जन्मदिन पर विशेष: इलियट की कविताओं के बिंब हर बार नए रूप में आते हैं सामने: अर्चना प्रसाद

टी. एस. एलियट: 26 सितंबर 1888 को जन्म। 1948 में नोबल 
(साहित्य) मिला। 20वीं सदी के महान कवि। 26 साल की उम्र 
में अपनी मातृभूमि अमरीका छोड़ दी। इंग्लैंड में बसे। 1927
में ब्रिटिश नागरिक बने। 
नाटक, कविता और आलोचना के
क्षेत्र में ठोस कार्य। 
अपने समय के सभी प्रख्यात लेखकों पर
असर डाला। 
खुद डन, एजरा पाउंड और लॉफोर्ज से सबसे ज्यादा
प्रभावित रहे।  
4 जनवरी 1965 को निधन। 

ईलियट का जो द्वंद्व है, उनका जो नैराश्य है, वह मुझे हमेशा आकर्षित करता है। वे अच्छे, खुशनुमां माहौल में भी सबसे बुरे को देखने के औजार देते हैं। पत्रकारिता में मुझे इससे बहुत मदद मिली। लेकिन इस नैराश्य की वजह क्या रही होगी ईलियट के पास? यह सवाल कई-कई तरह से कई-कई बार मेरे सामने आया है। दुनिया के साहित्य से मेरा पहला परिचय अशोकनगर में हुआ था और इस दौरान खुशकिस्मती से मेरी अंग्रेजी की शिक्षिका अर्चना प्रसाद मेरी तमाम अराजकताओं और जल्दबाजी के बीच भी कई बार मुझे विश्व साहित्य को समझने के कुछ सूत्र पकड़ाती रहीं। ईलियट के जन्मदिन पर उनके बारे में डॉ अर्चना से लंबी बातचीत हुई, उसके अहम हिस्से- 


“ईलियट जिस वक्त रचनाकर्म कर रहे थे वह इंडस्ट्रीयल रेवेल्यूशन का दौर था। इसीलिए उनकी प्रेम कविता में भी क्लास कॉन्फिलिक्ट (वर्ग संघर्ष) देखने को मिलता है। वहां प्यार करने में भी आदमी को सोचना पड़ रहा है। इलियट कहते हैं- बार बार मुझे अपना चेहरा सामने रखना पड़ रहा है प्रेम करते हुए। वह अपनी काबलियत को परखते हुए लगते हैं।”

