कारगिल युद्ध के बाद 17 साल का सब्र टूटा
30 सितंबर 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित |
सचिन श्रीवास्तव
26 जुलाई, 1999 को करगिल मुंह की खाने के बाद उम्मीद थी कि पाक सीमा पार से आतंक को बढ़ावा देना बंद करेगा। पर ऐसा हुआ नहीं। नवंबर १९९९ के आम चुनाव में देश की अवाम ने अटल बिहारी वाजपेयी को खूब सराहा। हालात स्थिर थे, माहौल शांत था। इसलिए जुलाई 2001 में वाजपेयी ने भी युद्ध की विभीषिका और तल्खी भुलाकर आगरा में पाक के तत्कालीन प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ वार्ता का सिलसिला शुरू किया। लेकिन पाक नहीं माना। पहले कश्मीर विधानसभा पर हमला हुआ। फिर संसद, मुंबई, दिल्ली समेत दर्जनों आतंकी हमले। जवान का सिर काटा। पठानकोट के बाद भी भारत सब्र और शांति के आदर्श पर टिका रहा। अब उरी के बाद भारत का अटल धैर्य अब टूट चुका है।
2100 से ज्यादा घुसपैठ की कोशिशें की गईं सीमा पार से कारगिल युद्ध के बाद
2900 भारतीय नागरिक व सैनिकों की मौत हो चुकी है बीते 17 साल में आतंकी हमलों और घुसपैठ के दौरान
62 बड़े आतंकी हमले किए हैं इस दौरान पाक समर्थित आतंकियों ने