सर्ज प्राइसिंग : टैक्सी कंपनियों की मनमानी पर लगेगी लगाम
29 अगस्त 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित |
सचिन श्रीवास्तव
अब जल्द ही आपको टैक्सी कंपनियों की सर्ज चार्जिंग से निजात मिल जाएगी। परिवहन मंत्रालय ने टैक्सी ऑपरेटर्स से संबंधित मसले सुलझाने के लिए 12 सदस्यीय कमेटी बनाई है। यह उच्च स्तरीय कमेटी ओला, उबर, मेरू जैसी टैक्सी सेवाओं को परमिट देने से लेकर सर्ज प्राइसिंग तक के मामले देखेगी। सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद यह पैनल बनाया है। फिलहाल सबसे ज्यादा विवाद मांग अधिक होने पर टैक्सी कंपनियों की ओर से अतिरिक्त किराया वसूल करने पर है। परिवहन मंत्रालय की कमेटी इस पर लगाम लगाएगी और एक निश्चित किराया तय करेगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने 22 अगस्त तक की समय सीमा निर्धारित की।
तय और अतिरिक्त किराये का अंतर
2012 में उबर के सीईओ तार्विस केलानिक ने एक इंटरव्यू के दौरान सर्ज चार्जिंग के बारे में कहा था कि चूंकि यह एक प्रयोग है, इसलिए लोगों को इसे अपनाने में कुछ समय लगेगा। हम सभी 70 सालों से टैक्सी के तयशुदा किराये के आदी हो चुके हैं। बीते चार सालों में सर्ज चार्जिंग को लेकर टैक्सी कंपनियों के इस रुख में कोई खास बदलाव नहीं आया है, लेकिन ग्राहकों की शिकायतों, सरकारों के दबाव और घटती साख के मद्देनजर कंपनियां भारत में इस बात पर राजी हो गई हैं कि वे सरकार की ओर से तय एक किराये को लागू करेंगी और अपने सिस्टम में बदलाव कर सर्ज प्राइसिंग रोक लगाएंगी।
क्या है सर्ज प्राइसिंग
विभिन्न त्यौहारों से लेकर छुट्टी के दिनों और ऑफिस जाने-आने के समय को पीक ऑवर या अत्याधिक मांग का समय कहा जाता है। इस दौरान टैक्सी कंपनियां अपना किराया दो से तीन गुणा बढ़ा देती हैं। इसे सर्ज प्राइसिंग कहा जाता है।
कंपनियां कैसे वसूलती हैं ज्यादा किराया
टैक्सी कंपनियां प्रति किलोमीटर एक तय रकम दिखाती हैं, लेकिन उसके साथ कुछ शर्तें भी लागू होती हैं। यह छुपे हुए चार्ज होते हैं। जो प्रति किलोमीटर तय रकम के साथ लगते हैं। मान लीजिए कि कोई कंपनी अपनी किसी टैक्सी सेवा की दर 6 रुपए प्रति किलोमीटर तय करती है। आपको 20 किलोमीटर की यात्रा करनी है, तो आपका किराया 120 रुपए नहीं होगा। इसमें बेसिक चार्ज, 40 रुपए से 80 रुपए तक और प्रति मिनट टाइम चार्ज भी शामिल होगा। इस तरह कुल किराया लगभग 180 रुपए के करीब होगा। इस तरह आप 9 रुपए प्रति किलोमीटर किराया देते हैं। सरचार्ज बढऩे पर आपका किराया बढ़ जाता है। जबकि लंबी दूरी पर किराया घट जाएगा। एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर भी किराया बढ़ जाता है।
जनवरी 2012: 2011 की न्यू ईयर ईव पर न्यूयॉर्क में टैक्सी कंपनियों ने सर्ज चार्जिंग के नाम पर 7 गुणा किराया वसूल किया।
मार्च 2012: कंपनियों ने सर्ज चार्जिंग पर लगाम कसने की बात कही।
अप्रैल 2013: सर्ज चार्जिंग के खिलाफ पेरिस और सिडनी में मामले दर्ज किए गए।
