भयावह युद्ध के कगार पर दुनिया

सचिन श्रीवास्तव
अमरीकी वायुसेना ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानी शहर हिरोशिमा पर लिटिल बॉय गिराया था। इसके तीन दिन बाद बाद नागासाकी में फैट मैन के जरिये तबाही मचाई। यह अपनी तरह के अनूठे और भारी तबाही मचाने वाले बम थे। इसके बाद बीते 72 साल में अमरीका ने वियतनाम से ईराक और अफगानिस्तान तक सैकड़ों बम गिराये। इनमें 16 साल पहले ओसामा बिन लादेन के तोरा बोरा में होने की आशंका पर गिराया गया 15 हजार पौंड का “डेजी कटर” भी शामिल है। इसी क्रम में बीते सप्ताह मैसिव ऑर्डिनेंस एयर ब्लॉस्ट (एमओएबी) भी जुड़ गया है। इसे आम भाषा में मदर ऑफ ऑल बम्ब्स कहा जा रहा है। जानते हैं इसके असर और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में इस
विस्फोट की गूंज को…

असर: दुनिया के दूसरों देशों के लिए चेतावनी
एमओएबी विस्फोट के बाद बड़ा सवाल है कि दुनिया पर इसका क्या असर पड़ेगा? ट्रंप सरकार के गठन के बाद दुनिया के कई देशों से अमरीका के रिश्ते बदले हैं। सीरिया के मुद्दे पर रूस-अमरीका की खींचतान जगजाहिर है।
पाकिस्तान: अगला निशाना
बम विस्फोट की जगह पाकिस्तान के तोरहाम बॉर्डर से महज 60 किमी दूर है। दूरी भी बड़ा मसला नहीं है, यह विस्फोट सीधे तौर पर पाकिस्तान के लिए चेतावनी है कि वह अलकायदा और तालिबान को पनाह देना बंद करे। अन्यथा अमरीकी बमों का अगला निशाना पाकिस्तान में फल-फूल रहे आतंकी ठिकाने होंगे।
अरब देश: बदलेगी राजनीति
ट्रंप आईएसआईएस के खिलाफ अपना अभियान अफगानिस्तान तक सीमित रखने के मूड में नहीं हैं। साथ ही अमरीकी एजेंसियां मानती हैं कि इन आतंकियों को अरब देशों से मदद मिलती है। जाहिर है ऐसे में अरब देशों से अमरीकी रिश्ते तल्ख होंगे और पश्चिम एशिया की राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
रूस: तल्ख होंगे रिश्ते
सीरिया मसले पर ट्रंप और पुतिन एक दूसरे के खिलाफ हैं। अमरीका अफगानिस्तान से भी रूस को दूर रखना चाहता है। अमरीका की ओर से यह रूस के लिए सीधा संदेश है कि वह किसी किस्म की रियायत नहीं देगा। यह दीगर बात है कि रूस के पास भी अमरीका के बम से ज्यादा घातक बम है। इसे आम भाषा में फादर ऑफ ऑल बम्ब्स कहा जाता है।
चीन: बढ़ेगा विवाद
दक्षिणी चीन सागर पर चीन के साथ अमरीका का पहले ही विवाद है। अफगानिस्तान पर हमले का असर चीन के पश्चिम एशियाई वित्तीय प्रोजेक्ट पर पड़ेगा। दोनों के बीच खाई गहरी होगी।
उत्तर कोरिया: निशाने पर पूर्वी एशिया
किम जोंग लंबे समय से अमरीकी आंख की किरकिरी बने हुए हैं। ट्रंप ने चीन से मदद मांगी है, लेकिन वे खुद निपटने की धमकी भी दे चुके हैं। जाहिर है पूर्वी एशिया ट्रंप के निशाने पर है।

यह भी पढ़ें:  शिक्षा का सामाजिक रूपक

सीरिया में रासायनिक हमले का सच?
ईराक पर तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने रासायनिक हमले की आड़ में ही हमला किया था। अब सीरिया में यही रणनीति ट्रंप अपना रहे हैं। एमओएबी गिराने से पहले सीरिया में अमरीका ने बड़ी कार्रवाई की। वहीं सीरिया इस बात से इनकार कर रहा है कि उसके पास कोई रासायनिक हथियार हैं। अब तक ऐसी कोई पुख्ता रिपोर्ट भी नहीं आई है।

दूसरा इराक बनेगा सीरिया?
आईएस के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर विदेशी सेनाएं अपनी आमद सीरिया में बढ़ा सकती हैं। ऐसे में अगले कुछ दशक तक वहां हालात सामान्य होने के आसार नहीं दिखते हैं।

अमरीकी रुख में आई सख्तीअफगानिस्तान में तालिबान के साथ लड़ाई के चरम दिनों में भी अमरीका न ऐसी कार्रवाई नहीं की। जाहिर तौर पर बम आईएसआईएस के खोरसान गुट को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया, लेकिन असल मकसद अपनी सख्त सामरिक नीति की घोषणा ही है। खोरसान गुट वैसे भी आईएस में बहुत ज्यादा हैसियत नहीं रखता है और इसमें पाकिस्तान के लड़ाके ज्यादा हैं।

यह भी पढ़ें:  बढ़ रही अमीरी, घट रहे गरीब

तेल राजनीति और कीमतों में उछाल
अमरीका का आंतकवाद के खिलाफ मोर्चा कच्चे तेल से गुंथा हुआ है। आतंक के खिलाफ जो कार्रवाई चल रही है, वह कच्चे तेल के उत्पादक देशों के आसपास ही है। वैसे माना जाता है कि इन देशों से आतंकियों को मदद मिलती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आना तय है। यह 60 डॉलर/बैरल के स्तर भी पहुंच सकती हैं। रूस पहले ही ओपेक देशों से उत्पादन में कटौती के लिए दबाव बनाए हुए है। इस तरह इस हमले से तेल की राजनीति भी तेज होगी।

सोना-चांदी की बढ़ेगी कीमत
बीते कुछ समय से सोना और चांदी मांग में गिरावट आ रही है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पैदा हुए नए राजनीतिक संकट के चलते निवेशक सुरक्षित निवेश कहे जाने वाले सोना-चांदी की ओर रुख कर सकते हैं। इससे कीमतों में 10 से 15 प्रतिशत तक उछाल आ सकता है।

शीत युद्ध के बाद सबसे खराब हालात
मौजूदा समय में अमरीका, रूस और चीन के संबंधों में बढ़ती खटास, उत्तर कोरिया का लगातार परमाणु परीक्षण, यूरोप के खस्ता आर्थिक हालात और पश्चिम एशिया व पूर्वी यूरोप में बढ़ती आतंकी गतिविधियां मिलकर शीतयुद्ध के बाद के अब तक के सबसे खतरनाक हालात की ओर इशारा कर रही हैं। विश्व शक्तियों के इस टकराव से दक्षिण चीन सागर या उत्तरी एशिया प्रभावित हो सकता है।