माइक्रो फाइनेंस में टाटा की आमद: मोबाइल पर मिलेगा गरीबों को कर्ज

2 सितंबर 2016 के राजस्थान ​पत्रिका में प्रकाशित

सचिन श्रीवास्तव 
रतन टाटा की खांटी भारतीय कारोबारी समझ और नंदन नीलेकणी की भविष्य परखने की क्षमता पर शायद ही किसी को शक हो। इन दोनों दिग्गजों के नाम कई उपलब्धियां हैं और अब वे इस साल के आखिर तक माइक्रो फाइनेंस क्षेत्र का चेहरा बदलने की शुरुआत करेंगे। रतन-नंदन की यह जोड़ी अपनी कंपनी अवंती फाइनेंस के जरिये स्मार्टफोन से गरीबों को छोटे कर्ज मुहैया कराएगी।

उम्मीद से भरा चौंकाने वाला कदम
छह साल पहले चौतरफा जांच के दायरे में रहे इस क्षेत्र में इन दोनों कारोबारियों की आमद चौंकाती है, और उम्मीद भी जगाती है। उम्मीद, कि राजनीति और स्थानीय सत्ता केंद्रों की भेंट चढ़े को-ऑपरेटिव आंदोलन के बाद संभवत: नीलेकणी की डिजिटल छौंक और रतन टाटा का लंबा अनुभव ग्रामीण भारत को आसानी से पैसा मुहैया करा सकेगा। इसके बरअक्स, चौंकाने वाली बात यह है कि अपने सौ साल से ज्यादा के वैश्विक इतिहास में माइक्रो फाइनेंस मुनाफे का कारोबार नहीं रहा है। ऐसे में बीते दो साल से विभिन्न स्टार्टअप में निवेश कर रहे रतन टाटा की दिलचस्पी इस क्षेत्र में बढ़ी है, तो इसके पीछे ठोस कारोबारी वजह जरूर होगी। वहीं नंदन नीलेकणी अपनी किसी भी योजना की शुरुआत सफलता की गारंटी के साथ करने के लिए पहचाने जाते हैं।

बदलेगा ग्रामीण कर्ज का बाजार
रतन-नीलेकणी की जोड़ी के आगमन के बाद इस क्षेत्र की सूरत बदलना तय है। अवंती की शुरुआत के पीछे औपचारिक वजह क्षेत्र में सुधार की संभावना ही बताया गया है। खुद नीलेकणी ने कहा कि भारत में जो लोग सही मायनों में लोन के हकदार है, उन्हें यह नहीं मिलता है। लेकिन अब तकनीक के माध्यम से इसे संभव बनाया जा सकता है। 

बाकी एमएफआई से जुदा
अवंती फाइनेंस से होने वाले सभी लाभ वापस इसी कारोबार और कुछ पैसा अन्य परोपकारी कामों में लगाया जाएगा।
यह किसानों और अन्य लो-इनकम समूहों के बीच पूंजी का वितरण करेगी।
लोन की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी।
लोन लेने वाला खुद के या एजेंट के स्मार्टफोन से प्रक्रिया पूरी करेगा।
लोन लेने वाले के अंगूठे के निशान डिजिटल तरीके से लिए जाएंगे। इससे पहचान सुनिश्चित होगी।

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तकनीकी गरीबी से लड़ाई
सात साल से देश के डिजिटलाइजेशन की मुहिम के अहम हिस्से रहे नंदन नीलेकणी मानते हैं कि देश डेटा-गरीबी से डेटा-अमीरी की ओर जा रहा है और यह बदलाव का दौर है। यानी यह ऐसा वक्त है जब गरीबी महज आर्थिक नहीं है, बल्कि यह तकनीक की भी है। नीलेकणी मानते हैं कि माइक्रो फाइनेंस के जरिये ग्रामीण भारत की तकनीकी गरीबी दूर की जा सकती है।

