मंगल पर कब्जे की लड़ाई : शीत युद्ध जैसी अंतरिक्ष की जंग

30 अगस्त 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

सचिन श्रीवास्तवएक ऐसी लड़ाई जिसमें कोई खून नहीं बहेगा। यहां मशीनें एक दूसरे से लड़ेंगी। कंप्यूटर प्रोग्राम की जटिल अल्गोरिदम जीत-हार तय करेगी। दुनिया के कुछ सबसे उम्दा दिमाग इस लड़ाई को संचालित करेंगे। हथियार होंगे रॉकेट और अंतरिक्ष एयरक्राफ्ट। जबकि मैदान होगा-मंगल।
यह लड़ाई तय थी, लेकिन इसकी शुरुआत अगले चार साल में हो जाएगी इस पर कम ही लोगों को यकीन था।
अगस्त के आखिरी सप्ताह में जब दुनिया भर की नजरें अमरीका के राष्ट्रपति पद की तीखी होती लड़ाई और वैश्विक अर्थशास्त्रीय हलचलों पर थीं, उसी वक्त वाशिंगटन डीसी स्थित नासा के केंद्रीय कार्यालय और बीजिंग में चीनी राष्ट्रीय अंतरिक्ष एडमिनिस्ट्रेशन के दफ्तर में दुनिया के कुछ आला दिमागों के माथे पर चिंता की लकीरें थीं। दोनों की मौजूदगी भले धरती पर थी, लेकिन निगाहें अंतरिक्ष की ओर। अंतरिक्ष में भी खास मंगल की ओर। वजह है, अंतरिक्ष में कब्जे की वह लड़ाई, जो बीते पांच साल में तनावग्रस्त खामोशी के साथ लड़ी जा रही थी। लेकिन अब इसका मैदान, इलाका और हथियार तय हो चुके हैं।

अमरीका-चीन की नजरें भारत पर
अंतरिक्ष की यह जंग सीधे तौर पर चीन और अमरीका एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। लेकिन उनकी नजरें भारत पर हैं। भारत ने बीते साल सितंबर में मंगल के ऑर्बिट में दाखिल होकर दुनिया भर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को चौंका दिया था। नासा, सोवियत स्पेस प्रोग्राम और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के बाद इसरो महज चौथी स्पेस एजेंसी है, जो अंतरग्रहीय मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुकी है।

नासा के कदम
जूनो मिशन: पांच साल पहले शुरू हुआ बृहस्पति के अध्ययन से संबंधित मिशन जूनो अपने दूसरे चरण के आखिरी दौर में है। अगले 18 महीने में यह 2.9 अरब की यात्रा पूरी कर बृहस्पति की अछूती तस्वीरें भेजने लगेगा।
टाइटन मिशन: शनि के उपग्रह टाइटन पर एक सबमरीन भेजने की योजना पर जल्द काम शुरू करेगा।
छोटे ड्रोन का निर्माण: 500 फीट से कम ऊंचाई पर उडऩे वाले ड्रोन का निर्माण दूसरे चरण में पहुंच चुका है।

रूस की खामोश रणनीति
रूस और फ्रांस, ब्रिटेन, इटली जैसे देश अंतरिक्ष पर कब्जे की इस लड़ाई में फिलहाल पिछड़े हुए हैं। जापान भी दौड़ में नहीं है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि रूस कभी भी चौंका सकता है। वैसे भी रूसी वैज्ञानिक खामोशी से मिशन को अंजाम देने के लिए जाने जाते हैं। माना जा रहा है बड़े अंतरिक्षीय मिशन को लेकर रूस की लंबी चुप्पी एक जटिल रणनीति का हिस्सा हो सकती है।

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मैदान: मंगल पर होगी कब्जे की लड़ाई
चीन और अमरीका ने 2020 तक मंगल पर रोवर भेजने का लक्ष्य निर्धारित किया है। चीन ने जुलाई-अगस्त 2020 तक की समय सीमा निर्धारित की है। बीते 24 अगस्त को चीन ने अपने रोवर मॉडल का सार्वजनिक प्रदर्शन किया और नागरिकों से प्रतिक्रिया मांगी। इधर, छह अमरीकी अंतरिक्ष यात्री एक साल मंगल जैसे माहौल में बिताने के बाद 28 अगस्त को हवाई से वाशिंगटन पहुंचे। अमरीका भी अगस्त 2020 तक 2.1 बिलियन डॉलर (141 अरब रुपए) की लागत का अपना रोवर मंगल पर भेजना चाहता है।

वजह: अकूत खनिज संपदा के लिए जंग
नई सदी की शुरुआत में माना जाता था कि अंतरिक्षीय लड़ाई का केंद्र चंद्रमा या बुध होंगे, लेकिन मंगल के बारे में हालिया खोजों ने सभी ताकतवर देशों की दिलचस्पी इस लाल ग्रह में जगा दी है। मंगल पर खनिजों की अकूत संपदा है और जल्द अपना केंद्र स्थापित कर अमरीका और चीन ज्यादा से ज्यादा संपदा पर कब्जे की तैयारी में हैं।