“इलियट प्रपोज नहीं कर पा रहे हैं। पूरा माहौल ईथराइज्ड है। धुंध से ढंका हुआ है। वह मजदूर हैं और मजदूरों के बीच में रहते हैं। वहां जीवन के सबसे कठिनतम संघर्ष हैं, उस वर्ग के सामने कवि बैठा हुआ है और वे लड़कियां सामने से गुजर रही हैं, जिनसे उसे प्यार है।”
“इलियट की कविता में दो अलग-अलग क्लास एक साथ दिखाई दे रहे हैं। इन्टेक्लेचुअल भी हैं वहां मजदूरों के साथ। वह लड़कियां उन्हें देख रही हैं, लेकिन वह सो कॉल्ड, फैशनेबुल बुद्धिजीवी हैं। यहां इलियट के पास प्रपोज करने का डैलेमा है। यह द्वंद्व ही उन्हें मजदूर के जीवन में झांकने को ले जाता है। यहां पूरी इकॉनामिक्स सामने आती है।”
“आमतौर पर वेस्टलैंड को आलोचक हारे को हरिनाम जैसी रचना करार देते हैं, कुछ-कुछ दिनकर के करीब। लेकिन यह उथला कम्पैरिजन है। यह सतही तुलना है। जो लोग यह कहते हैं कि ईलियट पर भगवत गीता का प्रभाव था, वह भी मुझे लगता है उत्साही चूक कर रहे हैं। संस्कृत के बहुत बड़े अध्येता ईलियट नहीं थे। हां वेस्टलैंड में वे आखिर में संस्कृत का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन उसकी वजह एजरा पाउंड का प्रभाव ज्यादा है, भगवत गीता से इसका कोई लेना-देना नहीं है।”
“ईलियट की एक और महत्वपूर्ण कविता है हॉलेमैन। यह बहुत छोटी कविता है। वैस्टलैंड और लव सॉन्ग की तुलना में तो और भी छोटी कविता, जिसमें वे बताते हैं कि आदमी खोखला हो गया है। जो हमें सफल दिख रहा है, वह भी सार्थक जीवन नहीं जी रहा है। जो होना चाहिए वह सफलता में नहीं है। वह इंसान जिंदगी की जद्दोजहद से बाहर नहीं आ पा रहा है। यह रचनात्मक प्रक्रिया का बेहद शानदार नमूना है।”
“असल में ईलियट को जितनी बार भी पढ़ो उनके पास कुछ नया मिलता है। मैं ईलियट पर काम करना चाहती थी, लेकिन डरकर मैंने काम नहीं किया। सचमुच ईलियट से डर लगता है। हम उन्हें एक वक्त में जैसा समझ रहे होते हैं, दूसरी बार पढ़ो तो वह बिल्कुल वैसे नहीं रह जाते हैं। बिल्कुल अलग दिखते हैं। यह बड़ी कविता के साथ होता है। हर बार उसका नया बिंब सामने आता है। हर बार बिल्कुल अलग और फिर हम डर जाते हैं कि कहीं हमारी समझ ही तो कमतर नहीं हैं इस कवि के करीब जाने के लिए। यह मुश्किल होता है कि जितनी बार पढ़ो, उतनी बार नया मिले। लेकिन यह अपना लगता है। ईलियट हर बार अपने लगते हैं। वह जो बिंब प्रस्तुत करते हैं, जो इमेजेज बनाते हैं, वह बिल्कुल अलग संसार में ले जाती हैं। जैसे लव सॉन्ग में वह कहते हैं- शीशे के ऊपर जो गली के ऊपर अंधियारा है, वह यूं लगता है कि बिल्ली ने खरोंच मारी हो। अब ब्रिटिश कल्चर में बिल्ली दुख का प्रतीक है, अंधेरे का गम्य। जो हमारे यहां उल्लू है, वह ब्रिटिश कल्चर में बिल्ली है। तो बिल्ली ने खरोंच मारी हो, वैसा अंधियारा।”
“ईलियट की कविता का आदमी ऐसा हो गया है, जैसे कोई मरीज ईथराइज्ड हो। जो बेहोशी की दवा के हल्के असर का वक्त होता है। उसे सामने लाते हैं ईलियट। हल्का होश और बेहोशी के बीच का हिस्सा। यह जो बिंब हैं, वह कविता को एक अलग ही ऊंचाई देते हैं।”
“इलियट अच्छे आलोचक भी हैं। ऑब्जेक्टिव कोर्रिलेटिव के सिद्धांत में वह कहते हैं कि कविता वह होती है, जहां कवि की मौजूदगी का पता नहीं चले। जहां एक बिंब के साथ दूसरा और फिर तीसरा बिंब जुड़ा हुआ हो और दिलचस्प यह है कि इन बिंब के बीच इतना स्पेस हो पाठक के पास कि वह उन्हें अपने आप समझ सके, यानी पाठक के सामने इन्हें जटिलता के साथ नहीं रखना है। ईलियट कवि की तुलना कैमिस्ट्री के कैटलिस्ट यानी उत्प्रेरक से करते हैं। जैसे कैटलिस्ट की भूमिका कैमिकल रिएक्शन को शुरू करने की होती है, ठीक वैसे ही। उत्प्रेरक की भूमिका में कवि उस कथ्य को प्रस्तुत कर रहा होता है, उसका अपना ऑब्जर्वेशन भी होता है, लेकिन उसकी सब्जेक्टिविटी नहीं होती है। कवि मौजूद नहीं होता है। पाठक कविता को अपने जीवन के हिसाब से समझता है।” 

अर्चना मैम की सलाह: ईलियट को जिसने भी नहीं पढ़ा है, तो उसे “द वेस्ट लैंड” तो पढऩा ही चाहिए, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है कि “लव सॉन्ग ऑफ जे अल्फ्रेड प्रूफ्रोक” और “हॉलमैन” को पढ़ा जाए और इन्हें पढऩे के बाद आप खुद को “फोर क्वार्टेट्स” पढऩे से भी नहीं रोक पाएंगे। 
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