देश की सड़कें : जाली लाइसेंस नहीं हैं हादसों की इकलौती वजह

सचिन श्रीवास्तव
इसी साल जनवरी में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि देश में 30 प्रतिशत ड्राइविंग लाइसैंस जाली हैं। इसके लिए उन्होंने परिवहन संबंधी कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन की बात कही थी। गौर करने वाली बात यह है कि राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2015 में देश में सड़क हादसों में 1 लाख 48 हजार लोगों की जान चली गई। इसका अर्थ है कि हर 10 मिनट में सड़कों पर तीन मौत हो जाती हैं। यह दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज्यादा है। हालांकि कोई यह तर्क दे सकता है कि वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक 2013 में चीन में सड़क हादसों से 2.61 लाख मौत हो गई थीं, हालांकि सरकारी आंकड़े बताते हैं कि उस साल चीन में महज 58 हजार 539 मौत हुई थीं। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि डब्ल्यूएचओ ने भारतीय मौत का आंकड़ा भी 2 लाख 7 हजार 551 बताया था, जबकि भारत सरकार के मुताबिक यह 1.38 लाख था। हादसों में भारत पहले स्थान पर है, या दूसरे इससे यह हकीकत नजरअंदाज नहीं की जा सकती कि देश में सड़क सुरक्षा एक बड़ा सवाल है।

5 गुना ज्यादा मौत
02 प्रतिशत हिस्सेदारी है भारत की दुनिया के कुल
वाहनों में
10 प्रतिशत भारतीय मारे जाते हैं दुनिया के कुल सड़क हादसों में
15-34 आयु वर्ग के लोग होते हैं भारत में हादसों का सबसे ज्यादा शिकार
3-5 प्रतिशत तक का नुकसान होता है जीडीपी में सड़क हादसों के कारण हर साल

प्रशिक्षित ड्राइवर नहीं हैं हमारी सड़कों पर
इस बात से किसी को इनकार नहीं है कि देश में कई ऐसे लोग वाहन चलाते हैं, जिनके पास उचित लाइसैंस नहीं होता है। दूसरा और भयानक सच यह भी है कि जिनके पास उचित लाइसैंस है, उन्होंने नियमों के मुताबिक नहीं, बल्कि अन्य जरिये से लाइसैंस हासिल किया है। हालांकि देश में जाली लाइसैंस की कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की ही मानें तो इनकी संख्या करीब 30 प्रतिशत है। उन्होंने यह बयान पहली बार जून 2015 में दिया था, जिसे 29 जनवरी को दोहराया।

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परिवहन कार्यालयों की हालत खस्ता
जाली लाइसैंस की एक बड़ी वजह स्थानीय और क्षेत्रीय कार्यालयों पर काम का अत्याधिक दबाव है। माना जाता है कि एक मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर प्रतिदिन औसतन 100 आवेदन देखता है। इसका अर्थ है कि उसके पास एक लाइसैंस के लिए पांच मिनट से भी कम वक्त होता है। जाहिर सी बात है कि इतने कम वक्त में एक ड्राइवर की योग्यता का परीक्षण संभव नहीं है।

लागू नहीं है एक व्यक्ति, एक लाइसैंस का नियम
आदर्श स्थिति में एक व्यक्ति के पास एक ही लाइसैंस होना चाहिए, लेकिन कई मामलों में ऐसा नहीं है। देश में ऐसा कोई व्यवस्थित डाटाबेस भी नहीं है, जिसके जरिये पता लगाया जा सके कि कितने लोगों के पास एक से ज्यादा लाइसैंस है। एक से ज्यादा लाइसैंस का चलन कमर्शियल ड्राइविंग के मामलों में आम है और इस पर लगाम कसना अपने आप में चुनौतिपूर्ण काम है।

हादसों की और भी हैं वजहें

1- असुरक्षित वाहन, सुरक्षा मानक दरकिनार
देश का ऑटोमोबाइल क्षेत्र जीडीपी में 7 प्रतिशत से ज्यादा योगदान देता है। हम कई वाहन निर्यात भी करते हैं, इसके बावजूद घरेलू बाजार में बिकने वाले अधिकांश वाहन मूलभूत सुरक्षा मानक भी पूरे नहीं करते। बीते साल मई में कई लोकप्रिय कार मॉडल सुरक्षा मानकों की जांच में खरे नहीं उतरे थे। हालांकि देश में सड़क हादसों में दो पहिया वाहनों के कारण ज्यादा मौत होती हैं, जबकि इनके सुरक्षा मानकों की हालत बेहद खराब है।
2- खराब ढांचे के कारण ज्यादा मौत
पारंपरिक रूप से सड़क हादसे रोकने के लिए जागरुकता और नियम कानून के पालन को तरजीह दी जाती है, लेकिन वैश्विक उदाहरण बताते हैं कि निर्माण ढांचा भी इसमें अहम भूमिका निभाता है। खासकर शहरों में यह बेहद अहम हैं, जहां सबसे ज्यादा हादसों का शिकार पैदल और साइकिल चालक होते हैं। आमतौर पर जिन सड़कों पर 50 किलोमीटर की गति सीमा होती है, वहां 80 और 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से वाहन दौड़ सकते हैं। इस तरह अत्याधिक गति जानलेवा साबित होती है।
3- 100 साल पुराने हालात पर कानून
यूं तो हमारे देश का आधिकारिक मोटर व्हीकल एक्ट 1988 में बना है, लेकिन इसके नियम और सुरक्षा उपाय 1914 से 1939 के बीच के हैं। कानून का मसौदा उस वक्त में बनाया गया था, जब देश में वाहनों का चलन शुरू ही हो रहा था। उस वक्त इसे बढ़ावा देने के लिए कुछ नियम कायदों की जरूरत थी। इसीलिए इसके ज्यादातर उपबंधों में आवागमन और माल ढोने संबंधी नियम ही हैं। सुरक्षा इस कानून की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है।

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