शॉपिंग मॉल्स: मुश्किल दौर में दोतरफा चुनौती
सचिन श्रीवास्तव
हमारे देश में करीब डेढ़ दशक पहले संगठित रिटेल क्षेत्र ने पैर पसारना शुरू किया है। शुरुआत में बड़े शहरों में छुटपुट हिस्सेदारी के बाद एक दशक पहले तेज बढ़ोत्तरी और अब छोटे शहरों में अपनी जगह बनाते शॉपिंग मॉल्स इन दिनों मुश्किल के दौर से गुजर रहे हैं। बाजार विशेषज्ञ मानते हैं कि अगला एक दशक भारतीय रिटेल बाजार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और इसी दौरान शॉपिंग मॉल्स का भविष्य भी तय होगा। एक ओर शॉपिंग मॉल्स बंद हो रहे हैं, कुछ अपनी शक्ल बदलकर एजुकेशन इंस्टीट्यूट या कार्पोरेट ऑफिस में तब्दील हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ नए मॉल्स भी तैयार हो रहे हैं। इसी बीच पुराने मॉल्स का रिनोवेशन भी चल रहा है। माना जा रहा है कि रिटेल क्षेत्र में शॉपिंग मॉल्स आने वाला भविष्य तय करेंगे….
500 से ज्यादा मॉल हैं इस वक्त देश के विभिन्न शहरों में
250 नए मॉल्स खुलने वाले हैं अगले दो से तीन साल के दौरान
600 अरब रुपए का विदेश निवेश होने की उम्मीद है अगले दो से चार साल के दौरान
शॉपिंग मॉल्स में
1999 में खुला देश में पहला मॉल
03 मॉल थे पूरे देश में 2002 के अंत तक। दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में थे ये मॉल।
2007 के बाद तेजी से बढ़ी देश में मॉल्स की संख्या
15 मॉल्स कम हुए 2016 के दौरान
35 लाख वर्ग फुट घटा 2016 में मॉल का कुल क्षेत्रफल
25 से 30 प्रतिशत मॉल्स ही हैं फायदे में
2008 की आर्थिक मंदी का हुआ फायदा
करीब एक दशक पहले दुनिया के तमाम बाजारों को अपनी चपेट में लेने वाली 2008 की आर्थिक मंदी से ठीक पहले हमारे देश में मॉल कल्चर तेजी से बढ़ रहा था। उस वक्त देश में मॉल्स की संख्या बढ़कर 250 से ज्यादा हो गई थी, जो एक साल में करीब चार गुना वृद्धि थी। ऐसे वक्त में आई मंदी ने मॉल कल्चर की तेजी पर ब्रेक लगाया। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस मंदी ने मॉल्स की तेजी को संयमित किया और इससे बेतहाशा बढ़ोत्तरी पर रोक लगी। जो भविष्य के लिहाज से फायदेमंद रही।
पारंपरिक बाजार और ऑनलाइन बिजनैस के बीच
देश के मॉल्स इस वक्त दो तरफा चुनौती झेल रहे हैं। एक तरफ पारंपरिक बाजार हैं, जो ग्राहकों से सीधे संबंधी और मोलभाव की भारतीय सोच के अनुरूप हैं। वहीं दूसरी ओर ऑनलाइन बाजार घर बैठे ग्राहकों को बेहतरीन ऑप्शन उपलब्ध करा रहा है। अतीत और भविष्य के इन दो विकल्पों के बीच मॉल्स मौजूदा समय की चुनौतियों से जूझ रहे हैं। ऐसे में मॉल्स के पास खुद को बचाय रखने के साथ आगे बढऩे की चुनौती है।
2016 में पहली बार कम हुई मॉल की जगह
देश के बाजार में मॉल्स कुल क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा था, लेकिन बीते साल इसमें पहली बार कमी आई है। इसकी वजह रही है पांच बड़े मॉल का बंद होना और दूसरे 10 का अपनी शक्ल बदल लेना। इन 10 मॉल्स ने ऑफिस, शैक्षणिक संस्थान, हॉस्पिटल और बैंक्वेट हॉल के क्षेत्र में अपनी जगह का इस्तेमाल शुरू कर दिया। इस तरह इन 15 मॉल्स की कुल 35 लाख वर्ग फुट जमीन देश के मॉल क्षेत्रफल से कम हुई।
लेकिन दुनिया की नजर भारतीय मॉल पर
देश के मॉल्स पर दुनियाभर की नजरें टिकी हुई हैं। वैश्विक बाजार के विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत की रिटेल रैंकिंग बहुत बेहतर है। इसकी वजह है कि भारतीय बाजार में खरीदारों की संख्या बहुत ज्यादा है। साथ ही यहां आर्थिक नुकसान की आशंका भी बहुत कम है। हालांकि राजनीतिक जोखिम मध्यम श्रेणी का बताया जाता है। भारतीय रिटेल बाजार विकासशील देशों में चीन और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर है।
रिटेल बाजार में हिस्सेदारी
2016 में 43 हजार अरब रुपए (660 बिलियन डॉलर) का बाजार
पारंपरिक दुकानें 45 प्रतिशत
शॉपिंग मॉल्स 40 प्रतिशत
ऑनलाइन बिजनेस 15 प्रतिशत
उम्मीद
70 हजार अरब रुपए (1100 बिलियन डॉलर) का हो जाएगा बाजार 2020 में
पारंपरिक दुकानें 23 प्रतिशत
शॉपिंग मॉल्स 55 प्रतिशत
ऑनलाइन बिजनेस 22 प्रतिशत
बढ़ रहा है मॉल्स का औसत आकार
2005 में देश में 50 के करीब मॉल थे और उस वक्त प्रति मॉल क्षेत्रफल करीब 1.87 लाख वर्ग फीट था। यह 2013 में बढ़कर 3.80 लाख वर्ग फीट प्रति मॉल और 2015 में 4.70 लाख वर्ग फीट हो गया। इस वक्त प्रति मॉल क्षेत्रफल 6.6 लाख वर्ग फीट है।
क्षेत्रफल में दिल्ली, मुंबई का बड़ा हिस्सा
62 प्रतिशत दिल्ली और मुंबई
20 प्रतिशत चेन्नई और बंगलुरू
18 प्रतिशत अन्य शहर