नवंबर 2013: भारत में विभिन्न शहरों में चार गुणा तक सर्ज चार्जिंग के मामले सामने आए।
जनवरी 2014: सर्ज चार्जिंग के खिलाफ शिकायतों का दौर शुरू हुआ।
नवंबर 2015: दीपावली के दौरान विभिन्न शहरों में टैक्सी सेवाओं की सर्ज चार्जिंग के खिलाफ शिकायतें मिलीं। कंपनियां ने कहा, वे इसे रोकेंगी।
अप्रैल 2016: दिल्ली सरकार ने सर्ज चार्जिंग के खिलाफ सख्ती दिखाई
जुलाई 2016: टैक्सी सेवाओं के खिलाफ ऑटो रिक्शा और टैक्सी यूनियनों ने बेमियादी हड़ताल का ऐलान किया।
अगस्त 2016: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि 22 अगस्त के बाद कंपनियां निर्धारित दरों से अधिक चार्ज नहीं कर सकतीं। सरकार ने टैक्सी सर्विस के लिए नीति बनाने के लिए कमेटी का गठन किया
टैक्सी सेवा में संभावित बदलाव
टैक्सी मीटर: फिलहाल टैक्सी में मीटर नहीं है। कुछ शहरों में मीटर लगाए गए हैं, लेकिन वे काम नहीं कर रहे हैं। कई टैक्सी सेवाओं में यात्रा खत्म होने पर किराया पता चलता है। कुछ टैक्सी सर्विस पहले ही किराया बता देती हैं। जबकि कुछ कंपनियां यात्रा के दौरान किराया एप पर अपडेट करती हैं। मीटर लगने पर इसमें एकरूपता आएगी।
अधिकतम किराया सीमा: ऐप बेस्ड टैक्सियां एक ही दूरी के लिए कभी ज्यादा तो कभी कम पैसे वसूलती हैं। टैरिफ की अधिकतम लिमिट तय होने के बाद इससे निजात मिलेगी।
टैक्सी का इंतजार: कई बार ग्राहकों को लंबे समय तक किसी स्थान पर टैक्सी नहीं मिलती है। सरकार इस मसले को भी हल करना चाहती है। कुछ प्वाइंट निर्धारित किए जाएंगे, जिन पर हर समय टैक्सी उपलब्ध होगी। यह प्वाइंट एक से दो किलोमीटर की दूरी पर होंगे।
17 लाख टैक्सी विभिन्न सेवा प्रदाताओं के अंतर्गत चल रही हैं भारत में
1200 करोड़ से ज्यादा का है भारत में एप आधारित टैक्सी का कारोबार
469 अरब रुपए होने की उम्मीद है 2020 तक एप आधारित टैक्सी कारोबार
12 करोड़ ग्राहक हैं भारत में टैक्सी सेवाओं के
किराये का गणित
मूल किराया: यह बेस फेयर है। यात्रा शुरू करने से पहले तय यह न्यूनतम किराया है।
दूरी का किराया: जितनी दूरी आपने तय की है, उसके अनुसार पूर्व निर्धारित प्रति किलोमीटर किराये की दर के आधार पर यह तय होता है।
समय: यात्रा के दौरान जितना समय लगा, उसका किराया भी जोड़ा जाता है।
अत्याधिक मांग का समय: इसे पीक या सर्ज प्राइसिंग कहा जाता है। यह मांग के अनुसार बढ़ता है।
इसके अलावा सर्विस टैक्स, स्वच्छ भारत टैक्स, टोल चार्ज (अगर टोल लगा है तो) आदि भी किराये में जोड़े जाते हैं।
विदेशों में सर्ज प्राइसिंग
पेरिस में सर्ज प्राइसिंग के मसले पर सरकारी हस्तक्षेप पहली बार कारगर रहा। यहां कंपनियों को सर्ज प्राइसिंग की सख्त मनाही है। सिडनी में बीती न्यू ईयर ईव पर 800 प्रतिशत सर्ज चार्जिंग की गई। इस बात पर हंगामा हुआ। फिलहाल सरकार नये नियम लाने की तैयारी कर रही है। न्यूयॉर्क में सर्ज प्राइसिंग को लेकर बीते 5 साल से मुकदमे दायर किए जा रहे हैं। कई मामलों में कंपनियों पर जुर्माने हुए हैं।