2013 और 2018 के मोदी के बीच फर्क क्या है?
सचिन श्रीवास्तव
भारतीय जनता पार्टी ने 25 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भोपाल आगमन को यादगार बनाने के लिए देश के सबसे बड़े कार्यकर्ता महाकुंभ का आयोजन किया था और इसमें करीब 10 लाख कार्यकर्ता जुटाने का दावा किया गया। हालांकि प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक यह संख्या 4 लाख के आसपास तक ही पहुंच सकी। बहरहाल, यह भी बड़ी संख्या है और ऐसे समय में जब केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकारों पर चौतरफा हमला हो रहा हो, उसे यह 4 लाख कार्यकर्ताओं का साथ जरूर संजीवनी देगा। लेकिन दिक्कत यह है कि भाजपा को प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी से जो उम्मीद थी, वह वे पूरा नहीं कर सके। अपने भाषणों से लाखों लोगों के दिलों में उतरने का माद्दा रखने वाले प्रधानमंत्री अब विपक्ष के हमलों से नासाज भाजपा नेता में तब्दील होते जा रहे हैं और महाकुंभ के मंच पर उनकी भाव भंगिमाएं भी यही दर्शा रही थीं। यह बीते पांच साल में आया बड़ा फर्क है। दूसरी दिक्कत यह है कि 2013 में भी मोदी जी कांग्रेस को कोसते थे और आज भी वे वही कर रहे हैं, यानी कंटेंट के लिहाज से उनके भाषणों में अब कुछ भी नया नहीं है। जाहिर है यह बात उनकी वक्तव्य कला के खिलाफ जाती है।
खूब हुआ तामझाम, करीब 100 करोड़ का खर्च
इस कार्यकर्ता महाकुंभ के लिए 9 विशेष ट्रेनें चलाई गईं, जिन पर अनुमानित रूप से एक करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किया गया और इनसे 45 हजार कार्यकर्ताओं को सभा स्थल तक लाया गया। ये ट्रेनें ग्वालियर, रीवा, जबलपुर, कटनी, सिंगरौली, बालाघाट, नीमच, छतरपुर और बुरहानपुर से आईं। 24 बोगियों वाली इन ट्रेनों में 12 स्लीपर और 12 जनरल कोच थे। यही नहीं मंत्री संजय पाठक ने कटनी से अपने खर्चे पर विशेष ट्रेन भोपाल लाए जिसे विजयराघवगढ़ एक्सप्रेस नाम दिया गया। बताते हैं कि इस ट्रेन की बुकिंग 20 लाख रुपए में हुई। मंच के पीछे 5 हेलीपैड, 12 हजार से ज्यादा बसें इतने ही निजी वाहन और चार लाख लोगों के लिए 24 घंटे सब्जी-पूड़ी और छोले की व्यवस्था। बताया जाता है कि करीब 100 करोड़ रुपए का खर्च इस महाकुंभ के आयोजन में किया गया।
एक अरब के खर्च पर मिला क्या?
प्रधानमंत्री के प्रदेश में आगमन से भाजपा कार्यकर्ताओं को जो भी उम्मीद रही हो, लेकिन मध्य प्रदेश के आम नागरिकों को तो विकास के वायदे और सरकार के कामों के अलावा प्रदेश के लिए दिए जाने वाले तोहफों का इंतजार था, लेकिन इस पर पानी ही फिरा। इसके अलावा भी प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के आधे से ज्यादा हिस्से में महज कांग्रेस पर निशाना साधा। उनकी चिंता यह बताने में ज्यादा थी कि कांग्रेस सुधर नहीं रही है, और कांग्रेस गर्त में जा रही है। जाहिर है ये बातें वे अपने पिछले भाषणों में भी कहते रहे हैं, तो ऐसा कुछ नया जिससे कि प्रदेश वासियों को उम्मीद बंधे और वे फिर अपने टूटते भरोसे को संभाल सकें, वह कहने में प्रधानमंत्री मात खा गए?
कहां गया मोदी के भाषण का जादू?
प्रधानमंत्री मोदी के कट्टर आलोचक भी इस बात को मानेंगे कि वे इस समय के राजनेताओं में जनता की नब्ज को सबसे बेहतर ढंग से जानने वाले नेता हैं। ऐसे में अगर मोदी जनता की भावनाओं के अनुरूप अपने भाषण नहीं दे पा रहे हैं तो जाहिर है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। आखिर जनता को सम्मोहित करने वाले भाषण देने के धनी मोदी की आवाज अटक क्यों रही है? क्यों वे अपने पुराने भाषणों को ही बार बार दुहरा रहे हैं। 2013 में कांग्रेस को देश की बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए एक से एक अकाट्य तर्क लाने वाले मोदी अब उससे आगे बढ़ते हुए क्यों दिखाई नहीं दे पा रहे हैं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब वक्त रहते भाजपा और खुद को मोदी को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए खोजने होंगे। अन्यथा 100 करोड़ रुपए और सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल के बाद 3-4 लाख कार्यकर्ता तो जुटाए जा सकते हैं, लेकिन चुनाव नहीं जीता जा सकता है।
देश पांच साल आगे निकल चुका है
असल में आज के भाषण से एक बात तो साफ हो गई है कि प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी के पास कहने के लिए कुछ खास है नहीं इसलिए वे घूम-फिरकर कांग्रेस की आलोचना पर ही आ जाते हैं। कांग्रेस की खामियों का ही नतीजा था कि भाजपा को सत्ता के शीर्ष पर जनता ने बैठाया था, ऐसे में अब एक बार फिर अगर कांग्रेस के ही सहारे जीत दर्ज करने ख्याल भी भाजपा के मन में है, तो यह बहुत बड़ी चूक साबित होगा। देश मोदी सरकार से विकास के उन मानदंड़ों की उम्मीद कर रहा था, जो उसने खुद तैयार किए थे 2014 के चुनावी भाषणों में। ऐसे में महज कांग्रेस को कोसना और सवालों पर चुप्पी जनता की नाराजगी को और ज्यादा बढ़ाएगी। जिसका खामियाजा भुगतने के लिए भाजपा को तैयार रहना चाहिए। प्रदेश के चुनाव में भी और आगामी आम चुनाव में भी।
जय हिंद