साफ नहीं है एमएफआई का इतिहास
2010 में आंध्र प्रदेश सरकार ने लोन के नाम पर गरीबों से अत्याधिक वसूली कर रही कई माइक्रो फाइनेंस कंपनियों पर लगाम कसी थी। आंध्र प्रदेश देश में एमएफआई का बड़ा केंद्र है। इस पर खासा विवाद हुआ था और आईबीआई के तत्कालीन गर्वनर डी सुब्बाराव ने माइक्रो फाइनेंस इंडस्ट्री के तौर तरीकों पर चिंता जाहिर की थी। इसके बाद आरबीआई ने ब्याज दर की लिमिट तय की थी। 

अवंती फाइनेंस में हिस्सेदार
रतन टाटा, टाटा समूह के पूर्व चैयरमैन
नंदन नीलेकणी, ब्यूरोक्रेट और इन्फोसिस के सह संस्थापक
विजय केलकर, पूर्व फाइनेंस सेक्रेटरी
आर. वेंकटरमन, प्रबंधक सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट

भारत में माइक्रो फाइनेंस
यूं तो भारत में छोटे कर्ज मुहैया कराने का कारोबार सदियों से चला आ रहा है। 19वीं सदी के आखिरी सालों में इसे कानूनी रूप देने की मांग जोर-शोर से उठी।
1904 में सहकारिता आंदोलन के लिए नियमावली बनी।
1934 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट में कृषि ऋण विभाग की स्थापना का प्रावधान रखा गया।
1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना हुई।
1982 में ग्रामीण फाइनेंस की सबसे बड़ी संस्था नाबार्ड की स्थापना हुई।
1995 में आंध्र प्रदेश में परस्पर सहभागिता के लिए को-ऑपरेटिव एक्ट सामने आया।

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क्या है माइक्रो फाइनेंस
मूल रूप से माइक्रो फाइनेंस इकाइयां स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए लोन उपलब्ध कराती हैं। इसके अलावा वे किसानों, छोटे व्यापारियों आदि को छोटे लोन उपलब्ध कराती हैं। स्वयं सहायता समूहों को भी इनके माध्यम से कर्ज उपलब्ध कराया जाता है। इसका मूल उद्देश्य कर्ज उपलब्ध कराकर सामाजिक बदलाव में हिस्सेदारी है। खासकर महिलाओं के आर्थिक हालात बेहतर बनाना इसका उद्देश्य है।

माइक्रोफाइनेंस का बाजार
60 हजार करोड़ रुपए के सालाना कर्ज की दरकार है भारतीय के गरीब परिवारों को
5 हजार करोड़ रुपए सालाना कर्ज ही उपलब्ध है फिलहाल
16 सौ करोड़ का कुल कर्ज बकाया है एमएएफआई का
5 प्रतिशत ग्रामीणों गरीबों की ही पहुंच है माइक्रो फाइनेंस तक
10 करोड़ लोग कर रहे हैं देश में छोटे कारोबार
4 प्रतिशत छोटे कारोबारी ही आते हैं संस्थागत फाइनेंस के दायरे में
60 प्रतिशत एमएफआई देश में सोसाइटी के तौर पर रजिस्टर्ड हैं
20 प्रतिशत एफएफआई ट्रस्ट की ओर से संचालित हैं
65 प्रतिशत इकाइयां स्वयं सहायता समूह के मॉडल से संचालित होती हैं
65 प्रतिशत एमएफआई देश के दक्षिणी हिस्से में हैं
1.25 करोड़ से ज्यादा गरीब परिवारों ने लिया है एमएफआई से कर्ज
1.4 करोड़ से ज्यादा परिवारों को कर्ज मुहैया कराया है नाबार्ड ने
7.5 करोड़ परिवार हैं देश में गरीबी रेखा के नीचे

यूं मिलेगा मोबाइल पर कर्ज
1 –  लोन लेने वाला अपने नजदीकी एजेंट से संपर्क करेगा।
2 – एजेंट लोन की प्रक्रिया को ऑनलाइन भरेगा।
3 – लोन लेने वाले का स्मार्टफोन रजिस्टर्ड किया जाएगा। अगर उसके पास स्मार्टफोन नहीं है, तो एजेंट का फोन इस्तेमाल करेगा।
4 – अंगूठे के निशान लिए जाएंगे।
5 – वेरिफिकेशन कोड मिलेगा।
6 – वेरिफिकेशन पूरा होने पर संबंधित व्यक्ति के खाते में पैसा आ जाएगा।