: सरकारी अस्पताल में नहीं मिली सुविधाएं तो न चाहते हुए निजी अस्पताल में किया भर्ती

कोरोना का कहर: सरकारी अस्पताल में नहीं मिली सुविधाएं तो न चाहते हुए निजी अस्पताल में किया भर्ती

भोपाल। मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाके जामनेर में एक मरीज़ को बुखार आना शुरू हुआ और उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी। इसकी वजह से उनकी तबीयत और खराब होने लगी। हालत खराब होते देख परिजन उन्हें ब्यावरा लेकर गए। वहां के डॉक्टर से बात की और उनकी सोनोग्राफी और एक्सरे हुआ। उसमें पता चला कि मरीज़ को फेफड़ों का इनफेक्शन और फेफड़ों में कोरोना बताया था।

परिवार वालों ने डॉक्टर से इलाज को लेकर बात की तो डॉक्टर ने उनको भर्ती करने की बात की। इससे परिजन बहुत परेशान हो गए और घबरा गए थे। उन्होंने मरीज़ को भोपाल लाने का विचार किया। क्योंकि उन्हें लगा कि ब्यावरा में ठीक ढंग से इलाज नहीं हो पाएगा। इसलिए वो मरीज़ के नाज़ुक हालात को देखकर ब्यावरा से 4 घंटे का सफर तय करके भोपाल आए। मरीज़ को भोपाल के जय प्रकाश हॉस्पिटल में भर्ती किया गया।

दो दिन तक मरीज़ जय प्रकाश हॉस्पिटल में ही भर्ती रहा, पर उसका ठीक से इलाज नहीं हो रहा था और उसकी किसी भी तरह की जाँच नहीं की गई। जो जाँच ब्यावरा में हुई थी, उसके आधार पर ही उनको इंजेक्शन और दवाई दी गई। 2 दिन में मरीज़ की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। परिवार वालों ने अपने व्यक्ति की ऐसी हालत देखकर उनको जय प्रकाश हॉस्पिटल से निकल कर प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती किया।

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मरीज़ के परिजनों से पूछा कि सरकारी हॉस्पिटल से निकल कर प्राइवेट हॉस्पिटल में क्यों लेकर गए और भर्ती क्यों किया? तो उनका कहना था कि हम पहले सरकारी हॉस्पिटल ही गए थे, क्योंकि हमारे पास इतना पैसा नहीं था कि प्राइवेट इलाज करा सकें। 6 से 10 अप्रैल को मेरी बेटी और बड़े लड़के की शादी हुई थी, तो पूरा पैसा उसमें ही लगा दिया था, तो इतना पैसा नहीं था कि प्राइवेट भर्ती करें।

लेकिन जब जयप्रकाश हॉस्पिटल में भर्ती किया तो 2 दिन में ऐसी कोई सुविधा नहीं मिली जिससे मरीज़ की हालत में कोई परिवर्तन आया हो। उनकी हालत तो 2 दिन के बाद और खराब होती नजर आई। हॉस्पिटल में मरीज़ को देखने एक बार ही डॉक्टर आए थे।

उसके बाद डॉक्टर भी मरीज़ को देखने नहीं आए। उस हॉस्पिटल में जो कोरोना वार्ड था, उसमें कोई भी सेफ्टी नहीं थी। सारे covid के मरीज़ कहीं भी आ जा रहे थे। घूम रहे थे। वही मरीज़ों के परिवार वाले उस वॉर्ड में मिलने जा रहे थे। इसके लिए भी कोई सेफ्टी नहीं थी। ना कोई इलाज ठीक था।

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उन्होंने बताया कि दो दिन में सिर्फ उनकी खून की ही जांच हुई और वो भी लेट मिली। पूरे एक दिन बाद। इलाज के नाम पर 2 से 3 इंजेक्शन और कुछ दवाइयां मिलीं। इससे मरीज़ की हालत में कोई सुधार नहीं आया।

इसे देखकर ना चाहते हुए भी हमें मरीज़ को प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती करने का फैसला करना पड़ा। उस समय कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें।

उन्होंने बताया कि भोपाल में हमारे रिश्तेदार हमारी मदद नहीं करते या प्राइवेट हॉस्पिटल की जानकारी देकर भर्ती नहीं करते तो पता नहीं क्या होता।

उन्होंने बताया कि प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती किया तो 25000 रुपए काउंटर पर जमा किए। ये पैसे कैसे जमा किये, ये हम ही जानते हैं। एक तरफ शादी तो दूसरी तरफ हमारा व्यक्ति जिसकी हालत इतनी गंभीर हो गई थी कि 8 दिन तक उनको ऑक्सीजन लगा और 25000 जमा करने के बाद आयुष्मान कार्ड से उनका इलाज कराया। तब जाकर हमारा व्यक्ति बच पाया। उनकी 10 दिन में छुट्टी हुई है और अब वो ठीक हैं।