तैयारी: मंगल पर पहुंचने की कोशिशें
1960: सोवियन यूनियन ने मंगल तक पहुंचने की पहली कोशिश की, जो असफल रही। इसके बाद के सोवियत यूनियन के चार मिशन भी फेल हुए।
1964: नासा का मरीनर-4 दुनिया का पहला मिशन बना जो मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचा। 15 जुलाई 1965 को यह मंगल के सबसे नजदीक था।
1971: मरीनर 9 मंगल की कक्षा में पहुंचा। मिशन पूरा होने पर 516 दिन बाद इसे बंद कर दिया गया। इसके पहले मरीनर 6 और 7 भी अपने काम को अंजाम दे चुके थे। सोवियत ने भी नौ नाकामियों के बाद साल इसी साल सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में प्रवेश किया। लेकिन तेज आंधियों के कारण मार्स-2 मिशन अपना काम नहीं कर सका।
1975: नासा ने विकिंग-1 और 2 के चार मिशन सफलतापूर्वक अंजाम दिए। सोवियत कोशिशें जारी, लेकिन कोई पक्की सफलता नहीं।
1998: जापान की मंगल पर पहुंच बनाने की कोशिश। आईएसएएस के स्पेसक्राफ्ट में गड़बड़ी आने से मिशन फेल हुआ।
2003: यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने मार्स एक्सप्रेस को पहली ही कोशिश में मंगल की कक्षा में पहुंचाया। यह 2026 तक वहां रहेगा।
2011: मंगल तक पहुंचने की पहली चीनी कोशिश यिंगहो-1 नाकाम। इसी साल नासा ने मंगल विज्ञान प्रयोगशाला रोवर क्यूरोसिटी की स्थापना की।
2013: मंगल की ओर भारत ने अपना पहला मिशन भेजा। 2014 में स्थापित।

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हथियार: भविष्य के मंगल मिशन
मंगल पर अपनी बादशाहत दर्ज कराने की दौड़ में फिलहाल अमरीका और चीन के अलावा यूरोपियन स्पेस एजेंसी, यूएई और भारत हैं।
एस्टेरॉइड मिशन: नासा अपने महत्वाकांक्षी रोवर मिशन के पहले एस्टेरॉइड मिशन पर काम कर रहा है। इसके अंतर्गत मंगल के एक क्षुद्रग्रह को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया जाएगा। ताकि आसानी से, कम खर्च में उसका अध्ययन किया जा सके।
इनसाइट: नासा की ओर से 5 मई 2018 को प्रक्षेपित किया जाएगा। यह मंगल की जमीन की भीतरी परतों का अध्ययन करेगा और खनिजों की पुख्ता मौजूदगी का पता लगाएगा।
रेड ड्रेगन: अमरीकी एजेंसी स्पेस एक्स का यह मिशन 2018 में पूरा होने की संभावना है।
मंगलयान-2: भारतीय एजेंसी इसरो 2020 में यह मिशन भेजेगी। यह मंगल के ऑर्बिट में दाखिल होगा। साथ ही लैंडर और रोवर भेजने की भी योजना है।
अमीरात मार्स मिशन: इस मिशन के जरिये जुलाई 2020 तक यूनाईटेड अरब अमीरात की योजना मंगल के ऑर्बिट में दाखिल होने की है।
मार्स 2020: नासा का यह रोवर मिशन तय कर देगा कि भविष्य में मंगल पर किसका कब्जा होगा।
एक्सोमार्स रोवर: यूरोपियन स्पेस एजेंसी की योजना जुलाई 2020 में अपने रोवर को मंगल पर पहुंचाने की है।
2020 चाइनीज मार्स मिशन: चीन की राष्ट्रीय स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन की योजना 2020 में मंगल के ऑर्बिट में दाखिल होकर वहां से लैंडर और रोवर मंगल की जमीन पर पहुंचाने की है।
नासा 2022 ऑर्बिटर: यह नासा का प्रस्तावित मिशन है। इसके जरिये मंगल के ऑर्बिट में दो मिशनों के बीच टेलीकम्यूनिकेशन की व्यवस्था की जाएगी। एक तरह से यह मिशन अमरीका के अंतरिक्ष में मोबाइल संचार सेवा शुरू करने का हिस्सा है।

मंगल पर इंसान बसाने की तैयारी
चीन का यह प्रस्तावित मार्स टू स्टे मिशन 2040 से 2060 के बीच मंगल पर आम इंसानों की मौजूदगी के लिए काम करेगा। इसी मिशन पर रूस की एजेंसी रोसकोस्मोस भी काम कर रही है। अमरीकी एजेंसी स्पेस एक्स मंगल पर इंसान की मौजूदगी के सपने को 2024 तक अमली जामा पहनाना चाहती है। अमरीकी मिशन सेटलमैंट भी मंगल पर इंसानी चहलकदमी पर काम कर रहा है।